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Tag: शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’

गोरैया (अवतार छंद )
छंद

गोरैया (अवतार छंद )

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** अवतार छंद विधान अवतार छंद २३ मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है। यह १३ और १० मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- २ २२२२ १२, २ ३ २१२ चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः २ को ११ में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत २१२ (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है। फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे। चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।। मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे। तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।। चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती। अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।। छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी। है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।। ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में। है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नीड़ में।। म...
हिन्दी लावणी छंद
छंद

हिन्दी लावणी छंद

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** भावों के उपवन में हिन्दी, पुष्प समान सरसती है। निज परिचय गौरव की द्योतक, रग-रग में जो बसती है।। सरस, सुबोध, सुकोमल, सुंदर, हिन्दी भाषा होती है। जग अर्णव भाषाओं का पर, हिन्दी अपनी मोती है।। प्रथम शब्द रसना पर जो था, वो हिन्दी में तुतलाया। हँसना, रोना, प्रेम, दया, दुख, हिन्दी में खेला खाया।। अँग्रेजी में पढ़-पढ़ हारे, समझा हिन्दी में मन ने। फिर भी जाने क्यूँ हिन्दी को, बिसराया भारत जन ने।। देश धर्म से नाता तोड़ा, जिसने निज भाषा छोड़ी। हैं अपराधी भारत माँ के, जिनने मर्यादा तोड़ी।। है अखंड भारत की शोभा, सबल पुनीत इरादों की। हिन्दी संवादों की भाषा, मत समझो अनुवादों की।। ये सद्ग्रन्थों की जननी है, शुचि साहित्य स्त्रोत झरना। विस्तृत इस भंडार कुंड को, हमको रहते है भरना।। जो पाश्चात्य दौड़ में दौड़े, दय...
ये बेटियाँ लावणी छंद
कविता

ये बेटियाँ लावणी छंद

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** घर की रौनक होती बेटी, है उमंग अनुराग यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।। जब हँसती खुश होकर बेटी, आँगन महक उठे सारा। मन मृदङ्ग सा बज उठता है, रस की बहती है धारा।। त्योंहारों की चमक बेटियाँ, मन मन्दिर की ज्योति है। प्रेम दया ममता का गहना, यही बेटियाँ होती है।। महक गुलाबों सी बेटी है, कोयल की है कूक यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।। बसते हैं भगवान जहाँ खुद, उनके घर यह आती है। पालन पोषण सर्वोत्तम वह, जिनके हाथों पाती है।। पल में सारे दुख हर लेती, बेटी जादू की पुड़िया। दादा दादी के हिय को सुख, देती हरदम ये गुड़िया।। माँ शारद लक्ष्मी दुर्गा का, होती है सम्मान यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही। मात पिता के दिल का टुकड़ा, धड़कन बेटी होती है। रो पड़ता है दिल अपना जब, द...
दिल मेरा ही छला गया
कविता

दिल मेरा ही छला गया

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** क्यूँ शब्दों के जादूगर से, दिल मेरा ही छला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।। तड़प रही थी एक बूंद को, सागर चलकर आया था, प्यासे मन से ये मत पूछो, कितना तुमको भाया था। सीने में इक आग धधकती, वो मेरे क्यूँ जला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। तार जुड़े फिर टूट गये भी, गीत अधूरे मेरे हैं, साँसों की सरगम में मेरी, सुर सारे ही तेरे हैं। बिन रदीफ़ के भला काफ़िया, कैसे यूँ वो मिला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। अक्सर ऐसा होते देखा, जो जाते कब आते हैं, इंतजार में दिन कट जाते, आँख बरसती रातें हैं। मीठी मीठी बातें करके, घूँट जहर का पिला गया उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। परिचय :- शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' (विद्यावाचस्पति) जन्मदिन एवं जन्मस्थान : २६ ...
योग छंद “विजयादशमी”
छंद

योग छंद “विजयादशमी”

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** अच्छाई जब जीती, हरा बुराई। जग ने विजया दशमी, तभी मनाई।। जयकारा गूँजा था, राम लला का। हुआ अंत धरती से, दुष्ट बला का।। शक्ति उपासक रावण, महाबली था। ग्रसित दम्भ से लेकिन, बहुत छली था। कूटनीति अपनाकर, सिया चुराई। हर कृत्यों में उसके, छिपी बुराई।। नहीं धराशायी हो, कभी सुपंथी। सर्व नाश को पाये, सदा कुपंथी। चरम फूट पापों का, सदा रहेगा। कब तक जग रावण के, कलुष सहेगा।। मानवता की खातिर, शक्ति दिखाएँ। जग को सत्कर्मों की, भक्ति सिखाएँ।। राम चरित से जीवन, सफल बनाएँ। धूम धाम से हम सब, पर्व मनाएँ।। योग छंद विधान- योग छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद २० मात्रा रहती हैं। पद १२ और ८ मात्रा के दो यति खंडों में विभाजित रहता है। १२ मात्रिक प्रथम चरण में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है। इसक...
नरहरि छंद  “जय माँ दुर्गा”
छंद

नरहरि छंद “जय माँ दुर्गा”

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** जय जग जननी जगदंबा, जय जया। नव दिन दरबार सजेगा, नित नया।। शुभ बेला नवरातों की, महकती। आ पहुँची मैया दर पर, चहकती।। झन-झन झालर झिलमिल झन, झनकती। चूड़ी माता की लगती, खनकती।। माँ सौलह श्रृंगारों से, सज गयी। घर-घर में शहनाई सी, बज गयी।। शुचि सकल सरस सुख सागर, सरसते। घृत, धूप, दीप, फल, मेवा, बरसते।। चहुँ ओर कृपा दुर्गा की, बढ़ रही। है शक्ति, भक्ति, श्रद्धा से, तर मही।। माता मन का तम सारा, तुम हरो। दुख से उबार जीवन में, सुख भरो।। मैं मूढ़ न समझी पूजा, विधि कभी। स्वीकार करो भावों को, तुम सभी।। नरहरि छंद विधान- नरहरि छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। १४, ५ मात्रा पर यति का विधान है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- १४ मात्रिक चरण की प्रथम दो मा...
जयदयालजी गोयन्दका
कविता

जयदयालजी गोयन्दका

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** देवपुरुष जीवन गाथा से, प्रेरित जग को करना है, संतों की अमृत वाणी को, अंतर्मन में भरना है। है सौभाग्य मेरा कुछ लिखकर, कार्य करूँ जन हितकारी, शत-शत नमन आपको मेरा, राह दिखायी सुखकारी।१। संत सनातन पूज्य सेठजी, जयदयालजी गोयन्दका, मानव जीवन के हितकारी, एक अलौकिक सा मनका। रूप चतुर्भुज प्रभु विष्णु का, राम आचरण अपनाये, उपदेशों को श्री माधव के, जन-जन तक वो पहुँचाये।२। संवत शत उन्नीस बयालिस, ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी पावन, चूरू राजस्थान प्रान्त में, जन्मे ये भू सरसावन।। माता जिनकी श्यो बाई थी, पिता खूबचँद गोयन्दका, संत अवतरण सुख की बेला, धरती पर दिन खुशियों का।३। दिव्य रूप बालक का सुंदर, मुखमण्डल तेजस्वी था, पाँव दिखे पलना में सुत के, लगता वो ओजस्वी था।। आध्यात्मिक भावों का बालक, दया,प्रेम,सद्भाव लिये, जयदया...
कविता ऐसे जन्मी है
कविता, छंद

कविता ऐसे जन्मी है

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** प्रदोष छंद कविता प्रदोष छंद विधान :- यह १३ मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- अठकल+त्रिकल+द्विकल =१३ मात्रायें अठकल यानी ८ में दो चौकल (४+४) या ३-३-२ हो सकते हैं। (चौकल और अठकल के नियम अनुपालनीय हैं।) त्रिकल २१, १२, १११ हो सकता है तथा द्विकल २ या ११ हो सकता है। मन एकाग्रित कर लिया। चयन विषय का फिर किया।। समिधा भावों की जली। तब ऐसे कविता पली।। नौ रस की धारा बहे। अनुभव अपना सब कहे।। लेकिन जो हिय छू रहा। कविमन उस रस में बहा।। सुमधुर सरगम ताल पर। समुचित लय मन ठान कर।। शब्द सजाये परख के। गा-गा देखा हरख के।। अलंकार श्रृंगार से। काव्य तत्व की धार से।। पा नव जीवन खिल गयी। पूर्ण हुई कविता नयी।। परिचय :- शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' ...