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Tag: सरिता सिंह

खूबसूरत दुनिया
कविता

खूबसूरत दुनिया

सरिता सिंह गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था जहां न थी कोई बन्दिशें, न बेड़ियों ने मुझे रोका था। आज़ाद पंछी की तरह भरी थी ऊंची उड़ान मंज़िल की राहों से नहीं थी मैं अंजान। अंधेरे रास्तों पर रोशनी की लेकर मशाल खड़ी थी एक बड़ी भीड़ विशाल। देने मुझे हौसला, कि उन्हें मुझ पर भरोसा था, वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था। हर कदम विश्वास की, रोशनी का था मेला , हर तरफ थी मुस्कुराहट, न था कोई अकेला। न किसी की शख्सियत पे, था किसी का तंज़ न किसी के आँखों में, था कोई भी रंज। हर तरफ से खुशियों के समाने का झरोखा था वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था पर जो देखा सत्य है वो, या कोई सपना था ? है भरम मन का मेरे या ख्वाब टूटा अपना था खोल आँखें ढूंढती हैं, फिर वही दुनिया नई जिसकी चाहत में निगाहें ...
योग दिवस पर रचना
कविता

योग दिवस पर रचना

सरिता सिंह गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** भले स्वास्थ्य का दे जो दान। दीर्घायु का जो दे वरदान। सबसे अच्छी पूंजी योग। जटिल रोग का करे निदान। हर बीमारी का उपचार। योग करे न रहे लाचार। सर्वोदय का अमृत पाओ। शुद्ध रक्त का हो संचार । योग करें हर रोगों को दूर। मिले नित्य उर्जा भरपूर। कुछ पल खुद के लिए भी स्वस्थ रहने का नियम हुजूर। सुबह सवेरे उठ करिए योग। यह रखे काया स्वस्थ निरोग। लंबी आयु का मिले वरदान। दुख दरिद्रता और कांटे रोग। योग से ह्रदय आए ताज़गी। शांत चित्त हो, रहे सादगी। नित्य कांति निखरे चेहरे की व्यवहार भी आए संजीदगी। परिचय : सरिता सिंह निवासी : गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
नेकी
कविता

नेकी

सरिता सिंह गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** नेकी कर दरिया में डाल, सदा नेकी है धर्मार्थ। मिले नेकी का बदला जग में नेकी है परमार्थ। नेकी करे जीवन सफल हो मिले सदा सम्मान गिरे वक्त फिर मिले मदद जो पूरा हो अरमान।। निजी स्वार्थ में जो-जो रहे खोते सदा विवेक प्रभु की भक्ति मिले नहीं, मिले ना कृपा एक। तज लोभ माया सदा जो नेकी करे इंसान । क्षोभ नहीं होता उसे, यश मिलता सदा जहान। परिचय : सरिता सिंह निवासी : गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
आई होली चढ़ा भंग
छंद, धनाक्षरी

आई होली चढ़ा भंग

सरिता सिंह गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आई होली चढ़ा भंग, सतरंगी चढ़ा रंग। गले मिल मिल कर, हर्ष खूब लीजिये गुजिया मिठाई खाए, पापड़ कचौड़ी खाए। पकवान चख चख, पेट भरे लीजिये जीजा और साली संग, देवर और भाभी संग। अबीर गुलाल मले, मजा खूब लीजिये लिए रंग पिचकारी, भरे सभी किलकारी। खेल रंग बच्चों संग, बच्चा बन लीजिये लाल,पीले रंग डाल, रंगे आज मुख गाल। अपना पराया भूल, होली आज लीजिये। जात पात रंग भूल, रंग की उड़ाई धूल। भाई-भाई बनकर, बैर मिटा लीजिये। भूलकर बैर भाव, अच्छा करके स्वभाव। एक दूजे घर जाके, रिश्ता निभा लीजिये। परिचय : सरिता सिंह निवासी : गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...