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खूबसूरत दुनिया
कविता

खूबसूरत दुनिया

सरिता दीक्षित हैदराबाद, (तेलंगाना) ******************** वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था जहां न थी कोई बन्दिशें, न बेड़ियों ने मुझे रोका था। आज़ाद पंछी की तरह भरी थी ऊंची उड़ान मंज़िल की राहों से नहीं थी मैं अंजान। अंधेरे रास्तों पर रोशनी की लेकर मशाल खड़ी थी एक बड़ी भीड़ विशाल। देने मुझे हौसला, कि उन्हें मुझ पर भरोसा था, वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था। हर कदम विश्वास की, रोशनी का था मेला, हर तरफ थी मुस्कुराहट, न था कोई अकेला। न किसी की शख्सियत पे, था किसी का तंज़ न किसी के आँखों में, था कोई भी रंज। हर तरफ से खुशियों के समाने का झरोखा था वो दुनिया इतनी खूबसूरत होगी, ऐसा न मैंने सोचा था पर जो देखा सत्य है वो, या कोई सपना था ? है भरम मन का मेरे या ख्वाब टूटा अपना था खोल आँखें ढूंढती हैं, फिर वही दुनिया नई जिसकी चाहत मे...