मेहमान बन के
शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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मेहमान बन के
आये थे,
मकीं बनके बैठ गये,
आसमां के
चंद टूटे हुए
क़तरे,
ज़मी बनके बैठ गये,
वैसे तो ऐसा
कोई
दर्द न था,
जाने क्यों अश्क़
पलकों पे
नमीं
बन के बैठ गये,
बस दो कदम
साथ चलने
का ही वादा था,
कब कैसे वो,
हमनशीं बन के
बैठ गये,
शरिकेग़म थे
वैसे तो वो मेरी
हर नफ़स के,
भरी बज़्म में
न जाने क्यों वो,
अज़नबी
बन के बैठ गये।
ठहाकों से
भरी बज़्म लूटने वाले,
क्यों अचानक
इतनी
सादगी बनके
बैठ गये।
भले बुरे
की परख
अब वो ही जाने,
मुझे परखने
के लिए,
पारखी बनके
बैठ गये।
परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।
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