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मां का आंचल
कविता

मां का आंचल

साधना मिश्रा विंध्य लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आंचल में आकर छुपी जब भी मानी हार। दे दुलार उत्साह को भरदे मां का प्यार।। रोती आंखों में सजे जुगनू सा प्रकाश। जब मां आंचल प्यार का मुख पर देती डाल।। आंचल मां का जब छिना सुना सब संसार। रिश्ते खारे लग रहे जैसे हो अंगार।। मां के आंचल की समता कर ना सके संसार। जीती हारी बाजी का मां न करे व्यापार।। मां का आंचल मौन से समझे मौन की बात। कभी दृश्य कभी अदृश्य रहे सदा ही साथ।। परिचय :- साधना मिश्रा विंध्य निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...