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क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे
कविता

क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे

विकास शुक्ला दिल्ली ******************** राम सा भाई सब चाहें, क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे, जो चौदह वर्ष भार्या से दुर रहा, क्या तुम एक वर्ष रह पाओगे... निज राम चरण की धूल बना, वह धुप छाँव बन साथ चला, अरण्य में अपने भाई के, जो बिन स्वार्थ खिदमत को चला गया... उस भरत के ह्रदय को तो देखो, जो अनुराग का सागर बन आया, राज पाठ सब छोड़-छाड़ कर, तात चरण में खुद आया... चरण पादुका को सर लेकर, सिंहासन पर शोभित कर आया, निज भ्रात के कारण योगी बन, खुद भी अरण्य में पड़ा रहा... बोलो ऐसे भरत बनोगे, क्या वही लक्ष्मण बन पाओगे, राम सा भाई सब चाहें, क्या भरत या लक्ष्मण तुम बन पाओगे... क्या भरत या लक्ष्मण तुम बन पाओगे...।। परिचय :- विकास शुक्ला निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...