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Tag: राजीव रावत

एक कसक बाकी है
कविता

एक कसक बाकी है

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** आज भी अधूरा सा है जिंदगी कि यह सफर तुम्हारे बिना- दिल तो तन्हाइयों में पागल सा ढूंढता है आज भी तेरे निंशां- ये बेकरारी आज भी दिल की धड़कनो में देती है एक आहट सी- दिल के मुंडेरों पर उग आती है अक्सर हरी दूब जिसमें एक छुपाई हुई चाहत सी- अभी भी दिल के हवादानों पर ठहरी हुई श्वासों को तेरी गंध मन को बहला जाती है- नदी के पानी में डुबोये तेरे पैरों की वह छपछप और दूर दिशा से आती हुई पुरवाई तेरे यादों की बयार से नहला जाती है- यूं तो मुस्कराता हूं छुपा कर दर्द-ओ-ग़म दिल में आज भी भला कहां है सुकून-ए-जिंदगी तेरे बिना- इंतजार-ए-इश्क और बेकरारी आज भी कायम है दीदार-ए-यार को तेरे बिना- चल रहा हूं सफर-ए-जिंदगी में लिए तेरे अहसासों को मुंतजिर सा मगर- कर गया बेनूर सा मोहब्बत में चलने का यह हमारा सफर- तुम ...
अकेले गुजरे पल
कविता

अकेले गुजरे पल

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मैं आज भी अकेले नदी के किनारे पर तुम्हारे इंतजार में रोज रेत के महल बनाती हूं अपने उंगलियों से सहला कर आहिस्ता आहिस्ता तुम्हारे कमरे का बिस्तर बिछाती हूं मोटे मोटे कंकड़ो परे कर नर्म रेत का तकिया बनाती हूं और हवा के झोकों या नदी की तेज लहर आने से पहले उसमें स्वप्नों के नये नये दरख्त उगाती हूं मैं जानती हूं कि पल भर में यह सब बिखर जायेगा लेकिन मेरी जिन्दगी का वह एक पल तो कम से कम तुम्हारे अहसासों से भर कर छलक जायेगा तुम्हारी धड़कनों की आवाजें सुकून से सोने कहां देती हैं शरीर की वह गंध और तुम्हारे स्पर्श का स्पंदन और तुम्हारी परिछायी तुम्हारी गुजरी राह में आज भी दिखाई देती है सच कहूं यह अकेलेपन की वेदना हर जगह उदास निगाहों से तुम्हें देखना बालों में तुम्हारी उंगलियों की संवेदना अधरों का ...
दो शब्द
कविता

दो शब्द

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी और मोहब्बत की ऊंचाइयों में एक बहुत ही अजीब अंतर होता है-- एक का पैमाना छूना आकाश के तारों को और दूसरे का समुन्दर होता है- जब जिंदगी में सीढ़ियों को चढ़ते हुए चांद तारों को तोड़ लाते हैं, सफलता के झंडे जब हमारे चारों ओर फहराते हैं- यही पैमाना ही जिंदगी की तब ऊंचाइयों का नाप होता है-- और मोहब्बत में जितना डूबो देते हैं अपने आप को उतना ही उसके इश्क की बुलंदियों का माप होता है-- मोहब्बत शरीर से हो या नश्वर से कोई अंतर नहीं होता है-- बस डूब कर उबरना ही इसका मंतर होता है- जितना डूब जायेंगे और थाह ले लेगें गहराईयों की- उतनी सीढ़ियों अपने आप चढ़ जायेगें आस्था और मोहब्बत की ऊंचाइयों की- माना की मोहब्बत की राह कटंको और रूकावटों और बंधनों से भरी दुरूह होती है- लेकिन मात्र तन की अभिलाषा प्...
बैचेन मन…
कविता

बैचेन मन…

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दिल की आह से- खोजती हैं नजरें किसे सूनी निगाह से- अतृप्त सी अभिलाषा मिलन की उत्कंठा लिए कौंधती सी आशा- निस्तब्ध सा खड़ा समय भी विचित्र है- दिल के कैनवास पर उभरता सा चित्र है- बांदलों की ओट से झांकता चांद सा- मन का मयूर भी हर आहट पर नाचता- अधर भी कांपते न जाने क्यों मौन हैं- तू भी चुप, मैं भी चुप, आहिस्ता दिल मे फिर बोलता सा कौन है- न जाने क्यों छिन गया दिल का सुकून है- किसी की चाहत का कैसा ये जूनून है- दिल की दिल से कैसी यह अनुरक्ति है- चाहत की धार भी रौके नहीं रूकती है- दिल के मिलन की अजीब सी ये रीति है- दिल तो अपना है पर दूसरे की प्रीति है- धड़कनें धड़कती, चलती जो श्वांस है- उनको भी किसी के आने की आस है- अपना भी अपने पर रहता कहां अधिकार है- शायद यही कहलाता शास्वत् प्यार है- बारिश क...