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बाध्य सैनिक
कविता

बाध्य सैनिक

रवि यादव कोटा (राजस्थान) ******************** शिव का नाग समझकर हमने, कितने सांपो को पाला है, भोली जनता के आगे, नक्सली का राग उछाला है। इसीलिए क्या सवा अरब ने, तुमको गद्दी दिलवाई थी, विकास न्याय रक्षा की, तुमसे आस लगाई थी। चूड़ी कँगन टूट गया, उंगली हाथो से छूट गई, बूढे बाबा की इकलौती, वो लाठी भी टूट गई। सुना आँगन तुलसी का, बगिया का पौधा सूख गया, माँ की आखों का तारा, माँ के आँचल से छूट गया। दया बताई झूठी सी, वन्दे मातरम बोल दिया, उसकी त्याग तपस्या को, बस पैसो में तोल दिया। क्या यही लक्ष्य है बदलावों का, जो तुमने दिखलाया था, या केवल गद्दी के कारण, झूठा स्वप्न बताया था। हमने ही भारत में नित, कुत्तों को सिंह बनाए है, इसी धरा पर कितने ही, अफजल आशाराम बनाए है। नपुंसक बनकर क्यो बैठे हो, दिल्ली के दरबारों में, व्यस्त बने हो क्या तुम भी, सत्ता के व्यापारों में।। कब तक ढोएंगे हम अपने सैनिको की लाशों क...
तिरंगे के खातिर
कविता

तिरंगे के खातिर

रवि यादव कोटा (राजस्थान) ******************** जहाँ तिरंगे के खातिर वो सूली पर, चढ़ जाते हैं, जहाँ तिरंगे की खातिर, हंसते-हंसते मर जाते हैं, जहाँ तिरंगे के खातिर, जीवन अर्पण कर जाते है, जहां तिरंगे की खातिर भारत, दर्पण बन जाते हैं, उसी तिरंगे का भारत में, ऐसा हालात बना देखो, कहीं जलाकर फेंका है, ऐसा आघात करा दे, रोते होंगे राजगुरु, सुखदेव भगतसिंह आंखों से, जिनके लिए दिया जीवन, जलते देखा उन हाथों से, भगत सिंह कहते है....... हमने उसके लिए सदा, माँ-बाप को पीछे छोड़ा है, इसकी आजादी के हित, अपनों से चेहरा मोड़ा है, भूखे प्यासे रहकर भी, शोणित से नित श्रंगार किया, खुद हुए चुपचाप मगर, अपने हिस्से का प्यार दिया, परिवार हमारे भी थे, गर सोच बनाते जीवन में, छोड़ के आजादी सपना, गर मौज बढ़ाते जीवन में, गुलाम दासता जीते फिर, ऐसा आबाद नहीं होता, गर सोच जो ऐसी रखते तो, भारत आजाद नही होता।। परिचय - रवि ...