Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: संगीता केसवानी

दिल लुभाने के लिए
ग़ज़ल

दिल लुभाने के लिए

संगीता केसवानी **************** रंग कितने हैं जहाँ में दिल लुभाने के लिए। इश्क़ काफी है मगर किस्मत सजाने के लिए।। प्यार, उल्फ़त और चाहत ये ख़ुदा का नूर है। आसरा काफी है उसका प्यार पाने के लिए।। ज़िन्दगी बेबस खड़ी है उस हसीं दीदार को। मौत बैठी हँस रही है लौ बुझाने के लिए ।। ज़िन्दगी बेशक लकीरों का ही चाहे खेल हो। हौसला तनकर खड़ा मंज़िल को पाने के लिए।। ज़िन्दगी चाहे लकीरों का ही क्यों न खेल हो। हौसला तनकर खड़ा मंज़िल को पाने के लिए। झूठ के आगोश में है क़ैद अब तो हर बशर। सच तो छुपता फिर रहा अस्मत बचाने के लिए।। आज क्यों "अल्फ़ज़" मेरे स्याह होते जा रहे हैं। हर सफ़ा बेवस खड़ा मातम मनाने के लिए।। परिचय :- संगीता केसवानी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
तुमसे न कर सकी मैं मुलाकात क्या करूँ
ग़ज़ल

तुमसे न कर सकी मैं मुलाकात क्या करूँ

संगीता केसवानी **************** २२१ २१२१ १२२१ २१२ तुमसे न कर सकी मैं मुलाकात क्या करूँ दिल में दबे रहे मेरे जज़्बात क्या करुँ। खामोश वो नज़र ही कई वार कर गई बोले बिना किए सवालात क्या करूँ। थम सा गया है वक़्त तेरे इंतज़ार में बदले कभी नही मेरे हालात क्या करुँ। क्यों ज़ुल्म ढा रही है तेरी याद अब सनम होती है आँसुओं की ही बरसात क्या करूँ। कितने सफे भरे मुहोब्बत के रंग से अल्फ़ाज़ कर सके न करामात क्या करूँ। परिचय :- संगीता केसवानी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
सबको थोड़ा नीर चाहिए
कविता

सबको थोड़ा नीर चाहिए

संगीता केसवानी ******************** सबको थोड़ा नीर चाहिए कैसे मिटे ये पीर चाहिए, प्यास सबकी सांझी मगर जीवन नईया को मांझी चाहिए अम्बर के आंचल में बैठे बादल को भी नीर चाहिए..... कैसे पहुंचे बूंदे उस तक सोच ये गम्भीर चाहिए।। नील गगन के आंगन का हरित भूमि श्रृंगार चाहिए क्यों न मिलकर बीज लगाएं रंग-बिरंगे फूल खिलाएं धरा को फिर स्वर्ग बनाएं ऐसे कुछ कर्मवीर चाहिए।। सबको थोड़ा नीर चाहिए।। जल को थामे, पोखर बांधे ताल-तलैया कुछ और बनाएं नदिया कल-कल गीत सुनाएं सूरज की फिर प्यास बुझाएं घटा काली यूं घिर-घिर आएं ऐसे कुछ रणधीर चाहिए। सबको थोड़ा नीर चाहिए।। परिचय :- संगीता केसवानी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...