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आहिस्ता-आहिस्ता
कविता

आहिस्ता-आहिस्ता

संजीव कुमार बंसल पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) ******************** आहिस्ता-आहिस्ता क्यों बदल जाते हैं लोगों के चेहरे! आहिस्ता-आहिस्ता लेकर इम्तिहान- क्यों होते हैं सवेरे! आहिस्ता- आहिस्ता ही जिंदगी- क्यों आती है समझ! जलते चिराग पड़ने पर जरूरत- अक्सर क्यों जाते बुझ! आहिस्ता-आहिस्ता मिल ही जाता है-हर समस्या का हल, तू मान मेरी बात, आहिस्ता- आहिस्ता ही होगा तू सफल। आहिस्ता-आहिस्ता बनता है समुद्र में- जो तूफानी ज्वार, भाटे के रूप में जाएगा आहिस्ता- आहिस्ता, कर ऐतबार। गंदे पानी में जो होती है गंदगी अपार, उसे हिलाना नहीं, गंदगी सब बैठेगी आहिस्ता- आहिस्ता, बस करना इंतजार। परिचय :- संजीव कुमार बंसल निवासी : पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...