आखिर किसे स्वीकार है (ताटंक)
विजय गुप्ता "मुन्ना"
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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जानकर अंजान बनना तो खुद का दारोमदार है।
पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है।
समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है।
क्षमता नियंत्रण पहचान का बस नाम मुन्ना रफ्तार है।
जनहित कल्याण मार्ग खातिर धरातल वाली सोच हो।
यथेष्ठ दायित्व पालन में, धृष्टता का ना लोच हो।
रहे लाभार्थी पर नजर यूं, उसको तनिक ना मोच हो।
भान सदा गरीब को होता, जब कष्टों की भरमार है।
पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है।
समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है।
शोर छिपा है अरमानों में, अलग तादाद ही बसता।
जगमग दिव्य रोशनी में भी, खामोशी से सब सहता।
सुखदुख सचझूठ मध्य बैठा, प्रदर्शन से घिरा रहता।
पांच सदी पश्चात त्रेतायुग सा अयोध्या दरबार है।
पर अन्य को दोषी बताना , आखिर किसे स्वीकार है।
समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहा...