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Tag: श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी

अनजाना रिश्ता
कविता

अनजाना रिश्ता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एकाएक जिंदगी में अनजान सा कोई आता है, जो दोस्त भी नहीं, हमसफ़र या हमराज़ भी नहीं फिर भी उस से एक अनोखा रिश्ता जुड़ जाता है !! उस के साथ सुख दुःख साझा करने का दिल करता है, वो सब कुछ सुनता और समझना चाहता है ! हमारी उलझने उसके पास आके कहीं भटक जाती हैं, कुछ पल जिंदगी के सूकून से कट जाता है वो अनजाना होकर भी दिल के करीब बस जाता है !! उस रिश्ते का कोई नाम नहीं उस रिश्ते को नाम के बंधनों से दूर ही रखा है, वो सबकी खुशी में खुश और बहते आंसुओं के दर्द को समझता है !! कोई अधिकार नहीं उसके जीवन पर हमारा, फिर भी उस पर हक जताने को दिल करता है ! वो खुदा की बनाईं प्रकृति का अनमोल हिस्सा है, उसका लाड दुलार हमसे उसके लिए कुछ करने का संकल्प दिलाता है ! वो और कोई नहीं खुदा का प्रतिनिधि है ...
करुणामयी पुकार
कविता

करुणामयी पुकार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** थक चुका हूँ इंसानी रिश्ते निभाते-निभाते शिथिल हो गया हूँ करुणा मयी पुकार लगाते-लगाते, इंसान से दोस्ती, मेरी मजबूरी नहीं थी विश्वास, निःस्वार्थ प्रेम से सजाया था इस रिश्ते को परन्तु लगता है इंसानो के लिए बोझ बन रहा ये स्नेहिल रिश्ता मैं ही समझ ना पाया प्रेम, दया, करुणा मांग-मांग के थक गया बहुत गुहार लगाई, मेरी दर्द भरी चीख की आवाज उनके कानो तक नहीं पहुची धूमिल हो रहा है ये रिश्ता! जानवर और इंसान" के रिश्ते का अंत हो रहा है, पर हमारी ओर से ये अनंत हो रहा है!! इसी आस के सहारे चल रहा है कुछ तो इंसान, जो "इंसान होंगे" शायद वही जीवित रख पाएंगे अनंत से अंत की ओर जाते इस रिश्ते को!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ व...
हम जानवर बेजुबान नहीं हैं
कविता

हम जानवर बेजुबान नहीं हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम जानवर बेजुबान नहीं हैं, पर इंसानो की नीयत से अंजान है हमे मरता छोड़ देते ये तो हैवान है, ना जाने क्या है! हमे घर लाते, खूब लाड प्यार दिखाते जब हम बूढे और लाचार हो जाते हमको अंजाने रास्तो पर मरने को छोड़ जाते हम कुछ समझ ही नहीं पाते ठगे से रह जाते ! अपना अपना त्यौहार मनाते खुश होते खुशियां बांटते मग़र ना जाने क्यूँ हमारी बलि चढ़ाते जंगलों में हमारा शिकार करते हमारे बच्चों को अनाथ कर जाते खुद के स्वाद के लिए हमको हलाल करते ये कौन सा और कैसा त्यौहार मनाते हम कुछ समझ नहीं पाते ! हम में से किसी को माता मानते पूजा अर्चना करते उसी के सहारे अपना परिवार चलाते उसके दुधमुंहे बच्चों का दूध खुद पी जाते जब वो बूढी और लाचार हो जाती तब कसाई के हाथों में कटने को सौप देते इंसानी स्वार...
रहें ना रहें हम
कविता

रहें ना रहें हम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** रहें ना रहें हम फिर भी हमारा निशान रह जाएगा! जो बीज रोपे थे बड़े अरमानों के साथ, उनमें खिलते पुष्पों की खुशबू में मेरा पता मिल जाएगा। उसमे सिंचे थे कुछ संवेदनाएं, कुछ भावनायें उन्हीं में मेरा निशान मिल जाएगा!! जिस वृक्ष को सींचा था जतन से उसका एक भी आखिरी पत्ता जो हरा रह जाएगा, उसकी निर्मलता में मेरा निशान मिल जाएगा!! कभी जो बैठना सूकून से पंछियों के कलरव और तान सुनना उनके सुर के संगीत में मेरा निशान मिल जाएगा! कल कल बहती रही जीवन भर एक नदी की तरह जो कभी बैठो उसके तट पर, चंद लम्हों के लिए, उसकी गहराईयों में मेरा निशान मिल जाएगा।। खुद के भीतर इन्सानियत को जिंदा रखना कभी जो सुनना किसी जीव की दर्द भरी कराहटें, उनकी करुणा भरी पुकार, उस दर्द में मेरा पता मिल जाएगा!! अपने ...
चीखें
कविता

चीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दीपोत्सव के बाद श्वानों की दुर्दशा देख दिल रो पड़ा, और कुछ शब्द निकल आए बचपन से अवसाद और कष्ट से पीड़ित रहा हूँ मैं समझ नहीं पाता था ये क्या और अखिर क्यों है मैं अपने रक्त रिसते घाव में चीख रहा हूँ क्या कोई मेरी पुकार सुनेगा??? मेरी खामोश चीखें भी समझ पाएगा जो मैं लाचार हो कर अंदर ही अंदर क्रंदन करता हूँ क्या कोई उसे समझ पाएगा???? हे मानव तुम्हारे मुस्कराते चेहरों के पीछे एक अंधेरी सड़क मिलों चलती है जिसपर नफरत, क्रोध, घृणा, नृशंसता रहती है मेरी सालो साल खामोश चीखें वहां तक नहीं पहुंचती हैं मुझे आग में जीते जी जलाते हो मुझे आग से नहलाते हो पाप पुण्य की भाषा नहीं समझता मगर ये इंसान का कौन सा रूप दिखाते हो???? मैं गलियों, रस्ते, काली धुंध भरी दुनिया मे रहता हूँ मैं क्या बिगाड़ प...
पाती एक जीव की
कविता

पाती एक जीव की

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** इंसानो ने पत्थर का कलेजा बनाया होगा तभी उसमें इतनी नफरत, क्रोध, हिंसा को समाया होगा, हम हैं एक जीव ये भूल गया होगा हमे भी उसके जैसे ईश्वर ने ही बनाया होगा! भूल गया इंसान हमारे वज़ूद को नहीं होता आभास हमारे दर्द भरी पुकारों का!, हम तरसते रहते थोड़े से प्यार और ममता के लिए, घायल तन, व्यथित मन बोझिल कदम लिए, कभी तो हमारे अस्तित्व का उनको संज्ञान होगा, उनके दिलों में हमारे लिए भी करुणा और प्यार होगा! चोट नहीं, दुत्कार नहीं, स्नेह का दीपक कभी तो जलाया होगा!! हे मानव तुम मे से ही कोई मसीहा कहीं जगा होगा, हमारे दर्द भरी कराहटों को सुना होगा, प्यार के मलहम से हमे संवारा होगा उस मसीहा ने ही धरती पर हम सबके संरक्षण का प्रण लिया होगा, तभी तो बच पाए हैं हम "जानवर" इस धरती पर हम में भी...
ज्ञान एवं अज्ञानता
कविता

ज्ञान एवं अज्ञानता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** ज्ञानी-अज्ञानी में केवल एक मात्रा का अन्तर है जो मनुष्य के साथ निरंतर है ज्ञानी मृत्यु की वास्तविकता को सहज रूप मे लेता है अज्ञानी संसारी होता है मृत्यु पर क्रंदन करता है! ज्ञान रोने के कारण को मिटा देता है अज्ञान नित नए रोने के कारणों में उलझता जाता है , ज्ञानी हर परिस्थिति में प्रसन्नचित्त होता है वो जानता है समझता है, जो कुछ भी छूट रहा वो मेरा नहीं इस जनम में कुछ भी "मेरा-तेरा" नहीं एक अखंड सत्य है आत्मा का आना जाना परिवर्तन, शाश्वत सत्य है, समझता है! संसारी रूदन करता है, जो कुछ मिला वो उसे अपना अधिकार समझ, स्वयं के परिणामों के फलस्वरुप प्राप्त किया, यही समझता है, जो कुछ छूट रहा उस पर अपना ही प्रभुत्व मान रुदन करता है, यही ज्ञानी-अज्ञानी में भेद का कारण होता है यही अशांति क...
अस्तित्व की स्मृतियाँ
कविता

अस्तित्व की स्मृतियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अस्तित्व की स्मृतियाँ कभी व्यथित मन को सूकून दे ने वाली थपकियाँ भी बन जाती हैं कभी किसी कोने मे खुद की पहचान बनाने के लिए संघर्षरत रहतीं हैं!! वक़्त के बेरहम घाव पर मरहम बन जाती हैं समय मिले तो कभी सुनना मेरे अस्तित्व की स्मृतियाँ ! अगर कभी गुम हो जाए अचानक ये स्मृतियाँ तो ढूंढ लेना फ़ूलों की मीठी खुशबू में ओस की चमकती किरनों में नीले अम्बर में सूकून से उड़ते परिंदों में किसी जीव की करुणामयी पुकार में, किसी जीव की मुस्कराती आँखों में!! फिर भी ना ढूँढ पाओ तो ढूँढ़ना चिता की अग्नि में समाई हुई, यहीं मिलूंगी, यही से समझना है जीवन जीने की परिभाषा, थाम सको तो थाम लेना मेरी थोड़ी सी स्मृतियाँ!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म :...
अनमोल उपहार … बेटियाँ
कविता

अनमोल उपहार … बेटियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** ईश्वर का अनमोल उपहार होती हैं बेटियाँ जीवन का संगीत और संस्कृति होती है बेटियां। दिलों को अंतहीन प्यार से भरने प्रभु द्वारा भेजी हुई देवदूत होती हैं बेटियाँ। शक्ति का प्रतिरूप बनकर, संघर्ष, साहस, सहनशीलता की फुलवारी में महकती रहती है बेटियां। सजता नहीं कोई घरौंदा बिना इनके घर का साज-श्रृंगार, चमक होती है बेटियां! जीवन मे भार नहीं जीवन का आधार होती हैं ये बहुत ही खास होती हैं बेटियां।। उड़ने दो इनको बांहें पसारे निर्द्वंद खुले आसमान में सपनों को पूरा करने का हौसला रखती हैं यही बेटियां, संदेह, डर, हिंसा, कि मत दो इनको बेड़ियाँ नियमों को ममता के गीत से समझती हैं बेटियाँ।। इनके जुनून, इनकी कमजोरी को संजो कर रखना होगा, इनकी रौशनी को मंद नहीं होने देना होगा, अविरत कल कल धारा सी बहती कुरीतियों ...
एक थी स्त्री
कविता

एक थी स्त्री

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दुःखद घटनाओं की शिकार बहनों बेटियों को समर्पित ... तड़पती रही अकेली सुनसान राहों में, सिसकियाँ अनसुनी कर लोग गुजरते रहे ! धरती माँ की गोद में खुन से लतफत छिपने की जगह ढूंढती हुई रही!! जली थी जीवन भर बेशरम नजरों की अग्नि में, डरती आई थी सदैव गलियों और सड़कों पर चलने में, बेआबरू होती रही बार-बार हर बार !! पैदा हुई तो हर तरफ शोर हुआ ये तो लक्ष्मी आई है, ये दुर्गा का रूप है, ये बरकत लेकर आई है ! कुछ दुआएं देते कुछ माता-पिता पर बोझ बताते !! हुनर से नहीं कपड़ों से व्याख्या की गई उसके चरित्र की, उसके उन्नतिशील विचारो से चरित्रहीनता का प्रमाणपत्र दिया गया, वो तो देवी का रूप थी ना ...??? किसी की बेटी किसी की पत्नि किसी की बहन, मित्र भी थी ! किसी के घर का चिराग थी! किसी का अभिमान, किस...
कर्म
कविता

कर्म

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने आप मे गुम भुरभुरी सी मिट्टी में पांव के निशान कुरेदते, सोच की धारा में मन डूबने लगा! जीवन के दो पहलू है सुख-दुख, बाकी सब पार्थिव है यहां !! इसी मिट्टी में विलीन हो जाता सबकुछ, एक कर्म है जो पार्थिव नहीं होता। वर्तमान, भूत, भविष्य हैं इनपर निर्भर पुण्य पाप इन्हीं के कहने पर भाव हैं इनका आधार। कोई कहता सांसारिक सुख हैं भाग्य कोई मानता ईश्वर से मिलन बडभाग। हर ओर कर्मों का अधिग्रहण, हम हैं तो भी वो है, हम नहीं हैं तो भी तो वो हैं! मेरे जन्म से अंत तक मेरे साथ है जो है, जो होगा वो मेरा कर्म, धारा का प्रवाह थोड़ा क्षीण हुआ, स्वयं से स्वयं की अनुभूति हुई, ये जीवन "जीव" के काम आए ये भी तो कर्म है।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार...
शब्द
कविता

शब्द

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** १८ दिनों के संग्राम ने द्रौपदी को ८० वर्ष का कर दिया ! द्रौपदी कृष्ण से लिपट कर रो पड़ती हैं, कृष्ण उनको ढाढस नहीं बंधाते रोने देते हैं, द्रौपदी का दिल डूब रहा है, उसके दिल की व्यथा आंसुओ में बह रही है। बोल पड़ती हैं, मैंने ये कदापि नहीं सोचा था, केशव समझा रहे हैं, नियति क्रूर भी होती है, वो हमारे सोचने से नहीं चलती हमारे शब्द भी उसका निर्धारण करते हैं। तुम्हारा प्रतिशोध तो पूर्ण हुआ कौरवों का विध्वंस हुआ।। द्रौपदी पूछ पड़ती है केशव से क्या विनाश का कारण बनी मैं?? या विनाश लीला की उत्तर दाई हूँ?? नही हो इतनी महत्वपूर्ण तुम, क्रूर बनी परिस्थितियां, होती दूरदर्शी तुम जो बदली होती स्थितियाँ, नहीं पाती घोर कष्ट, यातना और अपमान!! क्यों मौन रही जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों ...
विमाता (कैकेयी)
कविता

विमाता (कैकेयी)

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** विधाता के संदेश को जानती थीं नियति थी ये भी ज्ञात था ! अवांछनीय कर दी जायेंगी ममता की परिभाषा से विमुख कर दी जाएंगी! मातृत्व प्रेम से नहीं अपितु कुमाता रूप मे जानी जाएंगी! उन्हें दुत्कारा जाएगा तमाम दोषारोपण लगाए जाएंगे, राज काज से बेदखल कर दी जायेंगी! आत्मविश्वास की धनी, कर्तव्य पर अडिग, ममता की मूरत थीं, कुशल योद्धा, उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ थीं!! दो वाचनों का वरदान ले जिद पर अडी, राम को मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम बना गईं!! नारायण के पुनीत कार्य का आरम्भ बनीं, युगपत में व्याप्त घोर असंतोष का अंत कर रामराज्य लाने का स्त्रोत बनीं! राम के वनवास का कारक बनीं सम्पूर्ण जगत को राम नाम का बीज मंत्र दे गईं! अधर्म पर धर्म की विजय हो स्वयं का जीवन प्राण विहीन बना गईं!! कितने क...
थोड़ा अलग हूँ
कविता

थोड़ा अलग हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हाँ मैं थोड़ा हट कर हूँ, क्युकी थोड़ा अलग हूँ! अंदर से टूटे होकर भी चेहरे पर मुस्कान लिए फिरती हूँ, लाखों अनसुलझे सवाल हैं पर मौन हो सब गुनती हूं थोड़ा तो सबसे अलग हूँ!! थोड़ा उलझी सी हूँ, सपनों की उमंग आज भी लिए फिरती हूँ उनको पूरा करने की जिद की तमन्ना रखती हूँ थोड़ा अलग हूँ!! बेपरवाह लोगों की परवाह करती हूँ आज तक जो ना समझ पाए लोग उनको समझने की कोशिश करती हूँ अपमान बार बार किए लोगों का भी सम्मान करती हूँ, रिश्तों में श्रद्धा रखती हूँ शायद इसीलिये थोड़ा तो अलग हूँ!! जीवों से प्यार करती हूँ उनकी परवाह करती हूँ , लोग अक्सर पूछते हैं ये बोलते तो नहीं फिर कैसे इनकी जरूरतें पूरा कर पाती हूँ?? इनकी मासूमियत में लाखों सवाल जवाब छिपे हैं इनके प्रति दुत्कार और तिरस्कार के, जिनको ...
थोड़ा खुश हो लेते हैं
कविता

थोड़ा खुश हो लेते हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** चलो आज से थोड़ा थोड़ा खुश होते हैं, मन की दहलीज पर नई उम्मीदें सजाते हैं! बाहरी दुनिया से क्यूँ आस लगाना खुद से खुद में उमंग भरते हैं!! जितने भी घाव मिले अब तक मरहम बन दवा उनकी ढूंढते हैं , सूकून मिले अब दिल को दर्द का दामन छोड़ देते हैं!! कल तक झुठलाया था जिन राहों को पथरीली समझ कर, आज उन्हीं राहों से रूबरू होते हैं!! दुःस्वप्न था जो दुःखद था, अब मुस्कराहटों से नाता जोड़ लेते हैं !! हर एक जीव में रब है, खुदा है, ईश् और ईश्वर भी है, इंसान बन, इनकी तकलीफों को कुछ कम करते हैं इनके मासूम, निःस्वार्थ प्रेम में अपने आप को सराबोर करते हैं प्रभु की अनमोल भेट है ये प्रकृति ये जीव, ये जीवन इनमे खुशियां बांट स्वयं में बसे परमात्मा से मुलाकात करते हैं! चलो आज थोड़ा खुश होते हैं!! ...
यशोधरा
कविता

यशोधरा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बुद्ध को अमरत्व मिला, श्री विष्णु के अवतार बने, यशोधरा की बीथी बिसर गई विरह, वेदना, एकाकीपन, पीड़ा ही अर्जित कर पाईं!! प्रश्नो का अंबार लगा, क्यों तुम हमको छोड़ गए लिया था सात वचनों का बंधन इतनी आसानी से तोड़ गए! स्वयं पर विश्वास नहीं क्या बाधा मुझको समझ गए!! जब जूझ रहे थे अंतर्मन से कुछ तो बतलाया होता, इन प्राचीरों में, यूँ ही अकेला छोड़ गए!! नही विस्तृत कर पाई उन स्मृतियों को जो साथ तुम्हारे बीती थी उन सभी सुनहरे सपनों को अग्नि में सुलगते छोड़ गए!! देह का बोझ ढोना हुआ दुष्कर, सारी आशाएं कुम्हलाईं ! मृत्यु भी ना वर पाऊँ राहुल को पीछे छोड़ गए!! किस से बांटू वेदनाओं को कैसे उसको मैं बहलाऊं विरान, सिसकती इन दीवारों पर कोई संदेश छोड़ के नहीं गए!! मुक्ति पथ पर निकले थे, तुम समाधिस्थ हु...
गृहणियां
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गृहणियां

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अजीब सी होती हैं गृहणियां, समाज शास्त्र पढ़े बिना संबन्धों को तिनके-तिनके जोड़ती है ये गृहणियां मनोविज्ञान पढ़े बिना ही सभी की उलझने सुलझाती हैं ये गृहणियां होम साइंस ना हो पढ़ा कभी ,फिर भी पाक कला में निपुण होती हैं गृहणियां, दूध में साइटृक एसिड डाल पनीर बनाती, सोडा बाइ कार्बोनेट से स्वादिष्ट, स्पंजी केक बनाती, नित नए प्रयोग कर कर, सोडियम क्लोराइड का सही नाप तोल समझाती, खुद को वैज्ञानिक कभी नहीं समझ पाती ये गृहणियां , मसालों के नाम पर आयुर्वेदिक ख़ज़ाना भी हैं रखती, गमला, मिट्टी में, तुलसी, गिलोय, पारिजात , बो बोकर रसोईघर में ही औषधि बनाती, फिर भी कुछ नहीं करती ये गृहणियां सुन्दर रंगोली बनाती, चित्रकारिता में निपुण, ढोलक की थाप पर नृत्य और संगीत के मीठे सुर छेड़ती खुद को केवल ह...
नियति
कविता

नियति

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जो कल सब कुछ यही छूटना है, उसे आज अपने हाथों छोड़ देना एक कला है ! उसी में ब्रह्म है, मोक्ष है और पूर्णता है !! भीड़ में उलझा अशांत मन, उस पीड़ा की अनुभूति भी नहीं कर पाता, जो मुक्ति के लिए बेचैन है, पानी के बुलबुले सा बनता बिगड़ता इंसानी जीवन, समझ नहीं पाता ! जब स्वयं के भीतर ही नहीं जाना दूसरी उलझनों में क्या पाओगे ! इस जीवन को एक उपलब्धि जानो कर्तव्य कर्म है, प्रेम सृजन, स्वयं के हृदय के मौन को पहचानो !! जिस दिन तुम मौन में उतर एकाकी हो जाओगे, उस दिन एक हाथ अपने हाथ मे महसूस करोगे, वो दूर नहीं तुमसे, बस तुम पास जा नहीं पाते उसके, तुम भीड़ में इस कदर बे हुए हो, देख नहीं पाते उसको! स्वयं में छिपे हुए परब्रह्म को पहचानो , वह ब्रह्म जो सभी वर्णनों, संकल्पनाओं से परे है! अंत ...
निःशब्द रात
कविता

निःशब्द रात

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** निःशब्द रात रात की चादर ओढ़ फिर आइ निःशब्द रात निर्जन तिमिर भरी राह की रात दुबके हुए चीखते चिल्लाते निशाचरों की ये रात !! ना जाने कहाँ गुम थे चांद सितारे अंधेरा तैरता हुआ घने बादलों की तरह फिर भी चल पडी तन्मयता से ओढ़ कर सन्नाटे की चादर यादो के दिए कि झिलमिल रोशनी अम्बर पर टिमटिमाते आंख फाड़े तारो की रात ! गुम हुए थे ये सारे रात के सहारे कभी पालकी सजा चलते थे ये हरकारे चाँद से मिलने के बहाने सुख दुख को गले लगाने, जाना है उसपार, जहां से वापस आना है दुश्वार! शनैः शनैः ढल रही है रात!! क्षितिज पर भोर ने दस्तक दी गहरी नींद से तब मैं भी जागी थी आप बीती सुना थक गई है रात गगन में सुनहरे सज रहे हैं तोरण द्वार निःसतबध कर गुजर गई निःशब्द रात!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्...
काया
कविता

काया

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आज मैंने अपनी काया से पूछा तुम्हें और क्या चाहिए, इतनी लंबी यात्रा हुई कोई तो वज़ह होगी कुछ तो चाहत होगी चलते रहने की औषधियाँ तो बहुत हुई अब कौन सा परिपूरक चाहिए ? आकार पर बहस छिड़ी जो रंग रूप पर आकर ठहरी समय ने कई निशान दिए हैं भेंट स्वरूप इन खिंचाव भरे निशान पर चिंतन करना चाहती है कोमलता नहीं दृढ़ता चाहती है, पडती हुई सिलवटों को रोकना चाहती है उन सभी जानी अनजानी औषधियों से दूर होना चाहती है जो पुनः जीवित होने का ढोंग रचती हैं, "स्वयं" के बंधन तोड़ना चाहती है नश्वर जगत को समझना चाहती है उसके सारे प्रश्न धीरे-धीरे तैयार हो रहे थे तभी कानों में धीमी सी फुसफुसाहट सुनाई दी क्या अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतु...
जाल
कविता

जाल

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के लिए चहुँ ओर इच्छाओं का जाल बुनता है सुख और दुख के तराजू में तौलता हुआ कभी उठता तो कभी गिरता है, इच्छायें मरती है, जाल बिखरता है उम्मीदें समाधिस्थ होती हैं ताउम्र वो समझता है ईश्वर नाखुश है तभी तो आशाएं बिखर रही तिनका बनकर वह नहीं समझता संसार मिथ्या है कर्म शिव है! शून्य और अनंत के बीच उकेरते कुछ संवाद, जिसमें प्रार्थनाएं संजो देनी है, क्योंकि ये जाल उसने नहीं, स्वयं मनुष्य ने बुनी है!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम...
विकल्प
कविता

विकल्प

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** समय कभी तय नहीं होता होता भी तो मेरे हाथ मे नही है किन्तु विकल्प क्या है! चाँद और सूरज ने अकेले ही मजबूत बनने के बहाने दे दिए बारिश की बूँदों ने हथेलियों पर कुछ ख्वाहिशे रख दी जिनसे हथेलियाँ तो भीगी किन्तु रेखाएं भरी नहीं, ऊँचाई ने चलते चलते पर्वत के शिखर पर पहुचा दिया आनंदित हूँ क्युकी विदा का पल निकट आता जा रहा है उस हवा की तरह जाना चाहती हूँ कि गुजरूं करीब से तो सरसराहट की भनक भी ना हो, शिकन नहीं मुस्कराहट छोड़ जाना चाहती हूँ जीवन पर्यंत प्रयासशील रही सबकी झोली खुशियों से भरना चाहती थी जीना कोई मजबूरी नहीं, बस शिवमय होना चाहती हूँ!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी...
गौरैया की वाणी
कविता

गौरैया की वाणी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सोचती हूँ स्वयं के अस्तित्वहीन होने के पहले अपना परिचय याद दिला दूँ इसी बहाने मानव की संवेदनहीनता का परिचय दे दूँ इस स्मृति दिवस पर सबकी यादों को ताजा कर सकूं सबको बता सकूं, कभी हर घर के मुंडेर और झुरमुट में होता था घोंसला हम नन्ही परियो का फुदकते-चहचहाहते कभी इत आंगन कभी उत आँगन छोटा सा अपना जीवन गुहार लगाती, कराहती नष्ट होती जा रही हैं हम गौरैया ज्ञान विज्ञान ने ऐसा हाहाकार मचाया सुख रहे नदी गाँव और ताल बसेरा होता था हरी-भरी वृक्षों की डालियाँ, छज्जा बनती थी टहनियां, कभी किसी रोशनदान, कभी किसी आँगन में झूमा करती थी हम सब अनवरत विकास ने उजाड़ दिए वो हरियाली वो घर आंगन, कहां जाए दाना चुगने, संग अपने सखी सहेलियों के फुदकने, हम सब तो हैं पर्यावरण की सहेलियाँ घरों की शुभ ल...
कुछ लिखूं
कविता

कुछ लिखूं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मन की लिखूं तो शब्द रूठ से जाते हैं और सच लिखूं तो अपने, जिंदगी को समझना चाहूँ तो सपने टूट जाते है और हर घड़ी अपने लिखू तो क्या लिखूं अब ना अपने हैं ना सपने कुछ अजीब सा चल रहा है ये अंतर्द्वंद गहरी खामोशी है खुद के अंदर एक ऐसी जगह चाहिये जहां खुद को भी ना ढूँढ पाऊँ कभी उड़ जाऊँ स्वच्छंद सी किसी रोज़ इस जहां से गुम ही जाऊँ एक तिनका बन के लहरों की गहराई में छोड़ जाऊँ ना मिटने वाले निशान सबके हृदय में चढ़ जाऊँ किसी फूल की पंखुडी बन श्री चरणों में कभी ना मुरझाने का आशीर्वाद लिए!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) विशे...
याचक
कविता

याचक

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** यह हार नहीं क्षणिक विराम है क्योंकि जीवन कुरुक्षेत्र का महासंग्राम है बुरे कर्म बुरे शब्द अब नहीं ग्रहण करूंगा बहुत हुआ खुद से विमुख होना दया की भीख अब नहीं मांगूंगा वरदान लूँगा, चाहे वो तमस हो, चाहे हो ताप , जान चुका हूँ सम्मान के बिना कोई अस्तित्व ही नहीं मनुष्य बन धर्म की संपूर्ण कला से विकसित करूंगा स्वयं को मुक्त आए थे जीवों का जीवन बदलने का संकल्प लिए, है सृष्टि का कर्ज इस जन्म मे मेरे लिए बार-बार आना पडे इस कर्तव्य पथ पर फिर भी, भागुंगा नहीं विक्षिप्त होकर बार-बार ही सही मुक्त आया हूँ मुक्त ही जाऊँगा, अनवरत अनन्त काल तक!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र,...