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Tag: रवि कुमार

उड़ान
कविता

उड़ान

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** तोड़ सारी जंजीरों को मै एकदिन को उड़जाऊंगी सपनों से भरे है पंख मेरे, मै पंख अपने फैलाऊंगी रित-रिवाज कैसी है ये। कैदखाने जैसी है ये।। फिर-भी दूर आसमान में अपनी जगह बनाऊंगी परम्पराओं से बंधे है पैर मै फिर भी पंख फैलाऊंगी तोड़ सारी जंजीरों को मै एकदिन को उड़जाऊंगी सपनों से भरे है पंख मेरे, मैं पंख अपने फैलाऊंगी परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
बदनाम गली
कविता

बदनाम गली

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** मैने अक्सर उन गलियों में जिंदगी को सिसकते देखा है. हंसते चेहरों में बेबश और परेशान इंसान भी देखा है। हम जैसे ही है सब वहां कोई फर्क नही है उनमें।। मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है जीने की कोई वजह नहीं वहां किसी में, चंद पैसों में जिस्म नीलाम करते देखा है। तुमने सिर्फ जिस्म देखा उनका उनमें बैठा इंसान कहा देखा है मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है जाती धर्म का जरा भी खेद नही हर मज़हब के लोग आते वहां देखा है। उनके भी है कई ख्वाब अधूरे उमंगों का शैलाब भी उनमें देखा है सबने सिर्फ बदन नोचा है उनका क्या कभी उनका दिल भी देखा है मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना ...
माता का आंचल
कविता

माता का आंचल

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** माँ की पल्लु पकड़ आज रो रहा हूँ मैं।। प्यार भरी ममता आंचल मे सौ रहा हूँ मैं।। सपने में आया उड़ता परिन्दा काट रहा था हाँथ मेरे।। मानो माँ से कह रहा हो छोड़ इसे चल साथ मेरे।। माँ की ममता बहक गई,, आँसु आँखो-से छलक गई।। दूर खड़ी थी माँ मेरी छूने से मुझको तरस गई।। उड़ गया परिंदा नीले गगन में ले गया माँ को साथ मेरे आँख खुली तो पाया में कोई नहीं अब साथ मेरे।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17...
परछाई
कविता

परछाई

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** सुकून की तलाश मे अकेले चल पड़े थे हम, ना कोई आगे नजर आए ना कोई पिछे। नजर आती तो बस एक लम्बी सी सड़क जो मिलो तक फैली है,, लगने लगा मानो सबने साथ छोड़ दिया हो मेरा जैसे सुकून की तलाश में गुमनाम हो बैठे खुद से। समय ढलने को आया तलाशी जारी थी मेरी, सुकून तो मिला नही पर मिला कोई हमसफर, चल रहा था साथ मेरे मेने पुछा कोन हो आप? विनम्रता से बोलीं...परछाई।। परछाई है हम।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।\ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hi...
उनकी यादें
कविता

उनकी यादें

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** आँखों के बीच समुंदर मे मौसम ने की बदमाशी है। सोते ही नही हम रातों को केसी ये तन्हाई हैं।। यादों के बीच समुंदर में तैर रहा हुँ मै। उनकी याद की 'यादो' से अब गैर हुआ हुँ मै।। माँ की ममता भुल गया में भुल गया राखी त्यौहार। जबसे पाया हे तुमको, मै भुल गया सारा संसार।। ना दोस्त रहें ना प्यार रहा ना रहा मेरा घर-संसार। तस्वीरो में केद होके, बस रह गई उनकी यादें हजार।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindir...
भारत ही हमारा धर्म
कविता

भारत ही हमारा धर्म

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** ना जात-पात मे खेद यँहा ना रंग-रुप मे भेद, ना धर्मों की कोई गिनती यँहा यहाँ धर्म मिले अनेक। कन्ही 'राम' हे कन्ही 'रहीम' कन्ही 'कृष्णा' तो कन्ही 'करीम ईस धरती पे ना जाने कितने विरो ने जन्म लिए, ईस भारत माँ के खातिर कितनों ने 'सर' कल्म किये,, जिसनें भी देखा नजर उठा के उनको भी सहनी हार पड़ीं 'भारत' ही हमारा धर्म है बस यही हमे संस्कार मिली।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अ...
नारी उत्पीड़न
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नारी उत्पीड़न

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** रो रही हूँ सिसक-सिसक्कर ना पोंछता कोई आँसु है, आँसु की नदियाँ बह चली रोकना भी अब बेकाबू है। नैन निहारे ताक रही है खड़ी घर मे चौखट सहारे, क्यूं होता हे नारी उत्पीड़न? सोंच रही हे नैन सुलाये। माँ चाहिए बहन चाहिए चाहिए प्यारी-सी पत्नी। फिर क्यूं गर्भपात कराते हो? जब गर्भ में बेठी थी बेटी। इनको भी अधिकार चाहिए समाज से थोड़ा प्यार चाहिए, माँ की ममता- बहन का प्यार नारी से है घर संसार। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टा...
यादे माँ की
कविता

यादे माँ की

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** यूं ही पडे है चावल के दाने छत पर जेसे डाल दिया करती थी माँ आंगन पर जब झुंड मे आकर चहक- चहकर चुग जाती सारे दाने वो प्यारी-सी मैना और गौरेय्या देख सुकून मिलता था माँ को जब नाचती थी चिड़ियाँ आँगन आकर। अब तो बस यादे बनकर रह गई वो सारी बाते जब माँ पाबंदी लगाती थी उनकी घोंसलो को छूने पर। दिखती नहीं अब वो चिड़ियाँ जो आया करती थी आँगन पर। अब तो किताबो के पन्नो मे कैद हो गई मैना और गौरेय्या की कहानी। कहा जाता है लुप्त हो गई सारी चिड़ियाँ इस मानव जीवन से। कभी-कभी लगता माँ के साथ चली गई सारी चिडियाँ आस्माँ की सेर पर भुल गई मुझे मेरी माँ चली गयी मुझे अकेला छोड़ कर। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिच...