शब्दांजलि
सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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ताऊ जी श्री रामचंद्रलाल श्रीवास्तव को विनम्र शब्दांजलि
पिछले कुछ दिनों से मेरे मन में
एक डर सा समाया रहता था,
पर उसका आशय क्या है
बस! यही समझ नहीं आ रहा था।
पर आज सामने आ गया
जब मेरे सिर पर
अपनी अनवरत
सुरक्षा छाया देने वाला
विशालकाय वटवृक्ष
अचानक ही गिर गया।
निस्तेज, निष्प्राण,
अनंत मौन होकर भी
हमें संबल दे रहा था,
जैसे अब भी हमारे
पास होने का हमें
विश्वास दिला रहा था।
पर सच्चाई तो ये है
कि हमें झूठी
तसल्ली दे रहा था।
या शायद हमें अपने
कंधे मजबूत करने का
संदेश दे रहा था।
जो भी हो पर हमें भी पता है
अब वो वटवृक्ष
न कभी खड़ा होगा
न शीतल हवा देगा
न ही हमें सुरक्षा
मिश्रित भाव ही देगा।
क्योंकि वो तो जा चुका है
अपनी अनंत
यात्रा पर बहुत दूर
जिसकी स्मृतियां
हमें रुलाएगी
दूर होक...