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Tag: वैष्णो खत्री ‘वेदिका’

जनक
कविता

जनक

वैष्णो खत्री 'वेदिका' अधारताल, जबलपुर (म.प्र.) ******************** जन्म लिया जब धरा पे तुमने, जननी ने जग दिखलाया। ऊँगली थाम नेह से तुमको, जनक ने चलना सिखाया। वे भूखे पेट सोए होंगे, पेट तुम्हारा भरने को। रात-रात भर जागे होंगे, सपने पूरे करने को। देव तुल्य हैं चरणों में उनके, सचमुच स्वर्ग समाया। ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया। कड़वे शब्दों के न करना, दिल पर उनके वार कभी। और न करना जीवन में है, उन पर अत्याचार कभी। क्योंकि वे तो सदा चाहते, सुखी रहे उनका जाया। ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया। यदि बन श्रवण उनकी की सेवा तुम कर जाओगे। ईश्वर की भी कृपा रहेगी, सुखमय जीवन पाओगे। रही सदा है मात-पिता की, शुभ आशीषों की छाया। ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया। बड़े हुए तो शुभ विवाह के, बन्धन में बन्ध जाओगे। कुछ वर्षों में तुम भी तो है, जननी-जनक कहलाओगे। ...
मेरा हक़
कविता

मेरा हक़

वैष्णो खत्री 'वेदिका' अधारताल, जबलपुर (म.प्र.) ******************** तुम पर हक़ है मेरा, इसलिए तुम मेरी ही अमानत हो। हमारे दिल से दूर न जाना, चाहें कितनी भी क़यामत हो। इस रिश्ते को मेरी नज़र से देखो, तभी तो समझ पाओगे। तुम तो हो बेवफ़ा, इस कारण, तुम इसे जान नहीं पाओगे। किनारा न करो हमसे, हम तुमसे न कोई शिक़वा करेंगे। तुम्हें दिल से न दूर कर पाएँगे, इतना तो हम दावा करेंगे। मेरी रूह में समाई तेरी सूरत, उसे कैसे निकाल पाओगे। तुम तो रग-रग में समा चुके हो, उससे निकल न पाओगे। तुम मेरी आँखों में बसे हो तुम, मेरे दिल में बसे हो जी । अगर हिम्मत है तो मेरे दिल से, निकल के दिखाओ जी। मेरे प्यार ने बँटना न सीखा, वो तेरे बिन हो जाता बेचैन। तुझे मन में छुपा लूँ, बिन तेरे, दिल को आता नहीं चैन। प्यार की बाज़ी तुम क्या जानो, तुमने निभाया है कभी। जो कभी न डूबा प्यार में, वह क्या समझ पाया है कभी। तुम...