कविता पर कविता
शिवेंद्र शर्मा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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अन्तर्मन के भावों का,
स्पन्दन कविता होती है l
दुखित हृदय की पीड़ा का,
क्रंदन कविता होती है l
लोभ लुभावन शब्दों से,
न कविता निर्मित होती है l
पोथी, पुराण के पढ़ने से,
कविता लिखी न होती है
ह्रदय से निकले भावों को,
शब्द, पंख मिल जाते हैं l
तब सतरंगी आसमान में,
ज्ञान का शंख बजाते हैं l
जब अनीति और अधर्म,
यहाँ हावी होने लगता हैं l
शोषण, अत्याचारों पर,
जब खून उबलने लगता है l
जब घोर निराशा के बादल,
ऊपर मंडराने लगते हैं,
रोते-रोते जब पीड़ित के,
नैना पथराने लगते हैं l
जब दुखियारी जनता भी,
दो रोटी पाने तरसती है l
पालक, पोषक प्रकृति ही,
जब आँसू झरने लगती है l
तब कवि ह्रदय की पीड़ा,
कविता बन कर आती है l
लाने समाज में परिवर्तन,
अपना धर्म निभाती है l
परिचय :- शिवेंद्र शर्मा
पिता : स्व. श्री भगव...