हुनर
रीतु देवी "प्रज्ञा"
दरभंगा (बिहार)
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हुनर के बाजार में
मेरे सीखने की चाह की
उड़ायी जाती है हंसी।
रहूं खुश
रख सकूं दूसरों को खुश
चाहे जितनी जतन
करनी पड़े मुझे।
देख मेरी लगनशीलता
टीका टिप्पणी होती बहुत
पर परवाह
करती न कभी।
न बननी मुझे कठपुतली
बनना है सच्चा नागरिक
हुनर के बाजार में
उड़ायी जाती है हंसी।
कहती हूं दिल की बातें
चाहे माध्यम हो कोई
खेलती हूं मिट्टी से भी
सीखना चाहती
कला हिम्मत की
डरू नहीं,लड़खड़ाऊं नहीं।
बस चलती रहूं अनवरत
हुनर के बाजार में
उड़ायी जाती है हंसी।
हो मुझमें देशप्रेम
न करूं धोखा
सीख कर कोई हुनर
हुनर के इस बाजार में
उड़ायी जाती है हंसी।
परिचय रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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