ये जो मेरी हिंदी है
सुरेखा सुनील दत्त शर्मा
बेगम बाग (मेरठ)
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ये जो मेरी हिंदी है
कितनी प्यारी हिंदी है
सजी राष्ट्र के माथे पर,
जैसे कोई बिंदी है।।
हजार वर्ष में युवा हुई
गई षोड़शी सत्रह में
पहले पन्ने मुखर हुई,
जलती रही विरह में।।
बनी विधान में रानी है
अलंकृता हुई नागरी है
धाराएँ तीन सौ निकली,
४३ से ५१ तक सारी है।
पंचमुखी,दस में भाषें है
दक्षिण पथ प्रतिगामी है
अश्व वेग से दौड़ रही,
दुनिया देती सलामी है।
मान मिला तो खड़ी हुई
सत्रह बोलियाँ जड़ी हुई
रही कौरवी अधर अधीरा,
राष्ट्र भाव में बढ़ी हुई।।
शोभा इसकी बढ़ती है
जन आशा में चढ़ती है
कुछ दुष्टों की खातिर,
इसकी आन बिगड़ती है।
साहित्यभूमि में ढली हुई
मानक पोषित पली हुई
विश्व सोचता सीखे हम,
यहाँ दुराशा मिली हुई।
ये जो मेरी हिंदी है
कितनी प्यारी हिंदी है
सजी राष्ट्र के माथे पर,
जैसे कोई बिंदी है।।
परिचय :- सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा
उपनाम ...