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फौजी का दर्द
कविता

फौजी का दर्द

संजय सिंह मीणा करौली (राजस्थान) ********************                  (गोली लगने के बाद) गोली लगते ही वीरा को माता की याद सताई है बीवी का प्यार भी याद आया बच्चे की हंसी खुदाई है भाई की यादों में भाई जब अश्क बहाने लगता है बहना प्यारी सी चिडिया है ये सोच सोच के रोता है। उड गया पंक्षी लुट गया मेला कुछ देर सांस बस अटकी है अपशकुन हो गया बीवी को जब फूटी कोरी मटकी है माता की आंखों का तारा पलभर में छलनी कर डाला बापू का पत्थर जैसा दिल भी आंशू रूपी भर डाला। जब खबर गांव मे पहुंची है वीरा ने देह त्यागी है माता बहना बेहोश गिरी बवी भी बाहर भागी है कहाँ गया छोड के ओ साथी तूने धोका मुझसे कर डाला जीना मरना था साथ अकेले केसे छोड चला जारा। बापू की छाती फ़टी निकल गई गंगा रूपी जलधारा बहना चिल्लाई ओ भैया अब तुने ये क्या कर डाला माता जी पागल हुई पडी बेटा बेटा चिल्लाती है छोटी सी अनजानी बच्ची पापा-पाप...
सवेरा
कविता

सवेरा

संजय सिंह मीणा करौली (राजस्थान) ******************** निशा नाश की नीव लगी तब, समझो उदित हुआ उजियारा। दैत्य प्रसंग विलुप्त भए तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा।। हुई यामिनी, लुप्त बिलख कर, तारे चांद को निद्रा आई। भोर की प्रीत, पड़ी अंबर से, शीतल मंद, पवन उठ आई। पीत रंग, में रंगा दिवाकर, जगा, जगत का पालनहारा, दैत्य प्रसंग, विलुप्त भये तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा.... खग, नभ में भये प्रसन्न चित्त तब, कृषक, वृषभ ले चला सुखियारा। पनघट, रंग बिरंग भयो तब, पुष्प प्रतीक भए किलकारा। बजी पुण्य आवाज शंख की, शुरू हुए आदर सत्कारा,, दैत्य प्रसंग विलुप्त हुए तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा.... विघ्न विनाशक मंगल दायक, नवरत्न, पूरक गणनायक। नित उम्मीद जगे नवज्योति, तमस को, भोर भयो खलनायक। विश्व, निशा से मुक्त भयो तब, ज्योति अलख जगाए सवेरा, दैत्य प्रसंग विलुप्त भये तब, किरणों ने, धरा पर, पैर पसारा।।...