ममता का रक्षाबंधन
सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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आँखें नम हैं
मन में उल्लास भी,
महज कपोल कल्पना सी लगती है,
विश्वास अविश्वास की तलैया में
हिलोरें भरती मेरी परिकल्पना को
तूने आगे बढ़कर साकार कर दिया
अपने नेह बंधन में बाँध मुझे
तूने बहुत बड़ा काम ही नहीं
सारा जग जैसे जीत लिया
हमारे रिश्तों को नया आयाम दे दिया।
ममता तेरी ममता के आगे तो
तेरे भाई शीश सदा झुकाता ही रहा है
आज तेरा कद आसमान सा ऊँचा हो गया है।
तू छोटी सी बड़ी प्यारी, दुलारी है
तू कल भी लाड़ली थी मेरी
अब तो और भी लाड़ली हो गई है।
तेरे सद्भावों पर गर्व हो रहा है,
तेरा ये भाई भी खुशी से उड़ रहा है,
तेरा मान न पहले कम था
न आज ही कम है, न कभी कम होगा
जैसे भी हो सकेगा, होता रहेगा
रिश्तों का ये नेह बंधन
कभी कमजोर न होने पायेगा
रिश्तों का फ़र्ज़ तेरा ये भाई निभायेगा।
बस ख्वाहिश इ...