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Tag: लोकेश अथक

लोरी माँ की थी
कविता

लोरी माँ की थी

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** जिसे पकड़कर चला मैं वो उंगली मां की थी जिससे चिपका रहा हरदम गोदी मां की थी आज क्या है विराने मे अकेला हूं तड़पता मै मै रोके आंसू था पोछता वो चुनरी माँ की थी मुझे इस हाल में अब कौन समझाने को बैठा है दूध पीते निकाला करता नथुनी मां की थी मैं तड़पा हूं तड़पता हूं मेरी मां तेरे लिए पड़ी थी कोने मे शायद कपड़ों की गठरी माँ की थी वक्त बदला और मैं भूल बैठा उस जमाने को रात को नींद ना आती तो वो लोरी माँ की थी जहां हमारे सारे खर्चे पुरे होते तिजोरी मां की थी कभी खूट में बांध के रखती वह चोरी मां की थी जाना होता मेला या कोई सैर शहर की हो कोमल हाथों से पकी हुई कचोरी मां की थी छोटे थे तो खो जाने का डर था अक्सर खड़ी भीड़ तक दरवाजे से आयी वो टेरी मां की थी आजा आ जा मत जा लल्ला हट करता है प्यार भरे शब्दों की सुंदर जोड़ी मां की थी. परिचय :...
श्रम जल से उपजा कण हूँ
कविता

श्रम जल से उपजा कण हूँ

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर कण कण का संयोजन कर संरक्षण कर संवर्धन कर धरती को जीवित रखने का कोई तो कर प्रबंधन कर ढेरों में भी परिवर्तित हो अन्न कण कण संवर्धित हो जीवन का अटल सूत्र है ये जीवन हित इसका अर्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर ग्रह वातावरण मधुरतम हो मन से मन का अनुबंध रहे श्रम जल को करता नमन कोटि मेहनतकस का आबंध रहे वसुधा के आंचल से उपजे कण का संचित आवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर दिनकर की तीव्र तपन सहकर हठकर बाकी है कहता अल्पित मन भावों में वहकर नीचे संघर्षों में रहता है अंतस में है जो कृषक हेतु उन त्रुटियों का परिमार्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर सिरमौर रहे हर ठौर रहे धन धान्य धन्य तो मान्य रहे जीवन यापन में लिप्त रहे अल्पित धन जन सामान्य रहे प...
किसान हैं जवान हैं
कविता

किसान हैं जवान हैं

************ लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं इक रखते स्वाभिमान है एक देते खाद्यान है इक झोपड़ी मकान है एक बर्फ मे ही जान है ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं इक देश आन बान है इक वीरता की शान है इक देश हित निसार है इक देश पे कुर्बान है ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं इक सहते गर्म शीत है इक रहते शीत बीच है इक अन्न दे नवीन इक देश के नगीन है ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं इक त्याग रैन शयन है सरहद पे रखते नयन है इक आपदाए सहते है सहते है कङबे बैन है इक मोह सारे त्याग हथेली पे रखते जान है ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं . परिचय :- नाम - ...