बापू की पगड़ी
राजीव आचार्य
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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मां कहती
मैं बापू की पगड़ी,
बापू की आन, बान, शान,
मैं ही घर का अभिमान।
मां कहती,
ये कपड़ा नही,
सिर का ताज है,
गर्व का आभास है,
बापू की पगड़ी।
दरवाजे पर जो,
दहलीज बनी है,
वही रेखा है,
सीमा की,
घर के बाहर जाते,
कुछ ऐसा न करना,
धूल धुसारित हो जाये,
बापू की पगड़ी।
बापू होते घर,
न होते,
पर पगड़ी साथ मेरे होती,
रात में मेरे साथ ही सोती,
आखिर मैं ही तो थी,
बापू की पगड़ी।
पर एक दिन,
भूचाल आ गया,
भाई जुए की फड़ में,
हवालात खा गया,
मां तपती रही,
अंगार में,
लोगो ने,
पगड़ी,
उछाल दी बाजार में।
पर,
मां तो कहती थी,
मैं हूँ,
बापू की पगड़ी ??
परिचय :- राजीव आचार्य
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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