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जिसकी रज चंदन सम है
कविता

जिसकी रज चंदन सम है

श्रीमती विजया गुप्ता मुजफ्फरनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** जिसकी रज चंदन सम है, कण-कण हीरे मोती माटी उगले सोना, शस्य श्यामला है धरती ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। बेकार न होगी कुर्बानी जलियां वाले बाग की चिंगारी नहीं बुझेगी अब देश प्रेम की आग की ले तिरंगा हाथों में हुई शहीद वीरों की टोली कभी खेली न किसी ने, ऐसी खेली खून की होली ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। "भारत छोडो़ " नारा ले बापू आए समरांगण में असहयोग के अस्त्र से कांपे अंग्रेज़ अपने मन में आजा़द कराया भारत, भारत मां के तोडे बंधन देश है ऋणी बापू का, करते हम उनका वंदन ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। शहीदों ने खून से सींचा, आज़ादी के पौधे को व्यर्थ न जाये बलिदान, सूखने देंगे न इसको याद रखेंगे सब कुर्बानी, जन-गण के हर मन में अमर असीम त्याग की गाथा, महके क...
प्रियतम! अब तो आ जाओ
कविता

प्रियतम! अब तो आ जाओ

श्रीमती विजया गुप्ता मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में तृतीय विजेता रही कविता) विरह व्यथा उग्र हुई मनोभूमि व्यग्र हुई छा जाओ मेघ बनकर प्रियतम!अब तो आ जाओ! दग्ध करता बहुत मनसिज खिलना चाहे नेह सरसिज प्रबल हुई पीर तन की बन जलधार बरस जाओ प्रियतम!अब तुम आ जाओ! स्मृति के मेघ घुमड़ते अश्रु बन फिर उमड़ते पंथ तकते ये नयन थके यह मिलन अमर कर जाओ प्रियतम! अब तुम आ जाओ ! राह निहारूं मैं पिय की किससे बात करूं हिय की आकुल मन अति घबराए हृदय कमल खिला जाओ प्रियतम! अब तो आ जाओ ! परिचय :- विवेक श्रीमती विजया गुप्ता जन्म दिनांक : २३/१०/४६ निवासी : मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...