Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: सुरेखा सुनील दत्त शर्मा

तुम चांद में नजर आए
कविता

तुम चांद में नजर आए

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** तुम मुझे चांद में नजर आए मेरे जज्बात में नजर आए तेरे मेरे दरमियां हुई जो मुलाकातें हर मुलाकात में नजदीकियां नजर आए जब भी मेरे तुम नजदीक आए मैंने हर लम्हा अपने आप से चुराए धड़कन ए रफ्तार पकड़ लेती है तुम्हारे छूने से तुम्हारा हाथ लगते ही तुम मुझ में समाते नजर आए कशिश है जो तेरी आंखों में तेरी बातों में तेरी उन आंखों में डूबती नजर आई तू मुझे चांद में नजर आए मेरे जज्बात में नजर आए।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्...
मौन रहकर भी
कविता

मौन रहकर भी

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मौन रहकर भी गमों को सहकर भी देखा है हमने। जीवन के सुंदर सपनों को बिखरते हुए देखा है हमने। बिखरे सपनों को समेटने की कोशिश में अपने आप को तिल-तिल मरते देखा है हमने। मौन रहकर भी गमों को सहकर भी देखा है हमने। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी र...
जिंदगी का सफर
कविता

जिंदगी का सफर

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जिंदगी के सफर में हर रोज दर्द मिला है। पल-पल आगे बढ़ी हूं मंजिल का फासला है। क्या बताऊं तुमको कितने दर्द मिले हैं। हमसे ना पूछो हमें दिल में जख्म मिले हैं। हर बार जिंदगी से नया तजुर्बा मिला है। क्या व्यथा सुनाऊं अपनी मुझे क्या-क्या मिला है। जिंदगी के सफर में हर शख्स मतलबी है। बातों में उलझा कर मुझे लूट लिया है। ये जिंदगी है ऐसी इससे नहीं गिला है। जो था ख्वाब सजाया और रेत में मिला है। जिंदगी की किताब में एक ऐसा पाठ पढ़ा है। छोटी सी जिंदगी में बेशुमार दर्द पला है। चांद छूने को मैंने हर बार हाथ बढ़ाया। ना जाने कितनी बार चोट खाकर खड़ी हूं। जिंदगी के सफर में इतना दर्द मिला है। लबों की मुस्कुराहट हर बार फीकी पड़ी है। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ सा...
तकदीर
कविता

तकदीर

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मेरे हाथों की लकीरों ने मेरी तकदीर बदल दी। मैं ऐसी नहीं थी मेरी सोच बदल दी यूं तो मैं अकेले ही चली थी सफर पर... तेरे हर एक कदम ने मेरी राह बदल दी तेरे हाथों की लकीरों ने मेरी तकदीर बदलती दी। मेरी कोशिश रही अपने जज्बातों को उतारने के पन्नों पर... तूने हर बार मेरी कोशिश बदल दी।। सुरेखा सुनील . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग...
तू नजर आया
कविता

तू नजर आया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** रात को जब चांद में, मुझे तू नजर आया रात में बस ख्वाब में, मुस्कुराता नजर आया। ख्वाबों में तेरा चेहरा, यूं पास नजर आया इश्क मोहब्बत का चढ़ता, खुमार नजर आया। किस से कहें दिले, जज्बात ए दास्तां किस्सा कई बार बहुत, पुराना याद आया। तुझे भी तो ये चांद कहीं, दिखता होगा बता ..क्या उसमें तुझे मेरा, चेहरा कभी नजर आया। जमाने को जब भी देखा, इन निगाहों ने मुझे चारों तरफ बस, तू ही तू नजर आया। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य ...
राज
कविता

राज

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मैं अपनी दोस्ती के जज्बात, लफ्ज़ों में लिखती रही, बेचैन होकर रात भर, करवटें बदलती रही। आ रहे थे ख्वाब तेरे रात भर, मैं चांद में तुझको यूं ही ढूंढती रही। कब की बिखर जाती, गर तू साथ ना होता, तेरी दोस्ती के सजदे में, मैं सर झुकाती रही। तेरे इश्क ने रंग अपने, बदले कई बार, मैं हर बार बिखरे रंगों को, समेटती रही। मुझे विश्वास था अपने दोस्त पर, मैं दोस्ती की सीपी में, मोती सी कैद होती रही। मेरा दोस्त समंदर से गहरा लगा, मैं दोस्ती की गहराई के राज, ढूंढती रही।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिं...
तू नजर आया
कविता

तू नजर आया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** रात को जब चांद में, मुझे तू नजर आया रात में बस ख्वाब में, मुस्कुराता नजर आया। ख्वाबों में तेरा चेहरा, यूं पास नजर आया इश्क मोहब्बत का चढ़ता, खुमार नजर आया। किस से कहें दिले, जज्बात ए दास्तां किस्सा कई बार बहुत, पुराना याद आया। तुझे भी तो ये चांद कहीं, दिखता होगा बता ..क्या उसमें तुझे मेरा, चेहरा कभी नजर आया। जमाने को जब भी देखा, इन निगाहों ने मुझे चारों तरफ बस, तू ही तू नजर आया। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य...
शिद्दत
कविता

शिद्दत

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जब भी तुझे देखा, तुझे चाहा पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे चाहा, तुझे पाया पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे पाया, तुझे अपना बनाया है पूरी शिद्दत से। जब भी अपना बनाया, तेरी हुई मैं पूरी शिद्दत से। जब भी तेरी हुई, तुझ में समाई पूरी शिद्दत से। जब भी तुझ में समाई, तुझमें रब नजर आया पूरी शिद्दत से। जब भी रब नजर आया, तुझ पर खुदा का नूर बरसा पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे देखा, तुझे चाहा पूरी शिद्दत से।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरं...
प्यार
कविता

प्यार

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** दिन का सवेरा है प्यार हवा का झोंका है प्यार दिल की धड़कन है प्यार उगता सूरज है प्यार नदी की धार है प्यार तूफान की आहट है प्यार चेहरे की मुस्कान है प्यार दीपक की लौ है प्यार आग का दरिया है प्यार दो दिलों का समर्पण है प्यार कुछ कर गुजरने का जुनून है प्यार आगे प्यार को क्या नाम दें एक मीठा सा एहसास है प्यार एक दूसरे पर मर मिटने का नाम है प्यार .... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजा...
सूत्रधार
कविता

सूत्रधार

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** हमारी आंखों में तुम, हमारे सपनों में तुम, कजरे की धार में तुम, मेरे माथे की बिंदिया में तुम, मांग का सिंदूर हो तुम, और तुम ही से हैं हम, वो और कोई नहीं, प्रियतम तुम ही तो हो, हमारे कंगन हो तुम, हमारे बिछूएं हो तुम, हमारा सोलह सिंगार हो तुम..,. हमारे दिल की धड़कन में तुम, हमारी सांसों में तुम, हमारे दिल की आरजू हो तुम, हमारी सौगातो का खजाना हो तुम, मेरी चाहत हो तुम, मेरी इबादत हो तुम, मेरी आहट हो तुम, मेरी परछाई हो तुम, सातों जन्म में, कदम से कदम मिलाकर, चलने वाले, मेरी हमसफर हो तुम... और कोई नहीं मेरे जीवन के सूत्रधार हो तुम....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहा...
रिश्ता बेच दिया
कविता

रिश्ता बेच दिया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** देखो ना मुझे रिश्ता बेच गया, खुशी बताकर दर्द बेच गया, पराया था फिर भी अपना बना कर, मेरे जज्बात बेच गया, जर्रे जर्रे में तुझको सोचा, तूने हर बार नया रिश्ता बेच दिया, तकलीफों को जब भी भूला, तूने हर बार दर्द का नया रिश्ता बेच दिया, नमजों में सर झुका कर, दुआ हर बार नहीं मांगी, तूने रूह तक कपाकर, मेरा विश्वास हर बार बेच दिया, मिलता है मुझे वो अपनों की तरह, करता है वही कत्ल मेरे दिल का सरेआम, लाती हैं हवाएं भी मेरी जान, मेरी जान में, उसने बहारों से लाकर, मेरा चमन बेच दिया, आए वो मेरे घर पर, किस्मत तो मेरी देखो, ऐसे वक्त पर लाकर, मेरी मुरादों को बेच दिया, रखती हूं सलामत उसे, हर बला से आज भी, देखो तो जालिम ने हमें, दुआओं में बेच दिया, झुकते थे हम क्योंकि, हमें रिश्ता निभाना था, देखो ना... ज़ालिम ने हमें, गलत बताकर बेच दिया....!! . ...
मरने के बाद
कविता

मरने के बाद

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** लोग कहते हैं मरने के बाद, मुक्ति मिल जाती है, अपनों का एहसास नहीं होता, अपनों की याद नहीं आती, कोई हमसे तो पूछें, मुक्ति के बाद एक-एक पल हमने कैसे गुजारा, हमें जलने से डर लगा, पर चले हम, हमें दूर होने से डर लगा, पर दूर हुए हम, मरने के बाद क्यों रहते हैं हम, अपनों के आसपास ही, अपनों ने ही जलाया हमें, अपनों ने ही भुलाया हमें, हमें भी दर्द हुआ था जलने में, खाक ऐ सुपुर्द होने में, हम सब को देखते हैं, हमें कोई नहीं देखता, हम सबको याद करते हैं पर, हमें कोई याद नहीं करता, क्यों मर कर भी, तिल तिल मरते हैं हम, अपनों के लिए..... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं...
सच्चा दोस्त
कविता

सच्चा दोस्त

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर सच्चा दोस्त मिलना बहुत मुश्किल है, हाथ तो सभी बढ़ा देंगेआगे, मगर मुसीबत में हाथ थामने वाले बहुत कम है, वादा करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर वादा निभाने वाले बहुत कम है, जज्बातों से खेलने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर जज्बातों को समझने वाले बहुत कम है, दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर दोस्ती की कद्र करने वाले बहुत कम है, कदम आगे बढ़ाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर ठोकर लगने पर संभालने वाले बहुत कम है, दोस्त और दोस्ती करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर सही मायनों में, दोस्ती का अर्थ, समझने वाले बहुत कम है, दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर सच्चा दोस्त मिलना बहुत मुश्किल है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग म...
एक विश्वास
कविता

एक विश्वास

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** दोस्ती वही है, जिसमें आस है, अपने आप से ज्यादा विश्वास है, दोस्त के, सुख दुख का, अपने जैसा, एहसास है, कड़वेपन की, जगह ना हो, दोस्ती में बस, प्यार दुलार, और, मिठास ही मिठास हो, दोस्ती वही है, जिसमें आस हैविश्वास है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान : काव्य भूषण सम्मान मुंबई, वरिष्ठ समाजसेवी सम्मान मेरठ,...
एहसास
कविता

एहसास

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** क्यों होता है एहसास तुम्हारे होने का, हर आहट पर क्यों लगता है, तुम हो...... मुझे पता है, तुम आहट में तो क्या... इस जमीन पर भी नहीं हो, फिर भी क्यों होता है एहसास, तुम्हारे होने का, हवा की आंधी से, पत्तों की आहट से, क्यों होता है एहसास, तुम्हारी बातों का, कदमों की आहट से, दिल में बढ़ती धड़कन से, क्यों होता है एहसास, तुम्हारे आने का, अंतिम विदाई दी थी हमने, अपनी इन भीगी पलकों से, फिर भी क्यों होता है एहसास, तुम्हारे होने का....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindiraksh...
मौत का पैगाम
कविता

मौत का पैगाम

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जिंदगी क्या है, एक महासागर, जिसमें, हजारों गम है, हजारों खुशियां, और....... कभी ना खत्म, होने वाला इंतजार, जो हमेशा, आने वाले गम का, सामना करने के लिए, तैयार रहता है, उस खुशी का स्वागत, करने के लिए, जो उसके जीवन में, बहार बनकर आने वाली है, नहीं करता वो "इंतजार" केवल "मौत" का, और वक्त अचानक, दस्तक देता है, उसके दरवाजे पर, हवा बनकर, "मौत का पैगाम लेकर", जिसका उसे, एहसास भी नहीं होता, "और वक्त", इस शरीर की सीपी से, मोती सी सांस निकालकर ले जाता है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक...
खता
कविता

खता

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** खता मत गिन ए दोस्त, दोस्ती में, किसने क्या गुनाह किया, कुछ तूने किया कुछ मैंने किया, गुन्हा बराबर दोनों ने किया, दोस्ती जुनून है एक नशा है, जो तूने भी किया और मैंने भी किया, मिले हैं जिस्म और रूह आपस में, तो रस्मो की बंदिशें क्यों है, सुन ऐ दोस्त, ये जिस्म तो सुपुर्द ए खाक हो जाना है एक दिन, फिर ये तेरे और मेरे बीच, रंजिशें क्यों है, हर गम का इलाज नहीं होता मयखाने में, कुछ दर्द यूं ही चले जाते हैं, दोस्तों के साथ, महफिल सजाने में, खता मत गिन ए दोस्त, दोस्ती में ! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी ने...
काश …
कविता

काश …

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** काश मेरे पास कुछ वक्त होता.... खुदा कसम, तुम्हें पन्नों में उकेर देती, पढ़ती तुम्हारा हर एक अल्फाज, अपनी निगाहों से...... धड़कन के रास्ते, तुम्हें दिल में उतार लेती, कर लेती कैद दिल में, हमेशा के लिए, काश मेरे पास कुछ वक्त होता.... ताउम्र के लिए तुम्हें, एक हसीन तोहफा देती, अपनी सांसों के साथ, तुम्हें जोड़ लेती, बाहों में खोते, जब हम-तुम, उन हसीन लम्हों को, आंखों में कैद कर लेती, काश मेरे पास कुछ वक्त होता...!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कु...
वक्त
कविता

वक्त

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ऐसे तो न थे हम, हमने भी नाज था, अंदाज़ था गुस्सा था, वक्त ने, बदल दिया हमें, और हमें, पता भी न चला, कहते हैं..... जिंदगी सिखा देती है, हर हाल में जीना, हम यूं ही, जीते गए, वक्त गुजरता गया, और हो गया, सभी परिस्थितियों से समझौता... और आ गया हमें, हर हाल में जीना।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान : ...
सपने
कविता

सपने

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** सर्द हवा का झोंका, छू जाता है, और अचानक उठा देता है, मीठे सपनों से, जो बुने थे हमने, साथ साथ रात भर लेटे-लेटे, सुबह दिला देती है, फिर अकेलेपन का एहसास, सर्द हवा का झोंका, ले जाता है, तुम्हारे सपनों से दूर.... बहुत दूर... जहां सघन होने लगता है, फिर अकेले होने का एहसास, और मैं अपने सपने समेटे, मन के किसी कोने में, सिमट उठती हूं। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट...
अपने इश्क में …
कविता

अपने इश्क में …

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** अपने इश्क में, यू जकड़ कर, न रख मुझे, ऐसा ना हो, तेरे कदमों की, बेड़ियां बन जाऊं।। तेरे इश्क में, खामोश रहकर भी, तुझे अपना बनाने की, खता ना कर जाऊं, यूं हौसला ना दे मुझे, मेरी हिम्मत पर, क्या पता, तेरे सजदे में, सर झुका जाऊं, यूं तो लोगों ने सराहा है, हमारी पाके मोहब्बत, तेरी इस एहसास में, दुनिया से खता ना कर जाऊं, आ, अब तो बाहों में, समा ले मुझे, तेरी इस दुनिया से, कहीं रुखसती न कर जाऊं, अपने इश्क में, यूं जकड़ कर ना रख मुझे, ऐसा ना हो, तेरे कदमों की, बेड़ियां बन जाऊं...... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिम...
पिंजरा
कविता

पिंजरा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** प्यार का सोने का पिंजरा, पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का, उसमें रहते हम और तुम, खाते पीते मस्ती करते, जीवन का सुख हर पल पाते, पर पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का! संगीत है जो जीवन में, तुम में गुण है कमाने का, हम में प्यार लुटाने का, दोनों की चाहत बढ़ाने का, पर पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का, खुले आसमान में उड़ना है, चांद तारों से बात करना है, कदम से कदम मिलाना है, तेरा हमसफर बन जीना है, पर पिंजरे में नहीं रहना है, तुझे पसंद हो ना हो, अब तो बाहर आना है, पिंजरा तो एक पिंजरा है, वह हो बेशक सोने का!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहान...
ए हवा
कविता

ए हवा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ए हवा, कितना तेज, चला, ना कीजिए, जुल्फें हमारी इस कदर, उड़ाया न कीजिए, हौसला है तुम में माना हमने, मगर इस कदर हमसे, यू शरारत न कीजिए, हमने कब कहा, बंद हो जाओ, इतना धीमा होकर भी, यूं हमें, जलाया ना कीजिए, करती है शरारत जब, हवा तेज होती है, हवा की ये गुदगुदी, हमें खूब हंसाती है, हवा तेज चली तो... आंचल भी संभालेंगे, कह देते हैं ए हवा, बार-बार शरारत यू हमसे ना कीजिए। ए हवा कितना तेज चला ना कीजिए, जुल्फें हमारी इस कदर उड़ाया न कीजिए!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) ...
फूल तुम्हें भेजूंगी
कविता

फूल तुम्हें भेजूंगी

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** हर सुबह खिलता हुआ, फूल तुम्हें भेजूंगी, अपने इश्क में डूबा हुआ, एहसास तुम्हें भेजूंगी, ये बताने को कि अब, रुकते नहीं अश्क, अश्कों की बूंदों से भीगा हुआ, फूल तुम्हें भेजूंगी, अपनी तन्हाई का एहसास, दिलाने के लिए, रोज एक महका हुआ, गुलाब तुम्हें भेजूंगी, अब हाल क्या है मेरा, तेरी जुदाई में, फिर वही दर्द भरा, अंदाज़ तुम्हें भेजूंगी, आज फिर इस दिल को, रुलाया तुमने... आज एक मसला हुआ फूल, नए अंदाज में तुम्हें भेजूंगी....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ...
भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता
आलेख

भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही विभिन्न पर्वों और त्योहारों को मनाया जाता रहा है। यदि कहां जाए कि भारतीय संस्कृति पर्व, उत्सव व त्यौहारों में बसती है, तो अतिशयोक्ति न होगी। त्योहार उत्सव पर्व हमारी संस्कृति के मेरुदंड हैं। समाज में जब-जब स्थिरता आई उसकी प्रगति अवरुद्ध हुई, तभी उन्होंने उसे गति प्रदान करने की और मनुष्य को भविष्य के प्रति आस्थावान बनाने में योगदान दिया। आज की सदी का मनुष्य इन पर्वों को रूढ़िवादिता का परिचायक मानने लगा है, उसकी दृष्टि में यह तीज त्यौहार पुरातन ता के परिचायक हैं। इनमें आस्था रखने वाला मनुष्य पिछड़ा हुआ है। पुराने विचारों का है। उसे मॉडर्न सोसाइटी का अंग नहीं माना जाता परंतु आज वास्तव में क्या ऐसा है? नहीं! भारतवर्ष में मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व अपने ही देश के हैं वह सार्थक हैं। किसी भी छोटे ...