Saturday, September 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: संजय कुमार नेमा

माँ
कविता

माँ

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां सारे पुण्यों का परिणाम हो तुम, इस संसार में आया जब मेरे कोरे मन पर, लिखा पहला नाम हो तुम। स्मृति में तुम्हारी भूली बिसरी आती हैं यादें। यादों से आंखें नम हो जाती है। आपकी त्याग, तपस्या, कर्तव्य निष्ठा, स्नेह की तस्वीर, नजर आती है। सब-कुछ पा कर भी तुम्हारी, कमी रह जाती है। बीते तुम्हारे दिनों की, सदा याद आती है। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
भक्त और भगवान
स्तुति

भक्त और भगवान

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्रभात वंदना में विनती, अरज सुन लो श्याम जी। भक्त और भगवान की लड़ाई है, अब तुझे सुनना ही पड़ेगा। भक्त की अरज सुन लो, श्याम जी यशोदा मैया के दरबार में, हाजिरी लगाउंगा। भक्त और भगवान की लड़ाई है श्याम जी, यशोदा के दरबार में हार जाओगे। भक्त और भगवान की लड़ाई है तुम्हें सुनना ही पड़ेगा। न सुनोगे तो श्याम जी जन्मो तक लड़ता जाऊंगा। भक्त की अपील सुन लो वरना राधा रानी से अर्जी लगाउंगा । जारी होगा तुम्हें सम्मन भक्त की विनती को सुनना पड़ेगा । भक्त की अरज सुन लो श्यामजी, यशोदा के दरबार में आना पड़ेगा। श्याम जी यशोदा के दरबार में ऐसी दलील दूंगा, भक्त की लड़ाई है, अब तो श्याम जी हार जाओगे। यशोदा के दरबार में रूक्मिणी जी से ऐसी अपील करवाउंगा, भक्त के पक्ष में होंगे सारे फैसले, मेरे श्यामजी...
मेरी कल्पना से
भजन

मेरी कल्पना से

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी कल्पना से, प्रभु तुम्हारी, छवि बनाता रहूं। प्रभात वंदना में तुम्हारे दर्शनों को करता रहूं। सुमिरन कर चिंताओं को, प्रभु चरणों में रखता। प्रभु भक्ति में तुम्हारी नित, नई छवि बनाता। कल्पनाओं में डूबा, नए-नए विचारों को रखता। भक्ति से अपनी अरज को लगाता। तेरी कल्पनाओं में प्रभु दर्शन को पाता। कभी छलिया तो भोले भंडारी कहता। इसी बहाने कल्पनाओं में प्रभु दर्शन करता। प्रभु दर्शन में नित नित सुंदर छवि बनाता। मांगू यही, मेरी कल्पनाओं में दर्शन देते रहना। प्रभु कृपा बनाए रखना। दिल मैं छवि बनाए रखना। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्...
प्रभात वंदना
स्तुति

प्रभात वंदना

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे प्यारे कृष्ण कन्हैया, अब तो बसो स्मृतियों में। भक्ति मैं डूबा प्रभु, श्री चरणों में रचे बसाये रखना। स्मृतियों की नैया में, भवसागर से पार लगा देना। प्रभात वंदना में, अब कृष्ण कन्हैया आए। प्रभु के अलौकिक दर्शन पाए, मन को कितने हर्षाये। स्मृतियों में डूबा बैठा कुंज-गली में, प्रभु के सुंदर दर्शन पाए। प्रभात वंदना मैं मांगू वर, प्रभु चरणों में जीवन रमता जाए। जीवन उपवन में बजती रहे, स्मृतियों की मधुर मुरलिया। खिलें पुष्प बगिया में, खुश्बू बिखेरें स्मृतियों में। प्रभु स्मृति भाव बनाये रखना। श्री चरणों में बसाये रखना। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
पनिहारिन
कविता

पनिहारिन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दिखती नहीं कोई पनिहारिन लंबी-लंबी पगडंडी सूनी है। ना पनघट बचे ना पानी है। ना चमचमाती घघरी है। गोरी पनिहारिन अब दिखती नहीं । सिर पर सजी चुनरी, दिखती नहीं। कमरिया पर गघरी दिखती नहीं। हिरनी सी चाल में दिखती नहीं। पग पैजनिया से घुंघरू बजते नहीं। तीखी कजरारी आंखें चमकती नहीं। केशों में लिपटा गजरा दिखता नहीं । गजरों की भीनी खुशबू आती नहीं। अब न पनघट बचे ना पनिहारिन है। पैजनिया से घुंघरू बजते नहीं। पनघट वाली तिरछी गली गुलजार न रही। सूना कोना अब मुलाकातें, यादें रही। हिरनी की चाल सा न कोई दिखाता। तिरछे नैनो में काला कजरा, न दिखता। तिरछे नैनो से पनिहारिन को कौन बुलाता। पपीहा भी पियू कर शांत हो जाता । कोयल भी कुहू कुहू कर उड़ जाती है । पनघट पर चाहूं ओर घोर उदासी है। गांवों की यादें अब भी बाकी है। पनिहारिन ...
वसंत की बहार
कविता

वसंत की बहार

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** वसंत की बहार, रंगो की फुहार, गुलाल की वर्षा खुशियों की बौछार। चंदन की खुशबू , अपनों का प्यार होली का त्योहार। होली के रंगों में रंगे हम। खुशियों का त्योहार है, अपनत्व पन के गीतों से रिश्तौं में, घुल जाये प्यार का गुलाल। चारों और गुलाल उड़े, कभी प्रेम का रंग न छूटे। दिलों से मिलने का त्योहार आया। सदा खुश रहें अपनों के संग। प्यार के रंग से भरो पिचकारी। रंग न जाने जात पात की होली। हर गालों में गुलाल लगे गुजिया पकवानों संग थाल सजे। गली-गली भांग घुटे अपनों का प्यार देख, चांद से चांदनी बोली, खुशियों से भरी रहे सबकी होली। दिलों को मिलाकर गले से लगाकर बसंत की बयार चले अपनों के प्यार को प्यार से रंग दो यही है होली। दूरियां, नाराजगी मिटाने की यही है होली। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : ...
शब्दांजलि
कविता

शब्दांजलि

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा तस्वीर में ही रहा। तस्वीर में छलकते चेहरे को निहारता।। अब अपने मन को समझाता। तस्वीर की झूलती माला को असहाय से देखता ।। भूली बिसरी यादों को अपनी यादों से जोड़ता। मां के आशीषों एवं आंचल को खोजता।। यादों में खोकर बीते कल को खोजता। अब तुम्हारी यादों में आंसुओं को बहाता।। अपनी नई-नई बातों को तुमसे जोड़ता। बीते कल को तुमसे जोड़ता।। अब तुम्हारे बिना अपनी ख्वाहिश किसको बताऊं। अपनी मुश्किलों और दुख किसको सुनवाऊं।। मां तुम्हारे बिना अपना वजूद बचा ना सका। अब अपनी जिद्द किसी से पूरी करवा न सका।। अपने नए नए सपने, खुशियां किसी को बतला ना सका।। अब मुझे घर में गले से लगाने वाला ना रहा। मेरी आवाज को सुनने वाला कोई ना रहा।। अपनी सफलता का जश्न मनाने वाला, कोई ना रहा। अब तुम्...
ये सांसें अनमोल हैं
कविता

ये सांसें अनमोल हैं

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ये सांसें बहुत अनमोल हैं देह के भीतर जाती है बहुत पीड़ा पाती है। पीड़ा पाकर ही यह आतीं हैं। जब सांसे अहंकार से मुलाकात कर बैठी तो जीवन में दुःख ही पाती है। ये सांसें गिनती की मिली हैं ये सांसें अनमोल हैं। इस धरा पर आयें हैं इसका ध्यान रखना है। एक-एक सांस का हिसाब रखना है। इससे पहले देह का इनसे नाता छूटे, इन सांसों का हिसाब रखना है। ये सांसें अनमोल हैं। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करव...
नौं दिन माता रानी के
भजन, स्तुति

नौं दिन माता रानी के

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नवरात्र का त्योहार मां की शक्ति और भक्ति का आया। सब मिल करें नौं दिन माता रानी के, विविध स्वरूपों की आराधना एवं साधना। प्रथम दिवस होती पर्वतराज शैलपुत्री की आराधना। द्वितीय दिवस आती, देवी ब्रह्मचारिणी अपने स्वरूप का दर्शन देने।। जप की माला एवं कमंडल लेकर। तीसरा दिवस आता देवी चंद्रघंटा स्वरूप का, वाहन है इनका शेर। असुरों के सहार के लिए।। हाथों में सजते सभी अस्त्र-शस्त्र। चौथा दिवस करते पूजा माता के कुष्मांडा स्वरूप के। इनके स्वरूप में समाया पूरा ब्रह्मांड का तेज, अपने स्वरूप में ही पायी तेजस्वी जगत आभा की। पांचवा दिवस आता आराधना का देवी के स्कंदमाता स्वरूप का।। माता दर्शन देती ममत्त्व का,‌ बैठी गोद में लेकर बालक रूप भगवान स्कंद का। छठवां दिन आराधना का आया माता दर्शन देती कात्यायन...
मेरे गजानन पधारे
भजन, स्तुति

मेरे गजानन पधारे

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** शिव पार्वती के लल्ला गजानंद पधारो।। मेरे अंगना गजानन पधारो। दस दिनों के आराधना के पर्व लेकर।। गजानन भादो मास की चतुर्थी पर, खुशियों उमंगो संग हमारे गजानन पधारे। मूषक वाहन संग घर घर गणपति जी विराजे।। शिव पार्वती के लाडले मेरे गजानन पधारे। खुशियों उमंग संग, ढोल बाजे संग हमारे गजानन पधारे। बड़े-बड़े पंडालों में गणपति सजकर विराजे।। गणपति जी के माथे पर तिलक सिंदूर साजे । मोदक लड्डू संग भर-भर थाल भोग लगाते।। केला कदली और मेवा गणपति जी को भाते। प्रथम पूज्य प्रभु विघ्नहर्ता कहलाते। अपने शरीर के अंगों से बुद्धि विनायक।। तीन लोकों, को बिन बोले ज्ञान देते। बड़ा माथा तेज बुद्धि नेतृत्व क्षमता दिखलाते। छोटी आंख से देख सुनकर निर्णय लेने की, सीख देते। सूप जैसे कान हिला कर संदेश देते।। कभी किसी की बुराई मत सुनो।...
हे वतन तुझको नमन
कविता

हे वतन तुझको नमन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जब तक है जीवन, तिरंगा शान से फहराते रहें। हमेशा तिरंगा उन्मुक्त गगन में, शान से लहराता रहे। तीन रंगों से, रंगे मेरे तिरंगे की आन-बान शान बनी रहे। हमारा तिरंगा कभी झुके नहीं।। हमेशा शान से लहराता रहे। मौका मिला तो इसके लिए मर मिट के दिखलाएंगे। देश की सुरक्षा के खातिर शस्त्र उठायेंगे। मेरे वतन का तिरंगा शान से लहराता रहे। अभिलाषा मेरी तेरे कफन में लिपट कर मुझे सीमा से लायेंगे। यही है जुनून मेरा, देश के खातिर, वीरगति पर फूलों के, अंकुरित पौधों से, बने सुन्दर न्यारी प्यारी बगिया। जिसे देख भारत माता के सपूत हों शूरवीर अनेकों-अनेक। मेरे वतन का तिरंगा लहराता रहे। हे आखरी अभिलाषा, कभी कोई दुश्मन सीमा रेखा के अन्दर ना आने पाये।। नजर न उठाने पाये। मेरे वतन के सीने पर हमेशा तिरंगा लहराता रह...
दोस्ती की डोर
कविता

दोस्ती की डोर

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दोस्ती की डोर थामे रखना। दिल की बातें तुम हमारे दिल में बनाए रखना। दोस्त वही शख्स होता है जिसे हम चुनते हैं। दोस्ती को हमेशा इसी दुनिया में रचाते बसाते है।। परिवार से मिला कर रखते है। हे दोस्त मझसे संबंध बनाएं रखना। मुझे सीने से लगाये रखना।। मेरे दोस्तों ऐसा फूल सजाकर रखना। हमेशा हंसी-खुशी, सुख-दुख में खुशबू देते रहना। हे दोस्त खिलखिला कर साथ बनाये रखना। मेरे दोस्त मुश्किलों में, साथ बनाएं रखना। सच्ची दोस्ती, दोस्ती को जीवन भर मिठाई सी मिठास बनाए रखना।। दोस्ती की डोर थामे रखना। अब मेरे तरह, तरह के जीवन के दोस्त।। मेरे स्कूलों के दोस्त, कॉलेजों के दोस्त, मोहल्ले के दोस्त। अपनी दोस्ती बनाए रखना।। एक दूसरे का जीवन दीपक जलाए रखना। 🙏 दोस्ती की डोर बनाए रखना। अब मेरी चिंताएं बढ़ी,मुलाकातें कम हो रही। ...
राखी की छटा
कविता

राखी की छटा

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** भाई बहन का परस्पर विश्वास, राखी का त्यौहार आया।। शब्दों का नहीं पवित्र बंधन का त्यौहार लाया। बचपन की याद, मिठाई की मिठास दिलाती है राखियां।। सावन का त्यौहार बहनों का खास दिन, लाए ये राखियां। अटूट प्रेम का भाव है राखियां।। भाई की कलाई की शान है यह राखियां। राखी के त्यौहार संग बहनों का साथ।। बहनों की रक्षा का वचन दे भाई का हाथ। अब बहना क्यों ना इतराए राखी के साथ।। सज संवर कर बहने अब मायके आई। घर की खुशियां बहनों की राखी संग आई।। मीठे पकवानों की सुगंध भैया के मन को भाई। खुशियां उमंगों संग भाई की कलाई को सजाती है राखियां।। भाई बहन का बंधन प्यार एवं विश्वास को बढ़ाती है ये राखियां। माथे पर तिलक लगाकर भाई के गौरव को बढ़ाती यह राखियां।। राखी की छटा देखते मांभी झूमे संग संग। परिचय :- संजय कुमार नेमा...
सावन
कविता

सावन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** सावन की झड़ी संग नाचे मेरा मन। बदरा भी ढोल बजाए। आराधना के तीज त्यौहार लेकर, मेरे महादेव चौमासे पर आये। देख नजारे नयना से मौसम का, मन भी कितना भाये।। सावन, खुद महादेव को जल चढ़ाने आये। बदरा भी ढोल बजाये।। सावन की घटा संग नाचे मयूर मन। झरते, झरने हरियाली भी मन को रिझाये।। बरसे सावन की घटायें। नाचे मन मयूर संग। सावन की हरियाली तीज पर, पेड़ों की डाली भी, झूम कर झुक-झुक जायें। हरियाली की चुनरी से श्रृंगार कर, धरा को घुंघट उढायें। बरसे सावन की घटाएं।। जिसे देख नाचे मेरा मन। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच ...
किताब मैं तस्वीर
कविता

किताब मैं तस्वीर

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** किताबों मैं तेरी तस्वीर छुपा दी थी कभी तस्वीर नहीं दिखती खोजता हूँ तुझे अब किताबों में। हाथों की लकीरों में तेरा नाम देखूं अब यादों में कहीं उनका जिक्र हो । भीगी पलकों से याद करते हुए तुम्हें खोजा चाहत ही रही । तुम्हें पाने की ... किताबों में छुपी तस्वीरें अब सपने में ही देखता अब तो अनजान रिश्तों के लिए बेचैन हूं। ढूंढता हूँ तस्वीर को जो किताबों में छुपा दी। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
नदी नदियां
कविता

नदी नदियां

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** पर्वतों से निकलकर प्रवाहिनी, अविरल बहती उछलती कूदती, अपने पथ को तलाशती। पतली सी मासूम सी जलधारा में पानी बचा शेष। घुटनों भर पानी से भिंगोकर हो जाते पार। अब हम हो रहे मायूस।। लुप्त हो रहे जंगल सूख रही वाटिकांए। अपना गंतव्य तलाशती, निर्झर बहती धाराओं‌ में अब शेष रह गई रेत। बिन पानी हम हो गए मायूस। जैसे ही अषाढ़, सावन, भादों, बरसता भर जाता उसका थाल। अब नदिया इतराती, मतवाली सी बदली उसकी चाल। दोनों किनारों का अब हरियाली की चुनरी से जलमाला का होता श्रंगार। वर्षा जल से भरकर, उछले कूदे मैदानों में आकर निर्झरिणी की बहती धारा। अंत समय में शीतलता से सब साथ, तनुजा ने लाकर सब कुछ समर्पित कर दिया सागर को। सब कुछ देकर भी तरनी, तटनी, ने अर्पित करके सबका जीवन साकार किया। अब ना करो मन-माना सदा नीर का दो...
साहस
कविता

साहस

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** अब ठान लिया, साहस से उस पथ को चुनना है। जिस पथ को बागों ने फूलों से संवारा है। साहस ही मुझको, सपनों से होकर मंजिल तक ले जाएगी। साहस ही मुझे सूरज सा चमकायेगा।। अब चुनता हूं, उस पथ को, ऊंचे नीचे पहाड़ी रास्ते। टेढ़े-मेढ़े रास्ते,‌ पथरीली रास्ते। साहस से ही रास्ता बनाऊं। रास्ते भी नऐ हैं, नये अरमानों के बीच चौराहों को देखूं।। रास्ता अपना खोजूं साहस से ही नये, लक्ष्यों तक पहुंचूं।। अट्टहास करूं, जोर-जोर से शोर मचाऊं।। अपने निर्णय से लोहे को ही झुकाऊं। चमकीले पत्थरों से हमेशा दूर हो जाऊं। अब साहस से ही चलना है।। दिन-रात खपना है, लक्ष्य अब लंबा लगता नहीं। सपनों से ही हौसलों को बढ़ाऊं। मुश्किलें मुझे झुका ना सकीं।। सफलता की कोई तारीख तय नहीं। साहस ही तो मुझे, नई सोच, कार्य उत्कृष्टता से, सफलता की सीढ...
कश्ती कागज की
कविता

कश्ती कागज की

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कश्ती कागज की, मझधारो में मिल जाए कोई खिवईया। कोई तो पार लगाएं ‌ सागर के नीले पानी में।। संभालो मुझे तूफानों में, हिलोरों में, कश्ती न डूबे जज्बातों में। ये कश्ती कागज की बहते पानी में।। समुद्र के बीचों बीच, दिखता न कोई किनारा। अब कोई हाथ तो थामें, लगा दो अब किनारे। गहराई में लहरों से डगमग चलती ये कश्ती।। अब कश्ती है मझधारों में।। ये कश्ती कागज की बहते पानी में।। अब नहीं है कोई खिवैया, अब मैं राह भटकूं।। इन मजधारों में, आंधी में तूफानों में। हुनर है मेरे पास, मुझे तो बचना आता।।‌‌ अब इन मजधारों में। यह कश्ती कागज की बहते पानी में।। ‌ अब भी है हौंसला, हम तो बैठे कागज की नाव में। इंतजार है उन लहरों का, मजधारो में।। अब लहरें इतराती नहीं, इठलाती नहीं।। किनारा दूर नहीं। अब कोई मुझे रोक...
शहर ऐक कोना सा‌‌
कविता

शहर ऐक कोना सा‌‌

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** शहर ऐक कोना सा। खो गया मैं मंजिलों की अट्टालिका मैं, बिछड़ गया मैं भीड़ भरी जिंदगी में।‌ ना पूछे कोई खैर खबर, ना मिले सगे संबंधी। ना मिली चौपाल की बैठक।।‌‌ शहर ऐक कोना सा‌‌ कहां खो गई आम, नीम, पीपल की छांव।‌‌ नहीं दिखता दूर-दूर परिंदा, ना मुझे मिली इतराती कोयल की कुहू कुहू की आवाज।। ना मिले नीम, पीपल की छांव में लहराते झूले। शहर ऐक कोना सा। शहर की अट्टालिका में ढूंढ रहा अपनों को, न मिले सगे संबंधी।‌‌ ना मुझसे कोई पूछे खैर खबर।‌ शहर ऐक कोना सा। ना बोले प्यार से, भैया जय राम जी, जय गोपाल जी। निकला वह बाजू से, बोला हाय गुड मॉर्निंग।।‌ शहर ऐक कोना सा। ना दिखता सुबह का सूर्य उदय, ना सुनता पक्षियों का कलरव, ना मीठी कोयल की कुहू कुहू। ना मिला भोंरौ का गुंजन। शहर ऐक कौना सा। ना मि...
सुनो जी मैं हूं ना
कविता

सुनो जी मैं हूं ना

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दूर जाते हुए बस, आंखों का इशारा कहता हे ना, सुनो जी मैं हूं ना। जब मैं बाहर से आता तब, एक हाथ में गिलास पानी थामे कहती कि सुनोजी मैं हूं ना। कुछ परेशान सा दिखा और कुछ कहना हो, दिल को समझाना हो तब कहती सुनो जी मैं हूं ना।। मायके की याद आये, तब मैं कहता, सुनो जी बाहों का सहारा मैं हूं ना। जब आते आंखों में आंसू, रुमाल से पोंछ ते हुए, तो कहता सुनो जी मैं हूं ना।। अब वह बोली कुछ भूली, बिसरी यादें भविष्य के गढ़े हम मीठे सपने, सुनो जी मैं हूं ना।। मैं बोला, अरे मेरी कुछ खट्टी, कुछ मीठी। अब सुनो जी अनूठा हो यह जन्मदिन।। तुम्हारी खुशी के लिए इसी में खुश हूं, कि तुम खुश हो ना। अब मनाएं आपका ये जन्मदिन। मैं हूं ना।। मेरी सुनो जी, शुभ हो शुभ ज्योतिर्मयी हो। जन्मदिवस मंगलमय हो।। जीवन दीप जले अविरत, ...
हां मैं पुरुष हूं …
कविता

हां मैं पुरुष हूं …

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** हां मैं पुरुष हूं ।। विधाता की रचना हूं। मैंब्रह्मा हूं, विष्णु हूं, महेश हूं। मै एक पुरुष हूं।।‌‌ नारी का अभिमान हूं, नारी का सौभाग्य हूं। हां में एक पुरुष हूं।।‌‌ मन की बात मन में रखकर ऊपर से हरदम, खुशमिजाज दिखने वाला परिवार की जिम्मेदारी निभाने वाला। हां मैं पुरुष हूं।।‌‌ पिता का स्वाभिमान हूं, मां के आंचल का अभिमान हूं। बचपन से घर की जिम्मेदारी लेने वाला पिता के सपनों को साकार करने वाला। हां मैं एक पुरुष हूं मैं।।‌‌ जीवन में आतेही, आपेक्षाओं से लगता है यह जीवन। बहन की शादी के सपनों का आधार हूं। हां मैं एक पुरुष हूं।।‌‌ थक कर कभी हारा नहीं, निरंतर मुझको चलना है हरदम।। आशाओं की मीनार हूं। परिवार का आधार स्तंभ हूं।। हां मैं एक पुरुष हूं।।‌ रो में सकता नहीं, डर अपना बतला सक...