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विमान का सफर
कविता

विमान का सफर

वचन मेघ चरली, जालोर (राजस्थान) ******************** कोरोना जैसे संकट में। जब गरीब था विकट में। पड़ा था खाने पीने के झंझट में। तब उड़ रहा था नीलाबंर में, आ रहें थें अर्थशास्त्री भारत में, शायद अर्थव्यवस्था संभालने, मजदूर गरीब की मदद को। जब वे चल रहें थें, भूखे नंगे पैर। उन्होंने देखी हवाई जहाज, खुश होकर, एक आशा के साथ। उनके बच्चें ताली पिटने लगें थे। उन्हें साफ दिखाई दे रहे थे, कई हाथ हवा में टाटा करते हुए, अंगुलियों से V दिखाते हुए। अब विश्वास हो गया उन्हें, शायद सुचारू होगा यातायात। सरकार हमारी भी सुनेगी बात। इसी आशा से चलतें रहे, धूप घाम में जलते रहे। ऊपर से विमान गुजरते रहें। बिचारे मर गए ट्रेनों के चक्कर में। मरते भी जो चलने लगे थे, विमान के टक्कर में। होठ सूख गयें थें प्यास से। चल रहे थें जिंदा लाश-से। फिर भी बता रहे थें अपने बेटे को, आरामदायक यात्रा है विमान की, होता सफर मिनटों...
सूखती घास
कविता

सूखती घास

वचन मेघ चरली, जालोर (राजस्थान) ******************** अरे! ओ घमंड़ी बादल। तू हो तो न गया पागल। सब लगाएं तेरी आस। देखो ये सूखती घास।। तू सबसे निराला है तेरा वर्ण काला है जीवन का रत्न खास। देखो ये सूखती घास।। मेघ जलद घन तेरे नाम बिन तेरे बने न कोई काम तेरी अनुपस्थिति सबको अहसास। देखो ये सूखती घास।। बहुत बरसे तो अतिवृष्टि कम बरसे तो अनावृष्टि दोनों से होता विनाश। ये देखो सूखती घास।। जोर जोर से गरजता है फिर भी नहीं बरसता है लोगों का टूटता विश्वास। देखो ये सूखती घास।। महीना जब आता है सावन का लगता बहुत मनभावन का साजन नही सजनी के पास। देखो ये सूखती घास।। सबको तू तरसाता है बहुत कम जल बरसाता है मिटती नही इससे प्यास। देखो ये सूखती घास।। जब सावन ही जाए सूखा कैसे रहें कोई प्यासा और भूखा करने लगे लोग प्रवास। देखो ये सूखती घास।। जिस जिस ने बीज बोएं बाद में पछताएं और रोएं फसलो का होता हृास। देखो ये ...