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वो मज़ा कहां ..
कविता

वो मज़ा कहां ..

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** इस शहरी परिपाटी में उस माटी सा मज़ा कहांॽ गैस पर सिकी रोटियों में कंडो की बाटी सा मजा कहांॽ "कहां मजा है उन गांव के कच्चे कच्चे रास्तों का इन चौड़ी-चौड़ी सड़कों पर वो पगडंडी सा मज़ा कहां कहां मज़ा है यहां वो नारंगी कुल्फी खाने में, यहां गर्मियों में वैसा वो लस्सी की हांडी सा मज़ा कहां उन पेड़ों की धूप-छांव सा इन इमारतों में मज़ा कहां वहां के मंदिर-मस्जिद यहां इबादतो में मज़ा कहांॽ "कहां मजा है यहां वैसी शरारतें करने में यहां के लोगों में वैसी चुलबुली आदतों सा मज़ कहांॽ गाय के बछड़े केसर को चूमने सा मजा कहांॽ फ़सल निकलने के बाद काले खेतों में घूमने सा मज़ कहांॽ "कहां मजा है बहती नदी में यहां पैदल-पैदल चलने का, मस्त हवा में रोज़ रात को आंगन में घूमने का मज़ा कहांॽ इस शहरी परिपाट...
मुड़ कर चले गए
कविता

मुड़ कर चले गए

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा नहीं है कि बहुत खुश हूं मैं, क्योंकि जो ख्वाब सजा कर आंखों में, छोड़ कर चले गए वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। लोग तो कहते रह गए कि मानो बाग में से कोई फूल तोड़ कर ले गया, मानो हमारी और आते मंद पवन के झोंके को कोई मोड़ कर ले गया, अरे वो तो यूं गए मानो पंछी पेड़ से उड़ कर चले गए वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। सब कहते रहे कि पिछले जन्म का कर्ज था शायद वही चुकाने आए थे,, इतनी ही जीवन रेखा थी उनकी उसमें भी वो खुशियां तमाम लाए थे,, वो गए मानो धरती के आंचल से पौधे उखड़ के चले गए वो खास है मेरे जो मुड़ कर चले गए ।। यह कविता लिखते लिखते मेरी आंखों में आंसू उमर कर चले गए, वो खास थे मेरे जो मुड़कर चले गए।। परिचय :- साक्षी उपाध्याय आयु : १५ वर्ष निवास : इ...
माफ़ी
कविता

माफ़ी

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या संभालेगा ये बेदर्द ज़माना तुम्हें, जो जताता है झूठी मुहब्बत तुम्हें, अच्छा हुआ जो तुमने हमसे नफरत की, हम देते हैं बेपनाह नफरत करने कि इजाज़त तुम्हें। जब तुम्हारे खिलाफ होगा ये ज़माना, तो तुम लौट के आ पाओगे क्याॽ एक दिन तुमने हमसे दगा किया था, अपना चेहरा भी हमें दिखा पाओगे क्याॽ अगर तुम्हें हमारी ज़रा भी परवाह है, तो सुनो सुनाते हैं सच्ची बात तुम्हें कई बार डुबा देते हैं तुम्हारे दिल के जज़्बात तुम्हें। अगर तुम अपनी सारी खताओं को कुबूल करते हो, तो हम देते हैं माफ़ी, तोहफा-ए-खैरात तुम्हें ।।.. परिचय :- साक्षी उपाध्याय आयु : १५ वर्ष निवास : इन्दौर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
दिखावा
कविता

दिखावा

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीतते तो हौसलों से है, यह हथियार तो सिर्फ दिखावा है।। मगर यह मत समझ लेना कि सिर्फ हम गद्दार हैं, जानते हैं हम, कि तुम भी हमसे दुश्मनी निभाने आए हो, यह दोस्ती का इज़हार तो सिर्फ दिखावा है।। हम जानते हैं तुम्हारा असल चेहरा कुछ और है , यह श्रंगार तो सिर्फ दिखावा है।। जिंदगी गमों का दरिया है जो नहीं है कम, अंदर से टूटे से हैं अश्कों से आंखें हैं नम, फिर भी यह जो मुस्कुराहट है ना बरकरार यह तो सिर्फ दिखावा है।। परिचय :- साक्षी उपाध्याय आयु : १५ वर्ष निवास : इन्दौर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाया...
झांसी के मैदानों में
कविता

झांसी के मैदानों में

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** उन झांसी के मैदानों में यूं लड़ी वीर वह रानी, पर वो कहां जानती थी, अपना स्वाभिमान बचाने, पड़ेगी उसको जान गवानी। घोड़े पर हो सवार, चल दी वह स्वतंत्रता सेनानी। बालक को बांधा था पीठ पर, थी वह ऐसी दीवानी।। मानो काली का खप्पर भरने की, उसने सौगंध खाई थी, अंग्रेजी दुश्मनों गद्दारों को, औकात दिखाई थी। विवाह के समय वह, शायद थोड़ी घबराई हो, पर ऐसा एक क्षण भी ना था, जब वह युद्ध में घबराई थी।। वह स्वयं में ही कालका थी, रणचंडी खप्पर वाली थी, केवल युद्ध कला में ही नहीं अपितु रूप में भी मत वाली थी, वीर योद्धा की भांति लड़कर, अंततः उसने वीरगति पाली थी।। ऐसी लड़ी वीर वह जैसे दरिया हो तूफानी, आज भी दोहराते हैं हम उसकी युद्ध कहानी। मणिकर्णिका नाम था उसका थी झांसी की रानी, सदियां याद रखेंग...