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Tag: शिव कुमार रजक

बीत गया बचपन
कविता

बीत गया बचपन

शिव कुमार रजक बनारस (काशी) ******************** यादों के सागर में खोकर दिल मन ही मन हर्षाये चेहरा रह रहकर मुस्काये आया प्यारा सा यौवन देखो बीत गया बचपन ! छूट गए वो खेल पुराने गुड्डे गुड़ियों वाले रंग लेते मुँह अपना खाकर चूरन पुड़ियों वाले यारों से हम झूठ बोलकर खाएं झूठी विद्या कसम देखो बीत गया बचपन ! मीना की दुनिया के किस्से राजा के रानी के चिमनी से पढ़कर गुजरे हैं दिन वो नादानी के देहरी पर जलते दीपक से रोशन घर द्वार आँगन देखो बीत गया बचपन ! सरपट-सरपट चली ज़िंदगी मोड़ अनोखा आये पिचकारी के रंग सभी स्याही में घुल जाए आये जीवन में बसंत कोयल कूके नीलगगन देखो बीत गया बचपन ! परिचय :- शिव कुमार रजक निवासी : बनारस (काशी) शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताए...
होली गीत
कविता

होली गीत

शिव कुमार रजक बनारस (काशी) ******************** अवधपुरी काशी से लेकर ब्रज में बाल गोपाल के रंगे जा रहे गाल सभी के रंगों और गुलाल से।। प्रेम के रंग में राधा नाचें प्रीत के रंग में सखियाँ बाल सखा संग मोहन नाचें वृंदावन की गलियाँ लट्ठमार की रीति अमर है, होली के त्योहार से रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। ढोल मृदंग की ताल पर थिरकें अवधपुरी के वासी अंग से रंग लगाकर भागे देवर से सब भाभी गीत फाग के गाए जाएं सुबह शाम चौपाल से रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। मंदिर में कैलाश सज रहे घाटों पर सन्यासी भांग के मद में मस्त पड़े हैं मुक्तिद्वार के वासी चिता के भस्म की होली होवे काशी के श्मशान में रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। परिचय :- शिव कुमार रजक निवासी : बनारस (काशी) शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ क...
फूलों की बगिया
कविता

फूलों की बगिया

शिव कुमार रजक बनारस (काशी) ******************** फूलों की बगिया महकी है, चिड़िया चह - चह चहकी है एक फूल डाली से लटका, अंबर वसुधा देख रहा प्रेम दीवाना एक पागल मुझे तोड़न को सोच रहा मुझको तोड़ दिया हाथों में मन से पुलकित लड़की है । एक फूल माँ की गोदी से दूर कहीं ससुराल चली प्रेम पुष्प टूटा डाली से नयन अश्रु टपकाय चली अश्रु सिमट गए उन नयनों के वह बन गयी जब लक्ष्मी है। एक फूल कविता गीतों का शब्द शब्द से खेल रहा कलमकार के गीत ग़जल का जग में सबसे मेल रहा मिलन विरह की पीड़ाओं को लिखकर मैंने कह दी है। कहि इन्हीं में से एक तो नहीं? परिचय :- शिव कुमार रजक निवासी : बनारस (काशी) शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...