Saturday, February 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी

वो ख़त
कविता

वो ख़त

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** डायरी के पन्नों को पलटते, हमें याद आ गए वो तुम्हारे ख़त कितने महके से हुआ करते थे, वो ख़त, खुशी का खाजाना हुआ करते थे, गहरी नींद से जगा दिया करते थे वो ख़त। जागती आंखों में सुहाने सपने संजोया करते थे वो ख़त!! दिल के हालात और जज़्बात से रूबरू किया करते थे वो ख़त समय की इस दौड़ में ना जाने कहां गुम हो गए वो ख़त, ना वो सपने रहे, ना मीठी नींद भरे सुकून के वो ख़त दूर तक फैली खामोशी, हमसे सवाल करती है कभी-कभी तो बातें हज़ार करती है, कि.. चलो पुराने खतों को फिर से ढूंढते हैं, उन्ही शब्दों को नई पहचान देते हैं, सपने तो अब भी छुपे होंगे उन पन्नों में, कुछ अधूरे, कुछ पूरे, क्या पता फिर से चल पड़ें वो सिलसिलेवार, "वो ख़त"!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म...
नदी
कविता

नदी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** मेरी परिभाषा या परिचय की आवश्यकता नहीं मेरी भी भावनाएं हैं, मै महसूस भी करती हूं मगर आज ये सब अस्तित्व विहीन सा लगता है। बिना रुके बिना थके अविरल चलती रहती हूं पर्वतों, कठोर रास्तों से टकराती, दर्द से कराहती नहीं इठलाती बलखाती सागर से मिलती हूं। जीवन का स्त्रोत हूं, जीने का आधार भी हूं, में। किसी धर्म जाति के बंधन से परे हूं कोई सीमा मुझे बांध नहीं सकती, पूरी दुनियां में अलग नाम अलग रूप हैं मेरे, मुझमें सुख दुख की अनुभूति भी है, गहरी चोट खाती, आहत हूं आज, मगर चुप हूं!!!!!! क्यों कि प्रकृति की देन हूं, जो प्रकृति मेरी 'मां"है। मां ने मुझे हिसाब लेना नहीं सिखाया किन्तु आज मैं संकट में हूं। मैं दुखी हूं !! मेरे आंचल में ही इंसान का अस्तित्व सिमटता है, मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन, उसके सपने, सभी ...
मौत के कारोबारी
कविता

मौत के कारोबारी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** समाज में भरे हैं ये मौत के कारोबारी आतंक का कफन ओढ़े हुए, सुदूर तक हर तरफ गोली और बारूद से सजते हैं नित नए बाजार इनके कौड़ियों के मोल बिक रही इंसानों की जिंदगी अपने ही अपनों के खून के प्यासे हो रहे। इस आतंक" का ना कोई धर्म है ना कोई जाति, ना ही है कोई भगवान या खुदा इनका, ईमान की बातों से ना ही रहा इनका सरोकार। घरों के चिराग बुझ गए इनकी हैवानियत से, सिंदूर धुल गया हर ओर पानी से सिसकियां भी दबी सी सुनाई देती हैं तिनका तिनका पूछ रहा है ये सवाल.... ये इंसान हैं या मौत के कारोबारी ???? परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उ.प्र.) विशेष : साहित्यिक पुस्त...
मासूमियत
कविता

मासूमियत

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** (बेटी को समर्पित) हमने देखी है मासूमियत एक सच की तरह, वो मासूम सी है, स्निग्ध चांदनी सी धवल भी, शक्ल पर नूर सा बिखरा है उसके शुद्ध, शांत और सौम्य सी है। कभी नन्ही, चंचल, अल्हड़पन से घिरी हुई से, कभी कठोर, अटल, अडिग सी आसमान की ऊंचाई को नापती हुई दिखती है, कभी गंभीर, समुंदर की गहराई छुपाए हुए चुपचाप सी उमंग की लहरें भी बेतहाशा दौड़ पड़ती हैं ठोकर भी खाती हैं, वापस भी आती हैं, गिर के उठती भी हैं, सपने कल्पना बनकर आंखों में सजते भी हैं आंख खुली तो वो हकीकत बनकर टूटते भी हैं। फिर भी उसकी मासूमियत जिंदा है उसमे, कल भी थी, आज भी है, मासूम सी ही रहेगी खुद में।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी....
उतरन
कविता

उतरन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** स्वयं में गूढ़ अर्थ समेटे हुई है उतरन इसकी उतरन उसकी उतरन, कभी पोशाकों की उतरन कभी विचारों की उतरन। कभी एक अक्स सी उतरती हुई उतरन कभी किसी और के साए में उतरती हुई उतरन सांसों की उतरन, धड़कन की उतरन बोझ से उतरी उतरन। कभी जो समझ सको उतरन की परिभाषा को मरीचिका भी है, वीथिका भी है, गुणों का भंडार है उतरन। गीता की उतरन, रामायण की उतरन, बाइबिल की उतरन, कुरान की उतरन राम से लेकर रहीम मोहम्मद की उतरन पासको यदि कहीं ये उतरन, तो समेट लेना संजो लेना क्योंकि, जिंदगी का सही सार है उतरन।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उ.प्र.) विशेष : साहित्यि...
परिंदे
कविता

परिंदे

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** उड़ने दो मासूम परिंदो को खुले आसमां में फैलाने दो अपने पंख इन्हें विशाल गगन में इनके कर्म से है बुलंदी इस जहान की ईश्वर भी सिर झुकाए इनके दर पर फड़फड़ाने दो इनके पंख स्वछंद हवाओं में छू लेने दो आकाश की बुलंदियों को इन्हीं से है रोशन हर घर का अंधेरा मत तोड़ो इनकी ऊंचाइयों की डोर मत मसलों इन्हें, मत दफन करो, सुरों के सारे संगीत बसते हैं इनकी चहचहाट में शून्य रह जाएगा ये जहान इनके बगैर क्योंकि,ये "बेटियां" हैं, जिनसे है रोशन जहां सारा। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उ.प्र.) विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों ...
सृष्टि
कविता

सृष्टि

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** भोर की नरम घांस पर, पानी की बूंदों जैसी पत्तों पर पलक बिछाए ओस जैसी हूं मैं पेड़ों की छाया में सिमटी हुई सुकून जैसी बादलों में नन्हीं सी धुंधली किरन हूं मैं। पर्वतों को बर्फ के चादर में समेटे जैसी, ठंडी हवाओं की सरसराहट हूं मैं। स्वछंद परिंदों की उड़ान जैसी खेतों में लहराती उमंग हूं मैं। लरजती, इठलाती, खुशी और उल्लास से सराबोर नदी जैसी, सागर की गहरी सहेली हूं मैं। अब तो पेड़ों कि छाओं को ढूंढती, बिन बादलों के गुम सी होती जा रही हूं मैं। सिकुड़ती, सिमटती, उदास सी पहुंच से दूर निकलती जा रही हूं मैं। संभाल लो मुझे, गले से लगा लो, इंद्रधनुषी रंगों से आंगन भर दो मेरा क्योंकि पूरी कायनात की "सृष्टि" हूं ना "मैं" परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुला...
सपने
कविता

सपने

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** बिखरी हैं ज़मीन पर यादों की सारी कतरनें, कुछ ख्वाब रखे थे जाने कहाँ गुम हो गये। तिनका तिनका समेटते रहे इस जहाँ से हम, सपनों के वो खजाने अब कहाँ गुम हो गये। बीते कल में खुद को ढूंढता अपना वज़ूद इस अंधाधुंध भीड़ में कहीं गुम हो गया है। जब तब तनहाई के साये चीखते हैं मुझ पे एक परछाईं सिसकती है बेजुबान सी ढूंढते रह जाते हैं भीड़ में हम भी चेहरे काश कुछ चेहरे अपनापन तो जतलाते। सब सोचता समझता रहा है वज़ूद ये कल भी था और आज भी है। मगर ये हकीकत तो सबको पता है हंसी में भी छिपे रोग छल जाते हैं। यहाँ रोज ही अपने सपने बिखरते, इस जहाँ से चलो हम निकल जाते हैं। . परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी...
मैं भी तो माँ हूँ
कविता

मैं भी तो माँ हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** कभी कभी पूजी जाती हूँ, पर्व त्यौहारों में सजाई जाती हूँ। इधर उधर बेमन से घुमाई जाती हूँ, लोग मनोरंजन का साधन समझते है, शांत चित्त मैं सब कुछ करती जाती हूँ। मेरे भी अहसास हैं, सुख के, दुख दर्द के मेरा भी परिवार बसता है। इन सुन्दर कल कल करती नदियों के किनारे हरियाली से भरा मेरा घर जो बहुत सुन्दर था, अब वो उजड़ने लगा है । मेरा तो किसी से बैर नहीं फिर भी हम ना जाने क्यों सताये जाते हैं? आज मैं तड़प रही हूँ, मेरा परिवार भी दुखी है। कभी भूख , कभी बेइंतहा दर्द की मार से कभी मानव के राक्षसी अत्याचार से। इन सबकी अनदेखी से ही मेरे वंशजों की मौत हो रही है। मेरे बच्चे को 'मेरी कोख में ही' मार दिया। दर्द से छटपटाती,कराहती, चीत्कारती भटक रही हूँ इधर उधर मैं। कहाँ हैं वो लोग जो मेरी पूजा करते थे? कहाँ हैं...