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Tag: राजेन्द्र लाहिरी

बेशक मैं …
कविता

बेशक मैं …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बेशक मैं अब दुश्मन की श्रेणी में आता हूं। पर जब भी मेरे अपनों को जरूरत पड़ी दिल से दुआएं दे जाता हूं, हां होता रहता है अपनों के बीच गिले शिकवे नाराजगियां, मुसीबतों में खुद से सबकी बलाएं ले जाता हूं, महरूम हूं लाड़ प्यार दुलार से, नाराज नहीं किसी के गाली गलौज या लताड़ से, झंझावतों से जूझते रहने का नाम ही है जिंदगी, पर किया हूं दिल से हर रिश्ते की बंदगी, पर मैं वो जालिम नहीं कि बंधे बंधन की डोर पर बिजली गिराता हूं, बेशक मैं अब दुश्मन की श्रेणी में आता हूं। नहीं मेरे पास अकूत संपत्ति, रुपये-पैसे, जमीन-जायदाद, रूठों को मनाने किसे करूं फरियाद, चल रही है मेरे परिवार की गाड़ी जैसे तैसे, तूफानों से घिर बचा हूं कैसे, मौत से पहले शायद मना न सकूं रूठों को पर अपने हिस्से का फर्ज़ निभाता हूं, बेशक ...
जातियता को त्यागे कौन
कविता

जातियता को त्यागे कौन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सो रहा समता का दिल तो खुद से होकर जागे कौन, स्व को दूजे से ऊंचा समझे जातियता को त्यागे कौन। आने और जाने के क्रम में, सभी बराबर क्यों हो भ्रम में, कदकाठी तन सबका एक, नहीं यहां पर कोई विशेष, खून में सबके लाल रंग है, पेट खातिर सबका जंग है, मानवता बंधुत्व भाव को देखो अब तो सिराजे कौन, जातियता को त्यागे कौन। बंटे हुये हैं लोग हजारों में, लेकर विष घूमे विचारों में, घमंड जात का दिखलाते है नजरों और नजारों में, नहीं खाते हैं एक दूजे घर, भूख से भले ही जाये मर, कब लाएंगे सीने में अपने भाईचारा और बड़ा जिगर, नफरतों को हवा दे देकर दिलों में अब बिराजे कौन, जातियता को त्यागे कौन। नहीं किसी को फिक्र देश की, बातों में नहीं जिक्र देश की, जाति पकड़ कर घूम रहे सब दिल में नहीं है चित्र देश की, ऊंच नीच सर ...
चलो चुनाव कराते हैं
कविता

चलो चुनाव कराते हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गलती की कोई गुंजाइश नहीं, खुद की कोई ख्वाहिश नहीं, पता नहीं कहां कितनी दूर जाते हैं, चलो चुनाव कराते हैं, प्रत्यक्ष शिक्षण, कड़ा प्रशिक्षण, कान लगाकर सुनना, ध्यान लगाकर सुनना, खत्म प्रशिक्षण भोर में आओ, बोरी बिस्तर साथ में लाओ, सामान उठाओ, चेकलिस्ट मिलाओ, फिर वाहन में बैठो, जरा न ऐंठो, शहर या जंगल में जाओ, मताधिकार केंद्र को खुद सजाओ, कुछ मिल गया तो जल्दी खाओ, वर्ना भूखे ही सो जाओ, सुबह उठो मॉक पोल दिखाओ, दिनभर फिर चुनाव कराओ, ना लो झपकी ना ही लेटो, जल्दी से सामान समेटो, गाड़ी में बैठो वापस आओ, सारा सामान अब जमा कराओ, न हुई दुर्घटना खुशी मानते हैं, चलो चुनाव कराते हैं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार...
मताधिकार
कविता

मताधिकार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मतदान के लिए नहीं मताधिकार प्रयोग के लिए आगे आएं, सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य को सोच समझकर संपन्न कराएं, बाद के पांच साल तक रोने चिल्लाने की आवश्यकता न रहे, मैंने गलत व्यक्ति को वोट दे दिया कोई ये न कहे, धर्म,जाति,सम्प्रदाय के नाम अत्याचारी न रहे, हम जुल्म ही क्यों सहें, अभी लोटेंगे दर दर पैरों में, बाद प्यार लुटाएंगे गैरों में, पैर पकड़ने वाला कब गर्दन पकड़ ले, लोकतांत्रिक मूल्यों को अपने विचारों से कोई कब जकड़ ले, संविधान की रक्षा के लिए सब खुलकर आगे आएं, खुद जागें और लोगों को जगाएं, बढ़ चढ़ कर संवैधानिक दायित्व निभाएं, उचित व्यक्ति को प्रतिनिधित्व दिलाएं, आओ मताधिकार के कर्तव्य को निभाएं, अपनी आवाज को सदन तक ले जाएं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र...
क्या गलती थी?
कविता

क्या गलती थी?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बुद्ध ही मिल रहा जगह-जगह की खुदाई में, कैसे उजाड़ा होगा सभ्यता को दंभ और घमंड भरी लड़ाई में, क्या कसूर था महामानव बुद्ध का, जिसने हमेशा विरोध किया कत्लेआम और युद्ध का, उसने मानव मानव में भेदभाव मिटाया है, दुनिया को अहिंसा और अमन शांति की राह दिखाया है, जिसने भी किया होगा शांति उपदेश, शिलालेख और मूर्ति को नेस्तनाबूद, नहीं रहा होगा निश्चित ही जिसका ऐतिहासिक वजूद, वो झूठा होगा, दंभी होगा, झूठी शान वाला एकदम घमंडी होगा, नहीं सह पाया होगा सत्य की बड़ी ताकत को, भूल गया होगा लोगों की शराफत को, मिटाया होगा कुछ इमारतों व किताबों को, पर कैसे वो मिटा पाता भाईचारे की रवाज़ों को, देश बुद्ध का है हर जगह दिखेगा वजूद, तर्क व विज्ञान सम्मत विचार है फिर से होगा ही मजबूत, विचारों को मिटाने की जरा बताएंग...
हां जारी है सफर
कविता

हां जारी है सफर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां जारी है सफर, पैदल, बस की या फिर ट्रेन की, मुझे यकीन है कोई तो कर रहा होगा जिंदगी का सफर साथ प्लेन की, सफर होता जरूर है अनवरत जब तक आ न जाएं मंजिल, संतुष्ट न होइए क्योंकि कब कहां हो जाये जीवन बोझिल, सफर ही कर सकता है जीवन की मंजिल का अंत, निर्माण उतना मुश्किल भी नहीं है यदि छुपा न हो विध्वंस, सृजन और निर्माण जीवन के है दो पहलू, पर कोई क्या कह सकता है? कोई नहीं बता सकता कि आगे क्या हो सकता है, कोई हंस सकता है कोई रो सकता है, गाड़ी जहां थमी रुक सकता है जीवन कोई बता सकता है क्या ग्यारंटी है, अंत कुछ भी हो सकता है भले ही वो कोई संतरी या मंत्री है, समय किसी के लिए रुक नहीं सकता, वो ताकतवर के सामने झुक नहीं सकता, सफर सतत चलने का नाम है, कर्मों में ही छुपा अंजाम है, तो कोशिश ...
दो डाकू
कविता

दो डाकू

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** डाका शब्द सुन डाकू भी चौक रहे, कुत्ते खामोश और टीवी चैनल भौक रहे, दो दोस्त बड़े हुए, बेरोजगारी के घेरे में खड़े हुए, करें क्या नहीं सूझ रहे थे, दाने दाने के लिए जूझ रहे थे, वे छोटी-मोटी चोरी करना नहीं चाहते थे, पर पुनः भूखे मरना नहीं चाहते थे, दोनों चाहते थे डाका डाला जाये, घर के बाहर हाथी पाला जाये, एक लड़ने लड़ाने की शरारत करता था, दूजा जोर-जोर से ख़िलाफात करता था, पहला शरारत ही करता रहा और दूसरा नेता बन गया, लोग पीछे चलने लगे वो उनका प्रणेता बन गया, फिर एक ने सीधा बैंक में डाका डाला, एक झटके में करोड़ों निकाला, साथी नेता ने विरोध में रैली निकाला, भावनाओं पर भरने लगा मिर्च-मसाला, डाकू कुछ दिनों बाद पकड़ा गया, गिरफ्त में माल सहित आ गया, पर नेता ने डाका डालने का एक नायाब तरीका निक...
जिसे जो कहना है कहने दो
कविता

जिसे जो कहना है कहने दो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिसे जो कहना है कहने दो, मुझे मेरे सांचे में रहने दो, मुझे क्या करना है, कहां जाना है, क्या खाना है, किन सोये हुओं को जगाना है, मुझे नहीं कभी मजबूर होना है, किन जाहिलों से दूर होना है, ये मुझे तय करने दो, जमीं पर अपना पांव खुद धरने दो, मुझे मिली ऐसी शिक्षा कि सिर्फ अपना न सोचूं, जो जा चुका है उसके लिए सिर न नोचूं, शायद जरूरत हो मेरी तनिक भी मेरे समाज को, पढ़ाना है, जगाना है, तो क्यों बदलूं अपने अंदाज को, मजलूमों को अपनी बातें कहने दो, प्रगति की बयार उनके घर तक भी बहने दो, जिसे जो कहना है कहने दो, मुझे इंसानियत, भाईचारा, नैतिकता और संवैधानिक सांचे में रहने दो। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिका...
जिंदगी की रेलगाड़ी
कविता

जिंदगी की रेलगाड़ी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां जिंदगी एरोप्लेन या रेलगाड़ी नहीं, पर घिसट-घिसट कर चल रही, एक्सप्रेस, सुपरफास्ट तो नहीं कह सकता, पर पैसेंजर रेल सा ही बहता, कभी सिग्नल नहीं मिल पाता, कभी टाइमिंग के इंतजार में खड़ी रह जाती है जिंदगी, कभी जबरन जीवन में घुस आये नेता या रिश्तेदारों की तरह खड़ी कर दी जाती है घंटों जंगल में, नहीं पड़ रहा रंग में भंग पर रुकावटें रौद्र रूप लिए खींच रही अपनी ओर फुफकारते बाधा डाल रहे अपने मंगल में, समझ ही नहीं आ रहा जियें, जीने की आस छोड़ दें, या जिये जायें घिसटते कीड़ों जैसे, बचे उम्र दिखाएंगे रंग कैसे कैसे, कभी चल पड़ती है जिंदगी तो पता नहीं क्यों भयंकर दर्द का अहसास करने लगते हैं सारे के सारे रिश्तेदार, क्या मालूम ये वेदना है या खुशी की खुमार, एक बात तो जान पाया कि कहने के लिए होती है जिंदगी हसीं,...
शिक्षा और चेतना
कविता

शिक्षा और चेतना

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** लोग इस धरा पर आते गए, अपनी पहचान खातिर कुछ न कुछ बनाते गए, पर बुद्धि और विज्ञान के अनुयायी अपने किये कराये पर धरे रह गए, कैसे भयंकर बदलाव सह गए, आर्यों का हुजूम इस धरती पर आया, अपने लिए मंदिर बनाया, मुगल लोग आये, अनेकों मस्जिद बनाये, गोरे भी आये, साथ में चर्च भी लाये, पर शोषितों, वंचितों के जीवन में ज्योतिबा आया, ज्योति पुंज लाया, मां सावित्री आई, स्त्री शिक्षा लाई, बाद भीमरावआया, संघर्षों से तपकर संविधान लाया, इंडिया इज भारत बताया, जिनके कारण हम ऊंचा सर करते हैं, हाथों में किताबें और तन में कपड़े धरते हैं, और फिर कांशी आया, सत्ता से दूर बैठे सहमें अभागों में राजनीतिक चेतना जगाया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि ...
छीन लो अपना हिस्सा
कविता

छीन लो अपना हिस्सा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जगह जगह रख छोड़े हैं इंसानों ने गुलाम, जिसके अंग-अंग पर नजर आ जाती है प्रतीक गुलामी के, मस्तिष्क में सजा हुआ है आस्था के ताज, जिसे वे मान रहे रिवाज, माथे पर सुहाग की निशानी, नाक में नकेल, गले में सुहाग सूत्र, बांह में बहुटा, कमर में करधन, पैरों में बेड़ियां, क्षमा कीजिये प्यारा नाम पायल, तन को पूरी तरह लपेटते, ढंकते साड़ी, घूंघट, बुरखे, किसी से सीधे नजर न मिलाने की ताकीद, और भी बहुत सारी बंदिशें, जिन्हें जरूरी और कीमती बता धकेला गया कई बरस पीछे, ताकि न मिला सके वो कदम से कदम, की गई है बराबरी न कर पाने की अनेक कुत्सित साजिशें, हतप्रभ हूं उधर से क्यों नहीं की जा रही है विद्रोह की रणभेरी का आगाज, जबकि उनके साथ खड़ा है अशोक स्तंभ की तरह संविधान, पढ़ो, जानो और वैधानिक तरीकों से छीन ...
अंतिम संस्कार
कविता

अंतिम संस्कार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** नाम बदलिये अपने महत्वपूर्ण संस्कारों के साहबानों, सिर्फ मुझे पता है आपके संस्कारों के नाम पर अब तक कितना लुटा चुका हूं, अपनी जमीन भी गंवा चुका हूं, मृत्यु पूर्व इलाज कराना मेरा फर्ज़ था, मृतक के दिए जीवन का चुकाना कर्ज़ था, मृत्यु के दिन, जोर देकर सभी की उपस्थिति में आपने कहा था ये अंतिम संस्कार जरूरी है, किया मैंने अंतिम संस्कार, जिसके लिए कर दिया था और भी जरूरी कार्यों को दरकिनार, विधान कह करवा सम्पूर्ण श्रृंगार, कहा कर लो आखिरी दीदार, मिट्टी कार्य के बाद तीसरे और दसवें दिन फिर करने पड़े थे कुछ संस्कार, जिसे आपने नाम दिया है मृत्युभोज, अब तक हैरान हूं ये है किसकी खोज, गांव, परिवार, रिश्ते नाते सबको खिलाया, घर के अंतिम दाने को भी मिलाया, बड़ी मुश्किल से कुछ महीनों में जिंदगी को पटरी पर ला ...
गिद्ध भोज
कविता

गिद्ध भोज

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गिद्ध बड़े मजे से दावत उड़ाते हैं, बिना मेहनत से मिला खाते हैं, आज भी गिद्धों की बैठक हो रही है, बैठक भी वहीं जहां मिल गया गोश्त, आज झगड़ा भी नहीं सभी हैं दोस्त, आज तो बस जाम और साकी है, ऐसा खाये कि केवल हड्डी बाकी है, सबने देखा आज फिर कोई मरा है, हमारे लिए मैदान हरा ही हरा है, मगर ये क्या? इस मरने वाले को तो चार लोग कंधे पर उठाए हैं, आगे व पीछे भीड़ लगाए हैं, गिद्ध निराश हो गए, कई तो उदास हो गए, तब वृद्ध गिद्ध ने बोला, भाइयों इसका मांस हम नहीं खा सकते, क्योंकि ये इंसान है, ये अपने पीछे होने वाले नोचपने से अंजान है, इसे तो अभी जलाएंगे या दफ़नायेंगे, फिर कुछ दिनों के लिए ये सब गिद्ध बन जाएंगे, अब ये मरने वाले का शरीर नहीं नोचेंगे, बल्कि उनके परिवार वालों को नोचेंगे, हम तो वातावरण सा...
मानवता
कविता

मानवता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक संपूर्ण मानवीय गुण है मानवता, जिसमें भरा होता है, सौहार्द, बंधुत्व, समता और समानता, इसमें समाहित रहता है सद्भाव, प्रेम, सदाचारिता और सद्चरित्र, यहीं भाव होता है मानव में पवित्र, सुख समृद्धि एवं शांति से जीवन हो परिपूर्ण, मानवता के लिए ये विचार महत्वपूर्ण, इसमें मानवीय जीवन निरर्थक और उद्देश्यहीन नहीं, जो है सर्वथा उपयुक्त व सही, लोकमंगल की भावना तथा उत्कृष्ट विचार, ये सब मानवता के परिवार, भौतिकता से ऊपर है आदर्शों का स्थान, सिर्फ अपने सुख की चाह नहीं छुपा इसमें सबका मान सम्मान। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
हां, हूं नशे में …
कविता

हां, हूं नशे में …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उस नशे का कोई मोल नहीं जो किसी और दुनिया की सैर न कराए, दूसरी दुनिया का एक एक बंदा अपनी बात लेकर न टकराए, मैंने भी किया है नशा जिस नशे में मैं चूर रहता हूं, जिसका लिए हरदम सुरूर रहता हूं, इस नशे के कारण मैंने एक और बहुत बड़ी दुनिया जाना, जहां बना लिया अपना ठिकाना, वो दुनिया है बेबस मजबूर लोगों का, पाई पाई के लिए कशमकश करते भूखे,प्यासे मजदूर लोगों का, जिन्हें नहीं पता अपना हक़, लिए घूम रहे हैं माथे पर मिथक, खा रहा है कोई जिनके हिस्से की रोटी, जिन्हें पड़ रहा बार बार सीना लंगोटी, उन्हें खबर ही नहीं बहुत लोग खड़े हैं चोरी करने किसी और की टोंटी, हां है मुझे लोगों को जागरूक करना, क्योंकि अभी भी है मुझमें नशा हावी, साहू-फुलेवाद का, अम्बेडकरवाद का, पेरियारवाद का, संविधानवाद का, और यहीं नशा मुझे सैर क...
आस्तीन के सांप
कविता

आस्तीन के सांप

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हमारे देश में वैसे तो हर तरह के सांप पाये जाते हैं, सामने आ जाये तो डर से मारे जाते हैं या भगाये जाते हैं, सांप तेजी से डसते हैं, इसलिए लोग इससे बचते हैं, पर दुनिया का सबसे खतरनाक सांप आस्तीन के सांप होते हैं, इससे रूबरू होने से कोई नहीं बचते हैं, ये हर पल आपके साथ रहेंगे, साथ सुख दुख सहेंगे, मगर अपना असली रंग ये तब दिखाता है, जब कोई खास मौका आता है, ये किसी को भी डस सकता है, डस कर ये भागता नहीं बल्कि सबको स्पष्ट नजर आता है, तब आप झुंझलाने के सिवा कुछ भी नहीं कर सकते, इसका गर्दन या पूंछ कुछ भी नहीं धर सकते, वैसे तो इनसे बचकर रहना चाहिए पर बच नहीं पाएंगे, आप संगठन वाले हों, मिशन वाले हों इनसे बिल्कुल बच नहीं पाएंगे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ...
सूत्र
कविता

सूत्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खबर बनाना और बेचना खबरचियों और चैनलों का शानदार और कमाऊ धंधा है, इस धंधे में प्रॉफिट बहुत है धंधा बिल्कुल नहीं मंदा है, पहले की बात और थी पर आज खबरें बनाये जाते हैं, झूठ को सच का जामा पहनाये जाते हैं, पैसे देकर खबरें बनवाये जाते हैं, वक़्त आने पर उसे भुनाये जाते हैं, तब पत्रकार बन जाते हैं पत्तलकार, पत्रकारिता बन जाता है व्यापार, इनके सूत्र होते हैं मजबूत, जिसका होता नहीं वास्तविक वजूद, सूत्रों का नाम ले दिखा जाते हैं चरित्र, एक ही थैली के चट्टे बट्टे होते हैं सारे मित्र, कभी कभी सूत्र होते हैं विश्वनीय, असल में जो होते हैं निंदनीय, ये खुद को कहते हैं लोकतंत्र का चौथा खंभा, जिसे ये अपने कर्मों से साबित कर कमाने लग जाते हैं हरे रंग की अम्मा, अब बताओ सूत्र फर्जी खबरों का आधार नहीं हो सकता, सूत्र...
हां हूं मैं मूर्ख
कविता

हां हूं मैं मूर्ख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां हूं मैं मूर्ख, नहीं होता गुस्से में मेरा मुंह सूर्ख, बचपन से लोग कहते रहे हैं और आज भी कह रहे हैं, लगभग सबने ये घोषित किया है, घर से लेकर बाहर वालों तक ने ये वास्तविक शब्द मुझे दिया है, सच कहने की क्षमता शायद मूर्खों में ही होती है, सच्चाई के पीछे भागना और साफ हृदय का होना ही अहमकता की निशानी है, मां,भाई,बहन और पड़ोसी सभी इस बात पर एक राय हैं, समाज के लोगों ने भी माना, सामाजिक चिंतन करते देख यार दोस्तों ने भी पक्का जाना, कुरीतियों,पाखंडों,अंधविश्वास, अतिवादिता का विरोध, समझदार व्यक्ति कर ही नहीं सकता, समयानुसार जल रहे आग में अपना पांव धर ही नहीं सकता, कभी कभी तो लगता है कि मेरी बीबी बच्चे भी मेरी इस महानता को दिल की गहराई से स्वीकारते होंगे, अब तो मुझे भी लगता है कि मैं सचमुच ही मूर्ख ब...
झूठ
हास्य

झूठ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** इस जहां का एकमात्र शाश्वत सत्य है झूठ, जी हां झूठ, जिसे साबित करने के लिए न पत्ते बचते हैं, न डाली बचती है और न ठूंठ, गपोड़ काल से हंसोड़ काल तक, कपोल काल से ढपोर काल तक, सर्वत्र रहा है झूठ, झूठ बोलता है आस्तिक भी, बोलता है नास्तिक भी, और बोलता है वास्तविक भी, इस पर किसी की मिल्कियत नहीं है, जो है जैसा है सब यहीं है, वैसे ये सभी को बोलने चाहिए, मुंह सबको खोलने चाहिए, एक दुखिया भी, और देश का मुखिया भी, सब झूठ बोलने के लिए स्वतंत्र है, बोलेंगे भई भले ही देश में गणतंत्र है, क्या मंत्री क्या संतरी, क्या मौनी क्या जंतरी, झूठ सबका है, जिस पर यकीन करने वाला अंधभक्त, मध्यम व गरीब तबका है, बोलो बोलो खुलकर बोलो, देश में बोलो, परदेश में, करो दिन की शुरुआत या रात्रि का खात्मा, बस झूठ में ही बसा लो खु...
आजादी के दीवाने
कविता

आजादी के दीवाने

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी का ये पावन क्षण, तश्तरियों में सज नहीं आयी है, रणबांकुरे रहे और भी, सबने मिलजुल लड़ी लड़ाई है। बांके चमार, मातादीन भंगी, ये भी आजादी के दीवाने थे, नाक में दम कर रखा फिरंगियों के,ऐसे ये परवाने थे। सिद्धू संथाल और गोची मांझी,युद्ध कला में थे निपुण, ताड़ पेड़ पर चढ़ तीर चलाये, अंग्रेजों ने भी माना गुण। नाहर खां और उदईया, गोरों के थे कट्टर विरोधी, फांसी पर चढ़ गया उदईया, धूल थी माटी की सोंधी। चेतराम जाटव, बल्लू मेहतर को, इतिहासकारों ने भूला दिया, हुए कुर्बान देश की आन में, गोली से जिन्हें मार उड़ा दिया। झलकारी बाई के रण कौशल ने, अंग्रेजों को हैरान किया, हमशक्ल लक्ष्मी की थी वीरांगना, नहीं कोई गुणगान किया। उदादेवी पासी चिनहट युद्ध की, बलिदानी नारी योद्धा थी, छत्तीस गोरों को गोली से भूना, आजादी ...
बोली
आंचलिक बोली, कविता

बोली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी बोली झिनकर भरोसा के सबो बोलहि गुरतुर बोली, कोनो कस्सा बोलहि, कोनो गुरतुर बोलहि, कोनो जहर मौहरा कस बोलहि, त कोनो नुनछुर बोलहि, पढ़हे लिखे मनखे ले मत पालव उम्मीद, के गाबेच करहि मीठ-मीठ गीत, पढ़ेच होय ले का होही, जात के गरभ म अतका घमंड हे जागतेच रइही कभू नई सोही, एक ठीन बेरा रहिस रिस्ता नता अनुसार सबो मीठ बोलय, मीत मितान मन तो गोठियाय के पहिली मुंहे म सक्कर ल घोलय, फेर आज सब नंदावत हे, गियां, महापरसाद ल छोड़ संगी दाई, ददा, भाई तक ल भुलावत हें, कहां गइस मया अउ कहां गइस दया, आज सबो हे सुवारथ खातिर सिरिफ बासी खया, सत ल बताय बेरा चिचियाथें, अउ मीठ बोली म चेता के धमकाथें, मोला तो कोनो नई दिखत हें बिन सुवारथ के मीठ बोलवा, बोली के दोस नई हे आज सबो एके रद्दा म रेंगत हें ब्यवह...
हां सब कुछ मेरा है पर
कविता

हां सब कुछ मेरा है पर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सूरज मेरा है, चांद मेरी है, हवा मेरा है, कुदरती दवा मेरा है, ये फूल, पवन पुरवाइयां मेरी है, मेहनत मेरे हैं, पर जमीन उनका है, हर नाजनीन उनका है, सर्वत्र घूम रहे हैं जहरीले सर्प और बीन उनका है, व्यवहार मेरा है, संस्कार मेरा है, सारे पाखंडों पर लूट जाने का अधिकार मेरा है, पर सारे नियम उनके हैं, जिनकी नजरों में हम तिनके हैं, भले बाजुओं में दम है, हमारे सीनों में गम है, उनके लिए लफंगे हम हैं, कीड़े मकोड़े, भिनभिनाती कीट पतंगे हम हैं, पर चिराग उनका है, झपट्टे मारता हर बाज उनका है, जंगल पहाड़ हमारे हैं, सद्व्यवहार हमारे हैं, नैतिक मूल्य, व्यवहार हमारे हैं, पर व्यवस्था में बड़ा आकार उनका है, तन हमारे हैं, मन हमारे हैं, जन हमारे हैं, खोट हमारा है, वोट हमारा है, पर सम्पूर्ण सत्ता उनका है...
वो दिन कब आएगा
कविता

वो दिन कब आएगा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां मानता हूं कि दलित आदिवासियों के पास समस्याएं हैं, पर उनके पास अपनी परंपराएं हैं, उनके मन में भी सवाल है, यदि दाग दे तो बवाल है, व्यवस्था ऊपर आरोप है, सत्ता की ओर से प्रत्यारोप है, अपने पुरखे रूपी भगवान से उम्मीद है, अपने धरोहरों से अटूट प्रीत है, कुछ अतार्किकता है, दिलों में मार्मिकता है, जातियों में खंड खंड है, कहीं कहीं थोड़े बहुत पाखंड है, प्रशासनिक ज्यादिता है, अपनी रूढ़िवादिता है, यहां तक वोट देने का अधिकार है, पर कुछ दलालों के कारण बन जाता एकदिनी व्यापार है, केकड़ावृत्ति वाला समाज है, खंडित जिनका हर साज है, पर अफसोस मानवीयता और अमानवीयता में से चयन करने में पीछे रह जाते हैं, समाज के गोद में बैठे दलालों के कारण हरदम, हरपल धोखा खाते हैं, शिक्षा का सही उपयोग क्यों नहीं कर पाते...
काखर पाछु म जाना हे
आंचलिक बोली, कविता

काखर पाछु म जाना हे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दु माडल हे देस के आघु जेला चाहव चुन ल जी, का करम कुकरम हे एखर भीतरी आवव थोरकुन गुन ल जी, गोड़ गिरव अउ माथा रगड़व एक माडल ह कहिथे जी, जनमानस ल भरमाये खातिर आस्था के धार बहिथे जी, जात पात बरिन ल मान के खुदे नीच कहलावव जी, बइठान्गुर के बात ल मानव पेट ओखर सहलावव जी, जाति धरम के पाछु म आंखी मुंदा जावव जी, हाथी कस ताकत ल अपन छिन छिन म भुला जावव जी, एक बरन ह राजा रहि एक बरन ह रद्दा बताही जी, एक बरन ह लुटही खसोटही बाकी धार बोहाही जी, हजारों बरस के पाखंड ह जोर से फेर बोमियाही जी, पुरखा हमर रोये रहिन हे जइसे वोही दिन ह लउट के आही जी, अब बात करन दूसर माडल के ओमा का का होही जी, कोन उड़ही अद्धर अकास म कोन धरती म सुत रोही जी, संविधान ह रक्छा करही सबला सबल बनाही जी, भाई बरोबर सब मिल जुल रहीं समता के फुल ...
नशा मुक्त हो जीवन सबका
कविता

नशा मुक्त हो जीवन सबका

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दिखावे का युग आज है, बनावट ओढ़े सर पे ताज है, राजस्व की फिकर सत्ता को मय मदिरा घर-घर में आज है, लगा हुआ है ध्यान ये सबका, झूम रहा हर वंचित तबका, खोज रहा हर कोई कृपा ये रब का, तन मन धन बर्बाद है इससे, नहीं आता बाहर कोई इस सनक से, हर कोई दुखी हैं नशे की धमक से, यारों इस नशे को अब तो छोड़ो, कीमत चुकाये हैं नशे की सबब का, नशा मुक्त हो जीवन सबका, अब बात करें उस नशे की जो जीवन में बहुत जरुरी है, करलो समाजोत्थान का नशा, मिशन के गुणगान का नशा, जागृति अभियान का नशा, हर जीवन के सम्मान का नशा, मत भूलो इस नशे से भीमराव, फुले, पेरियार भी झूमे थे, जनजागरण के इस नशे के लिए बुद्ध, कबीर, गाडगे भी घर घर घूमे थे, तो छोड़ो नशा मद्यपान का, कुछ तो सोचो अपने सम्मान का। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी :...