संरक्षण
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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कभी कभी लगता है
मन के भावों ने
ठिकाना बदल दिया हो जैसे
सभी शब्द भावनाओं के
पिरोए जा चुके हैं
सभी अश्रु धाराएं
बह चुकी हो जैसे
सामर्थ्य और ताकत
आजमाए जा चुके हैं
प्रेम और करुणा का
रस सूख गया हो जैसे
सभी विकल्प
ढूंढे जा चुके हैं
राहें भरमाई जा
रही हो जैसे
वक़्त का पहिया
पूरा घूम चुका है
समय अधिक
शेष नहीं हो जैसे
भाव शून्य, दिशा शूलय,
ईच्छा शक्ति टूटती सी
क्या अब पुकार सुनेगा
कोई डर की, रूदन की,
क्रंदन की, चीख और
पीड़ा, आत्मबल
झकझोर रहा,
नए शब्द ढूंढे जाएंगे,
हिम्मत नहीं हारेंगे
नई ऊँचाइयों पर
चढते जाएंगे,
अश्रु नहीं आस्था के
गीत गाएंगे
हो भले बाधाएं
अनगिनत,
जीवों का जीवन
सुगम बनाएंगे
इतिहास बन जाएंगे
करुणा और संरक्षण का
इतिहास बनाएंगे!!
परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा...