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स्त्री तुम
कविता

स्त्री तुम

शोभा किरन जमशेदपुर (झारखंड) ******************** स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... ज्ञान की तलाश क्या सिर्फ बुद्ध को थी ? क्या तुम नहीं पाना चाहती वो ज्ञान ? किन्तु जा पाओगी, अपने पति परमेश्वर और नवजात शिशु को छोड़कर.... तुम तो उनपर जान लुटाओगी.... उनके लिये अपने भविष्य को दाँव पर लगाओगी... उनकी होंठो के एक मुस्कुराहट के लिए अपनी सारी खुशियो की बलि चढ़ाओगी.... स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... क्या राम बन पाओगी ???? क्या कर पाओगी अपने पति का परित्याग, उस गलती के लिए जो उसने की ही नहीं ???? ले पाओगी उसकी अग्निपरीक्षा उसके नाज़ायज़ सबंधो के लिए भी ???? क्षमा कर दोगी उसकी गलतियों के लिए, हज़ार गम पीकर भी मुस्काओगी.... स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... क्या कृष्ण बन पाओगी ???? जोड़ पाओगी अपना नाम किसी प...