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ममता का रक्षाबंधन
कविता

ममता का रक्षाबंधन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आँखें नम हैं मन में उल्लास भी, महज कपोल कल्पना सी लगती है, विश्वास अविश्वास की तलैया में हिलोरें भरती मेरी परिकल्पना को तूने आगे बढ़कर साकार कर दिया अपने नेह बंधन में बाँध मुझे तूने बहुत बड़ा काम ही नहीं सारा जग जैसे जीत लिया हमारे रिश्तों को नया आयाम दे दिया। ममता तेरी ममता के आगे तो तेरे भाई शीश सदा झुकाता ही रहा है आज तेरा कद आसमान सा ऊँचा हो गया है। तू छोटी सी बड़ी प्यारी, दुलारी है तू कल भी लाड़ली थी मेरी अब तो और भी लाड़ली हो गई है। तेरे सद्भावों पर गर्व हो रहा है, तेरा ये भाई भी खुशी से उड़ रहा है, तेरा मान न पहले कम था न आज ही कम है, न कभी कम होगा जैसे भी हो सकेगा, होता रहेगा रिश्तों का ये नेह बंधन कभी कमजोर न होने पायेगा रिश्तों का फ़र्ज़ तेरा ये भाई निभायेगा। बस ख्वाहिश इ...
ऐसा क्यों है?
कहानी

ऐसा क्यों है?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी मैं सोकर उठा भी नहीं था कि मोबाइल की बज रही लगातार घंटी ने मुझे जगा दिया। मैंने रिसीव किया और उनींदी आवाज़ में पूछा -कौन? उधर से आवाज आई- अबे! अब तू भी परेशान करेगा क्या? कर ले बेटा ओह! मधुर, क्या हुआ यार? कुछ नहीं यार! बस थोड़ा ज्यादा ही उलझ गया हूँ, सोचा तुझसे बात कर शायद कुछ हल्का हो जाऊं। बोल न ऐसी क्या बात हो गई? मैं तेरे पास थोड़ी देर में आता हूं, फिर बताता हूं। मधुर ने जवाब देते हुए फोन काट दिया। मैं भी जल्दी से उठा और दैनिक क्रिया कलापों से निपट मधुर की प्रतीक्षा करने लगा। लगभग एक घंटे की प्रतीक्षा के बाद मधुर महोदय नुमाया हुए। मां दोनों को नाश्ता देकर चली गई। नाश्ते के दौरान ही मधुर ने बात शुरू की। यार मेरी एक मित्र (गिरीशा) है। जिससे थोड़े दिन पहले ही आमने सामने भेंट भी हुई थी। वैसे त...
माँ बहन या बेटी
संस्मरण

माँ बहन या बेटी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** विगत दिनों आभासी दुनिया से जुड़ी मुंहबोली बहन की जिद पर पहली बार उसके निर्माणाधीन मकान पर जाना हुआ। जहां उसके चेहरे पर सचमुच की छोटी बहन जैसी खुशी देख मन गदगद हो गया। क्योंकि वह पहले ही बेटे और मजदूरों से इस बात की चर्चा कर चुकी थी कि बड़े भैया आ रहे हैं। वापसी की बात पर और वो जिद कर घर चलने का अनुरोध करने लगी, मना करने पर उसकी आंखों में आसूं भर आये, शायद ये भी सोचती रही होगी कि उसका अपना भाई भी क्या यूं ही मना कर देता? उसकी भावुकता ने मुझे हिला दिया और उसकी भावनाओं को सम्मान देते हुए मैंने स्वीकृत क्या दिया, वो कितनी खुश हो गई, ये बता पाना मुश्किल है। लेकिन मुझे भी संतोष तो हुआ ही कि मेरे किसी कदम ने एक शख्स को खुश होने का अवसर तो दिया। वहां से निकलते हुए ही काफी विलंब हो चुका था। विद्यालय और मकान की व...
माँ की पीड़ा
स्मृति

माँ की पीड़ा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  पिछले दिनों अपने एक साहित्यिक मित्र की बीमार माँ को देखने जाना पड़ा। विगत हफ्ते से उनकी सेहत में सुधार नहीं हो रहा था। लिहाजा जाने का फैसला कर लिया। एक दिन पूर्व ही अपने एक अन्य कवि मित्र को अपने आने की सूचना दी और उसी शहर में अपनी मुँह बोली बहन को भी अपने आने के बारे में अवगत कराया, तो उसने भी मेरे साथ चलने की बात कही। स्वीकृत देने के अलावा कोई और और रास्ता न था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन कवि मित्र सूचनानुसार निर्धारित स्थान पर मिले। हम दोनों लोग पास में ही बहन के घर गए। हालचाल का आदान प्रदान हुआ। बहन के आग्रह का सम्मान करना ही था। अतः चाय पीकर हम सब अस्पताल जा पहुंचे। हमारे साथ बहन का बेटा भी था। हम चारों को मित्र महोदय बाहर आकर मिले और हम सब उनके आई सी यू में माँ के पास जा पहुंचे। वहां...
भावों की खुशबू
कविता

भावों की खुशबू

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सब कुछ योजनानुसार चल रहा अचानक जो हुआ उम्मीद से बहुत आगे, सब कुछ इतना तीव्र था कि समझना मुश्किल था। ऐसा भी हो सकता है, मन हाँ-न के उहापोह में उलझकर रह गया। पर सब कुछ सामने था मेरे साथ हो रहा था नकार भी कैसे सकता था, पर सपने जैसा था, जिसकी खुशी सँभाल पाना कठिन था मुझ जैसे पथरीले इंसान के लिए तभी तो आँखों में आँसू तैर गए बस किसी तरह सँभाल सका खुद को। मन विह्वल मगर गर्व की अनुभूति करता उस अनजानी अनदेखी शख्शियत के साथ हुआ जब हमारा प्रथम आमना सामना मन श्रद्धा से भर गया, उसके कदमों में झुकने को लालायित हो उठा, बड़ी मुश्किल से खुद को सँभाला और रख दिया अपना हाथ उसके सिर पर क्योंकि हिम्मत नहीं हुई उसके अपनत्व भरे भाव को नकारने की असम्मानित करने की क्योंकि मैं ऐसा ही हूँ। मगर ...
महिला दिवस का पाखंड
कविता

महिला दिवस का पाखंड

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! एक बार फिर महिला दिवस का पाखंड करते हैं, महिला दिवस के नाम पर औपचारिकता का प्रपंच करते हैं। रोज रोज महिलाओं का अपमान करते हैं, नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं गँवाते हैं, उनकी हर राह में कांटे बिछाते हैं। महिलाओं को बराबरी का दर्जा देते हैं पर सच तो यह है कि हम सब अपनी माँ बहन बेटियों को भी ठेंगा दिखाते हैं। नारी तू नारायणी है का जितना गान करते हैं, उससे अधिक हम उनका अपमान करते हैं। नारी के प्रति श्रद्धा के दिखावे खूब करते हैं बड़े बड़े भाषण, गोष्ठियां, दिखावा करते हैं पत्र पत्रिकाओं में असंख्य लेख कविता, कहानियां भी लिखते हैं, परिचर्चा, वैचारिक चिंतन महिला हितों के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं, महिलाओं को साल में इस एक दिन महिला दिवस के नाम पर सबसे ज्यादा बरगल...
राजनीति करना चाहता हूँ
हास्य

राजनीति करना चाहता हूँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं भी सोचता हूँ कि राजनीति में कूद पड़़ूं, इस हमाम में सब नंगे मैं ही तन ढाक कर क्या करूँ? तंग आ गया हूँ वोट दे देकर क्यों न इस बार पहले टिकट और फिर वोट की मांग करूँ। राज की बात आपको बताता हूँ मैं भी खूब धन कमाना चाहता हूँ अब ईमानदारी से भला दाल रोटी तो चल ही नहीं सकती बस एक बार बड़ा हाथ मारना चाहता हूँ। आलीशान बंगला महंगी गाड़ियों के आजकल सपने बहुत आते हैं, बस कैसे भी ये सपने अपने पूरे कराना चाहता हूँ, अंदर की बात है किसी से मत कहना हवाला से धन भी कमाना चाहता हूँ, बस एक बार मौका भर देकर तो देखिए स्विस बैंक में अपना भी खाता खुल जाये रुपयों से बैंक खाता भरना चाहता हूँ। आप सबने कितनों को मौका दिया एक बार मुझे भी देंगें तो पहाड़ नहीं टूट जायेगा, मैंनें तो अपना राज आपको बता ही दिया बस एक...
सवाल का उत्तर
कविता

सवाल का उत्तर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** पापा मुझे भी तो बताओ तनिक सोच समझकर समझाओ क्या मैं जन्म से ही पराई हूँ? आपकी बेटी हूँ, माँ की जाई हूँ भैया की बहन भी हूँ दादा-दादी की आँँखों का तारा हूँ। मेरे जन्म पर तो आप बहुत खुश थे खूब उछल रहे थे, पाला पोसा बड़ा किया, कभी आंख में आँँसू न आने दिया हर ख्वाहिश को मान दिया। अब में बड़ी हो गई हूँ दादी कहती है ब्याहने योग्य हो गयी हूँ क्या इसीलिए अभी से पराई हो गयी हूँ। भैया भी तो भाभी को ब्याहकर लाये हैं, भाभी दूसरे घर से आई है, फिर भी घर वाली हो गई यह कैसा रिवाज है समाज का जहाँ जन्मी, खेली कूदी बड़ी हुई उसी आँगन में पराई हो रही हूँ। माना कि भैया ब्याहकर कही गया नहीं बस इतने भर से कौन सा पहाड़ आखिर फट गया। भैय्या जैसा मेरा भी तो आप सबसे रिश्ता है, मेरा हक भैय्या से क्यूँ कम ...
विश्व हिंदी दिवस
आलेख

विश्व हिंदी दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  हिंदी की लोकप्रियता को लेकर समूचे विश्व में १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी प्रेमियों के लिए इस दिवस का विशेष महत्व है। २०१८ की जानकारी के अनुसार विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा हिंदी लगभग ७० करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। जबकि १.१२ अरब के साथ अग्रेंजी शीर्ष पर है। चीनी भाषा १.१० अरब, स्पेनिश भाषा ६१.२९ करोड़, अरबी भाषा ४२.२ करोड़ लोगों द्वारा बोले जाने के साथ क्रमशः दूसरे, चौथे और पाँचवें। स्थान पर है। २०१७ में प्रकाशित पुस्तक 'एथनोलाग' के अनुसार दुनिया भर में २८ ऐसी भाषाएँ है, जिन्हें ५ करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं। यह पुस्तक दुनिया में मौजूद भाषाओं की जानकारी पर प्रकाशित हुई थी। भारत को बहुभाषाओं का धनी देश मानने के बावजूद भारत की मूल भाषा हिंदी ही मानी जाती है। ...
महावीर प्रसाद द्विवेदी
कविता

महावीर प्रसाद द्विवेदी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की पुण्य तिथि पर विशेष दौलतपुर ग्राम रायबरेली जनपद मे पाँच मई अठारह सौ चौसठ में पं. रामसहाय द्विवेदी के पुत्र रुप में महाबीर प्रसाद द्विवेदी जन्मे थे। दीनहीन थी घर की दशा समुचित शिक्षा नहीं हो सकी, संस्कृत पढ़ते रहे घर रहकर फिर रायबरेली, उन्नाव, फतेहपुर में आखिर पढ़ने जा पाये, घर की हालत के कारण पढा़ई से फिर दूर हो गये। गये पढ़ाई छोड़ बंबई बाइस रुपये मासिक पर रेलवे जीआई पी में नौकरी किए। मेहनत ईमानदारी से अपने डेढ़ सौ रु. मासिक वेतन संग हेड क्लर्क पद पर पदोन्नति पा गये। अंग्रेजी मराठी संस्कृत का नौकरी संग भरपूर ज्ञान प्राप्त किया, उर्दू और गुजराती का भी जमकर खूब अभ्यास किया। बंबई से झांसी स्थानांतरण हो गया अधिकारी से विवाद के कारण स्वाभिमान की खातिर महाबी...
दोस्ती की मिसाल
लघुकथा

दोस्ती की मिसाल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** दिनेश के पिता राजीव पिछले कई दिनों से बेटे को कुछ उदास देख रहे थे। आखिर आज पूछ ही लिया। क्या बात है बेटा, तबियत ठीक नहीं है क्या? नहीं पापा। आपको बताया था कि पंकज के एक्सीडेंट के कारण उसकी बहन सोनी की शादी रुक गई। मगर बेटा इसमें हम क्या कर सकते हैं? यही तो मैं सोच नहीं पा रहा हूँ पापा! सोनी के सामने जाता हूँ तो जैसी उसकी राखियां उलाहना देती हैं कि तू कैसा भाई है, तेरा दोस्त बिस्तर में है और तू......। दिनेश रो पड़ा। देखो बेटा। बात गंभीर है। अच्छा होता तुम मुझे ये बात और पहले बताते तो.... मगर अब तुम तीनों को परेशान होने की जरुरत नहीं है। सोनी की शादी मैं कराऊंगा, शादी उसी लगन में ही होगी। तुम मुझे पंकज के घर ले चलो। आज ही हम सोनी की होने वाली ससुराल चलेंगे और बात करेंगे। साथ उन दोनों को यहीं ले आयेंगे,...
रघुवीर सहाय
कविता

रघुवीर सहाय

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** नौ दिसंबर उन्नीस सौ उनतीस लखनऊ में जन्में थे रघुवीर सहाय, उन्नीस सौ इक्यावन में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए. पास किया। करने लगे फिर पत्रकारिता प्रतीक, वाक, कल्पना पत्रिकाओं के सम्पादक मंडल में जगह मिले, आकाशवाणी के आल इंडिया रेडियो में हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे। उन्नीस सौ इकहत्तर से उन्नीस सौ बयासी तक ग्यारह वर्ष रघुवीर सहाय जी दिनमान के संपादक भी रहे, "दूसरा रुप" से कवि रुप मे ख्याति पथ पर चमक गये। अपनी लेखनी से सहाय जी दृढ़ता से आईना दिखाते थे भ्रष्टाचार हो या समाज का चित्रण बखूबी कलम चलाते थे। मध्यमवर्ग के जीवन चित्रण पर अद्भुत वो लेखनी चलाते थे, व्यंग्यात्मक शैली से अपने आईना भी खूब दिखाते थे। सांस्कृतिक, राजनीतिक चेतना कलम से अपने जगाते थे, समकालीन समाज को ...
संविधान दिवस
हास्य

संविधान दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए ! मौका भी है दस्तूर भी है हमारे मन भरा फितूर जो है, आज भी हम संविधान-संविधान खेलते हैं, जब रोज ही हम पूरी ईमानदारी से खेलते हैंं, तब आज भला खेलने से क्यों बचते हैं? चलिए तो सही आज संविधान दिवस की भी तनिक औपचारिकता निभाते हैं, आखिर साल के बाकी दिन हम संविधान का माखौल ही उड़ाते हैं। हमें भला संविधान से क्या मतलब हम तो रोज ही कानून का मजाक उड़ाते हैं। कभी धर्म के नाम पर तो कभी अधिकारों के नाम तो कभी बोलने की आजादी के नाम पर अनगिनत बहाने हम ढूंढ ही लेते संविधान का उपहास उड़ाने के। संविधान की रक्षा पालन की कसमें खाते हैं, पर संविधान में लिखे कानून को हम कितना मानते हैं? हिंसा, तोड़फोड़, घर, दुकान सरकारी संपत्तियों का तोड़फोड़ भड़काऊ भाषण, आपसी विभेद जातीय टकराव, हिंसा अलगाववादी विचारधा...
बदलता वक्त
आलेख

बदलता वक्त

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम है, जिसके परिणाम सकारात्मक/नकारात्मक होते ही हैं। सदियों सदियों से बदलाव होते आ रहे हैं। जीवन के हर हिस्से में अनवरत हो रहे बदलाव का फर्क भी दिखता है। संसार भर में प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक, भौगौलिक, राजनैतिक, तकनीक, रहन-सहन, विचार, व्यवहार, धरातलीय, आकाशीय, यातायात, संचार, साहित्य, कला, संस्कृति, परंपराएं आदि...आदि के साथ पारिवारिक और निजी तौर पर भी उसका असर साफ देखा, महसूस किया जाता/जा रहा है।कोई भी बदलाव सबको समभाव से प्रभावित करता हो, यह भी आवश्यक नहीं है। मगर हर किसी का प्रभावित होना अपरिहार्य है। यदि आप अपने और अपने पिता जी, बाबा जी के समय पर ही दृष्टि डालें, तो आप खुद बखुद महसूस करेंगे इस बदलाव और उसके प्रभावों को भी। इसी तरह देश दुनिया, समाज का हर हिस्सा किसी न किसी...
मर्यादा की मूरत राम
भजन, स्तुति

मर्यादा की मूरत राम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ कौशल्या की कोख से नृप दशरथ सुत जन्में राम। नवमी तिथि चैत्र मास को अयोध्या का था रनिवास।। निहाल हुए अयोध्यावासी, बजने लगी चहुंओर बधाई। जन जन के अहोभाग्य हो, मानुज तन ले प्रगटे रघुराई।। माता पिता की करते सेवा नित, न्योछावर थे खुशियों की खातिर। छोड़ दिये सुख राज महल के, माँ कैकई के दो वचन खातिर।। पिता की आज्ञा मान गये वन, विश्व बंधुत्व का भाव भर कर। जनकसुता का किया वरण, शिव धनुष भंग स्वयंवर में कर।। चौदह वर्षों के वनवास काल में, राक्षसों, दैत्यों का संहार किया। शबरी के जूठे बेरों को खाकर, नवधा भक्ति दे उद्धार किया. पुत्र, भाई, दोस्त की बने मिसाल, सबकी चिंता को मन में लाये। अपनी चिंता का ध्यान न कर, रावणवध से आतंक मिटाए।। पर ज्ञानी रावण की विद्वता को, अंतरमन से स्वीकार ...
विजयदशमी और नीलकंठ
कविता

विजयदशमी और नीलकंठ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारे बाबा महाबीर प्रसाद हमें अपने साथ ले जाकर विजय दशमी पर हमें बताया करते थे नीलकंठ पक्षी के दर्शन भी कराते थे, समुद्र मंथन से निकले विष का पान भोले शंकर ने किया था इसीलिए कंठ उनका नीला पड़ गया था तब से वे नीलकंठ भी कहलाने लगे। शायद तभी से विजयदशमी पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन की परंपरा बन गई, शुभता के विचार के साथ नीलकंठ में भोलेनाथ की मूर्ति लोगों में घर कर गई। इसीलिए विजयदशमी के दिन नीलकंठ पक्षी देखना शुभ माना जाता है, नीलकंठ तो बस एक बहाना है असल में भोलेनाथ के नीले कंठ का दर्शन पाना है अपना जीवन धन्य बनाना है। मगर अफसोस अब बाबा महाबीर भी नहीं रहे, हमारी कारस्तानियों से नीलकंठ भी जैसे रुठ गये हमारी आधुनिकता से जैसे वे भी खीझ से गये, या फिर तकनीक के बढ़ते दुष्प्रभाव की भेंट चढ़त...
खुशियाँ कहाँ है
कविता

खुशियाँ कहाँ है

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** खुशियों की कोई दुकान नहीं हैं कोई हाट बाजार नहीं हैं खुशियाँ कहाँ हैं ये हमारे देखने, समझने महसूस करने पर निर्भर है। बस नजरिए की बात है अपना नजरिया बड़ा कीजिए अपने आप में,अपने आसपास अपने परिवार, समाज में अपने माहौल में देखिये खुशियाँ हर कहीं हैं, आप देखने की कोशिश तो कीजिए अपने आंतरिक मन से बस महसूस तो कीजिए। हर ओर खुशियाँ बिखरी पड़ी हैं, जितना चाहें समेट लीजिये, अपनी सीमित खुशियों को हजार गुना कर लीजिए। कौन कहता है कि आप दुःखों से याराना करिए जब लेना ही है तो खुशियों को ही क्यों न लीजिए, दुःखों से दूरी बनाकर चलिए। बस एक बार खुशियों को देखने का नजरिया बदलिए, दु:खों को पीछे ढकेलना सीखिए, फिर कभी आपको सोचना नहीं पड़ेगा कि खुशियाँ कहाँ हैं, क्योंकि हर जगह खुशियों का बड़ा बड़ा अंबार लग...
श्राद्ध दिवस
कविता

श्राद्ध दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! फिर इस बार भी श्राद्ध दिवस की दिखावटी ही सही औपचारिकता निभाते हैं, सामाजिक प्राणी होने का कर्तव्य निभाते हैं। जीते जी जिन पूर्वजों को कभी सम्मान तक नहीं दिया बेटा, नाती, पोता होने का आभास तक महसूस न किया, अपने पद प्रतिष्ठा और सम्मान की खातिर, बिना माँ बाप के खुद के अनाथ होन का प्रचार तक कर दिया। जिनकी मौत पर मैं नहीं रोया उनकी लाश तक को अपने कँधों पर नहीं ढोया, क्रिया कर्म को भी ढकोसला और फिजूलखर्ची के सिवा कुछ भी नहीं समझा। पर आज जाने क्यों मन बड़ा उदास है, एक अजीब सी बेचैनी है जैसे पुरखों की आत्मा धिक्कार रही है, लगता है श्राद्ध का भोजन माँग रही है। आखिर श्राद्ध का भोज मैं किस-किस को और क्यों कराऊँ? जब औपचारिकता ही निभानी है तो भूखे असहायों को खिलाऊँ मेरे मन का बो...
मन से जीत का मार्ग
आलेख

मन से जीत का मार्ग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  एक कहावत है 'हौंसलों से उड़ान होती है, पँखों से नहीं'। यह महज कहावत भर नहीं है। अगर सिर्फ कहावत भर होती तो आज अरुणिमा सिन्हा, सुधा चंद्रन, दशरथ माँझी और हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ही नहीं बहुत सारे अनगिनत लोग सुर्खियों के बहुत दूर गुमनामी में खेत गये होते। मैं अपना स्वयं का उदाहरण देकर स्पष्ट कर दूँ कि जब २५.०५.२०२१ को जब मैं पक्षाघात का शिकार हुआ तब चारों ओर सिवाय अँधेरे के कुछ नहीं दिखता था। शायद ही आप सभी विश्वास कर पायें। कि यें अँधेरा नर्सिंग होम पहुँचने तक ही था, लेकिन नर्सिंग होम के अंदर कदम रखते ही मुझे अपनी दशा पर हंसी इस कदर छाई, कि वहां का स्टाफ, मरीज और उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है। फिर भी मुझे जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ ...
रिश्तों की डोर
लघुकथा

रिश्तों की डोर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सत्य घटना पर आधारित लघुकथा जीवन में कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। समान कार्य क्षेत्र के अनेक आभासी दुनियां के लोगों से संपर्क होता रहता है। जिनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो वास्तविक रिश्तों के अहसास से कम नहीं है। मेरे वर्तमान जीवन में इनकी संख्या भी काफी है, जो देश के विभिन्न प्राँतों से हैं। एक दिन की बात है कि आभासी दुनिया की मेरी एक बहन का फोन आया, उसकी बातचीत में एक अजीब सी भावुकता और व्याकुलता थी। बहुत पूछने पर उसनें अपने मन की दुविधा बयान करते हुए कहा कि मैं समझती थी कि आप सिर्फ़ मेरे भैया है, मगर आप तो बहुत सारी बहनों/भाइयों के भी भैया हैं। तो मैंने कहा इसमें समस्या क्या है? उसने लगभग बीच में ही मेरी बात काटते हुए कुछ यूँ बोली, जैसे उसे डर सा महसूस हुआ कि कहीं मै न...
ईश्वर के नाम पत्र
व्यंग्य

ईश्वर के नाम पत्र

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवीय मूल्यों का पूर्णतया अनुसरण करते हुए यह पत्र लिखने बैठा तो सोचा कि सच्चाई भी लिखता चलूं। उससे भी पहले अपने स्वभाव की औपचारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरी तरह स्वार्थवश आपके चरणों में दिखावटी शीष भी झुका रहा हूँ, ताकि आप कुपित होकर भी मेरा अनिष्ट करने की सोचो भी मत। क्योंकि आप मानव तो हो नहीं, ये अलग बात है कि प्रभु जी आज भी पुरानी विचारधारा में मस्त हो।अरे अपने कथित महल/कुटिया/धाम से बाहर निकलिए, तब देखि कि दुनियां और हम मानव कहाँ तक पहुंच गये हैं, कितना विकास कर लिया है। मगर सबसे पहले एक मुफ्त की सलाह है कि बस अब लगे हाथ एक एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लीजिए, बैठे सारी दुनियां का समाचार लीजिए, कुछ चैट शैट कीजिये, अपनी एक यूट्यब चैनल बनाइए, पलक क्षपकते ही किसी से बातें करिए। कारण कि अब पत्र लिखना भी छूट...
मुंशी प्रेमचंद
कविता

मुंशी प्रेमचंद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** लमही बनारस में ३१ जुलाई १८८० को जन्में अजायबराय, आनंदी देवी सुत प्रेम चंद। धनपतराय नाम था उनका लेखन का नाम नवाबराय। हिंदी, उर्दू, फारसी के ज्ञाता शिक्षक, चिंतक, विचारक, संपादक कथाकार, उपन्यासकार बहुमुखी, संवेदनशील मुंशी प्रेमचंद सामाजिक कुरीतियों से चिंतित अंधविश्वासी परम्पराओं से बेचैन लेखन को हथियार बना परिवर्तन की राह पर चले, समाज का निचला तबका हो या समाज में फैली बुराइयाँ पैनी निगाहों से देखा समझा कलम चलाई तो जैसे पात्र हो या समस्या सब जीवंत सा होता, जो भी पढ़ा उसे अपना ही किस्सा लगा, या अपने आसपास होता महसूस करता, उनका लेखन यथार्थ बोध कराता समाज को आइना दिखाता, शालीनता के साथ कचोटता चिंतन को विवश करता शब्दभावों से राह भी दिखाता। अनेकों कहानियां, उपन्यास लिखे सब में कुछ न कुछ...
देशप्रेम
कविता

देशप्रेम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज हम सब को एक साथ आना होगा मिलकर ये सौगंध सभी को लेना होगा, देशप्रेम का चढ़ रहा जो छद्म आवरण उससे हम सबको बचना बचाना होगा। ओढ़ रहे जो देश प्रेम का छद्म आवरण नोंच कर वो आवरण नंगा करना होगा, देशप्रेम के नाम पर भेड़िए जो शेर हैं ऐसे नकली शेरों को बेनकाब करना होगा। देशभक्तों पर उठ रही जो आज उँगलियाँ उन उँगलियों को नहीं वो हाथ काटना होगा, देश में गद्दार जो कुत्तों जैसे भौंकते है, ऐसे कुत्तों का देश से नाम मिटाना होगा। जी रहे आजादी से फिर भी कितने हैं डर डर का मतलब अब उन्हें समझाना होगा, देश को नीचा दिखाते आये दिन जो गधे हैं रेंकते, ऐसे गधों को अब उनकी औकात बताना होगा। उड़ा रहे संविधान का जब तब जो भी मजाक भारत के संविधान का मतलब समझाना होगा, समझ जायं तो अच्छा है देशप्रेम की बात वरना समुद्र...
पद का मद
आलेख

पद का मद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  'मद' अर्थात 'घमंड' जी हाँ ! जिसका फलक विस्तृत भी है और विशाल भी।सामान्यतः देखने में आता है कि पदों पर पहुंचकर लोग खुद को शहंशाह समझने लगते हैं, पद के मद में इतना चूर हो जाते है कि अच्छे, बुरे, अपने, पराये का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं।वे इतने गुरुर में जीते हैं कि वे ये भूल जाते हैं कि पदों पर रहकर पद की गरिमा बनाए रखने से व्यक्ति की गरिमा पद से हटने के बाद भी बनी रहती है। लेकिन पद का अहंकार कुछ ऐसा होता है कि लोग खुद का खुदा समझ बैठते हैं। ऐसे लोगों को सम्मान केवल पद पर रहते हुए ही मिलता है, लेकिन दिल से उन्हें सम्मान कोई नहीं देता। जो देते भी हैं, वे विवश होते हैं अपने स्वार्थ या भयवश और चाटुकारों की फौज उनका महिमामंडन और अपना हित साधती रहती है। ऐसे में पद के मद में चूर व्यक्ति इसी को अपनी छवि, अधिकार ,कर...
एक पल
आलेख

एक पल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है। इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"। कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में अधिकांशतः हम लापरवाही में, भ्रमवश भले ही एक पल को अधिक भाव नहीं देते, परंतु हम सबको कभी न कभी इस एक पल के प्रति अगंभीरता, लापरवाही अथवा अनजानी भूल की भारी कीमत चुकानी पड़ जाती है। बहुत बिर मात्र एक पल के साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उसका विस्मरण असंभव सा होता है। वह अच्छा और खुशी देने वाला भी हो सकता है और टीस देता रहता ग़म भी। उदाहरण के लिए एक पल की देरी से ट्रेन छूट जाती है, एक पल की लापरवाही या मानवीय भूल बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, धावक विजयी हो जाता है और नहीं भी होता। एक पल में लिए निर्णय से जीवन की दशा और दिशा बदल जाता। बहुत बार एक पल के आगे या पीछे के निर्णय अविस्मरणीय खुशी ...