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Tag: श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी

सपने
कविता

सपने

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** बिखरी हैं ज़मीन पर यादों की सारी कतरनें, कुछ ख्वाब रखे थे जाने कहाँ गुम हो गये। तिनका तिनका समेटते रहे इस जहाँ से हम, सपनों के वो खजाने अब कहाँ गुम हो गये। बीते कल में खुद को ढूंढता अपना वज़ूद इस अंधाधुंध भीड़ में कहीं गुम हो गया है। जब तब तनहाई के साये चीखते हैं मुझ पे एक परछाईं सिसकती है बेजुबान सी ढूंढते रह जाते हैं भीड़ में हम भी चेहरे काश कुछ चेहरे अपनापन तो जतलाते। सब सोचता समझता रहा है वज़ूद ये कल भी था और आज भी है। मगर ये हकीकत तो सबको पता है हंसी में भी छिपे रोग छल जाते हैं। यहाँ रोज ही अपने सपने बिखरते, इस जहाँ से चलो हम निकल जाते हैं। . परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी...
मैं भी तो माँ हूँ
कविता

मैं भी तो माँ हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** कभी कभी पूजी जाती हूँ, पर्व त्यौहारों में सजाई जाती हूँ। इधर उधर बेमन से घुमाई जाती हूँ, लोग मनोरंजन का साधन समझते है, शांत चित्त मैं सब कुछ करती जाती हूँ। मेरे भी अहसास हैं, सुख के, दुख दर्द के मेरा भी परिवार बसता है। इन सुन्दर कल कल करती नदियों के किनारे हरियाली से भरा मेरा घर जो बहुत सुन्दर था, अब वो उजड़ने लगा है । मेरा तो किसी से बैर नहीं फिर भी हम ना जाने क्यों सताये जाते हैं? आज मैं तड़प रही हूँ, मेरा परिवार भी दुखी है। कभी भूख , कभी बेइंतहा दर्द की मार से कभी मानव के राक्षसी अत्याचार से। इन सबकी अनदेखी से ही मेरे वंशजों की मौत हो रही है। मेरे बच्चे को 'मेरी कोख में ही' मार दिया। दर्द से छटपटाती,कराहती, चीत्कारती भटक रही हूँ इधर उधर मैं। कहाँ हैं वो लोग जो मेरी पूजा करते थे? कहाँ हैं...