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पिता की वेदना
कविता

पिता की वेदना

रावल सिंह राजपुरोहित जोधपुर (राजस्थान) ******************** चला था घुटनों के बल घोड़ा बनकर, ले बेटो को उस पर बैठाकर। घिस-घिस पांवो को खूब कमाया था, तन-मन से उसे बेटे पर, खूब लुटाया था। खुद ने तो पहनी थी फ़टी अंगरखी, ब्रांडेड कपडा दिलाया था बेटे ने। खुद ने तो काम चलाया चप्पलो से, बूट दिलाया था बेटे ने। खूब लिखाया खूब पढ़ाया, समाज में बड़ा नाम कराया। फिर चढ़ाया था उसे घोड़ी पर, न जाने कितने नोट अवारे थे, बेटे बहू की नई जोड़ी पर। कुछ दिन तो अच्छे से थे बीते, बेटा बहू भी आदर से संग जीते। फिर शुरू होने लगी खटपट, सास बहू में अनबन होती झटपट। फिर भी था विश्वास पिता को, अपने खून के जाए पर। पर वह विश्वास भी जल्दी टूट गया, जब बेटा भी रण में कूद गया। छाती से जिसको रखा लगा था, वो अब छाती पर दलने मूंग लगा था। आप-आप से तू-तू पर वो आ गया, हिस्सा करने की जिद पर व...