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Tag: मुस्कान कुमारी

हमसफर एक्सप्रेस
कहानी

हमसफर एक्सप्रेस

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कुछ कहानियां ऐसी होती है जिनको शब्दो में बयां नहीं किया जा सकता, एक कहानी ऐसी भी... तोड़कर खुद को वो किसी और को जोड़ रहा था हां, एक लड़का जो किसी से बहुत प्यार कर रहा था हमेशा खुद को वो उसके ही सपने में डुबोए रहता था एक साल हो गए और सब अच्छा चल रहा था पर अचानक से एक मनहूस दिन आया लड़की के घर में धीरे-धीरे सबको पता चल रहा था उस पर पाबंदियों के हजारों जंजीरे लगने लगी उसका अब घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो रहा था इधर लड़का बेचैन उसे कहां धैर्य हो रहा था। वो उसे देखने को कब से बेचैन बैठा था आदत थी उसे हर दिन उसे देखने की अब उससे इंतजार नहीं हो रहा था, कहीं से उसकी कोई खबर आए काश उसे कोई बाहर ले आए एक बार देख ले उसे तो उसे चैन आए पर कहां कोई उसकी दिल की बातों को सुन रहा था दो दिल रो रहे थे, थे वो परेशान बात इतनी सी थी अलग थी उ...
तितली बन उड़ जाने दो
कविता

तितली बन उड़ जाने दो

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** मुझे मत मारो इस स्वर्ग सी कोख में मुझे इस जग में अपना अस्तित्व बनाने दो मुझे समझो ना तुम एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक पेड़ इस धूप में मुझे इस जग में अपना छाया फैलाने दो मुझे समझो ना एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं नही एक बोझ सी घर में मुझे दो घरों को संभालना है मैं आपकी पैसे लेने नही पापा ढेर सारी खुशियां बांटने आई हु मुझे उन खुशियों को बाटने दो मुझे समझो ना एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक छोटी सी परी इस जमाने की मुझे पापा की रानी बन जाने दो मुझे समझो ना एक कली की बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक छोटी सी चिड़िया इस दुनिया में जो दो घरों को संभालेगी मुझे जीने दो मैं कुछ करना चाहती हूं मुझे भी कुछ करने दो मुझे समझो ना एक फूल की क...
एक शिक्षक
कविता

एक शिक्षक

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कभी उसे उदास नही देखा चाहे हो उसके जीवन में लाख परेशानियां पर कभी उसे चिंतित नहीं देखा कभी खुद के लिए ना जीकर मैने उसे दूसरो के लिए जीते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। चाहे जिंदगी की परेशानी हो या हो किताबो की परेशानी मैने उसे बताते ही हल करते देखा कभी रुकने के लिए नही हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। निरंतर चलने का उसका वो इरादा मैने बच्चो के भविष्य को बनाते देखा परिवार है उसका भी पर मैने दूसरो के बच्चो को अपना बच्चा बनाते देखा और अपने परिवार से अलग हटकर विद्यालय को भी परिवार बनाते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। जीवन में कभी पूर्ण विराम न लगने देना ऐसा उनको समझाते देखा किसी भी बात क...
हां मैं बेटी हूं
कविता

हां मैं बेटी हूं

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** हां मैं बेटी हूं जिससे ये दुनिया चलती है मुझसे है सभी को नफरत जिससे उनकी पीढ़ी चलती है। जब छोटी थी तो हर ख्वाब दिखाया गया थोड़ी सी बड़ी हुई तो हर ख्वाब अधूरा सा रह गया जब जिद्द की पूरा करने की तो घर में मुझे बिठाया गया अभी उलझने बहुत है किसी तरह जिंदगी चलती है हां मैं बेटी हूं जिससे ये दुनिया चलती है। पापा कहते समाज को देखकर चलना है मैंने कहा हमे ही तो समाज को बदलना है पापा ने कहा समाज को तुम नहीं समाज को देखकर तुम्हे बदलना है। मैंने कहा पापा मुझे कुछ करने दो पढ़ लिख कर कुछ बनने दो पापा ने कहा तुम बेटी हो रहने दो मैंने कहा पापा अभी रहने दो मुझे अभी रहना है सबकी निगाहों में पापा ने फिर वही कहा, तुम बेटी हो तुम्हे जाना है ससुराल में फिर मैं इस घर को छोड़ दूसरे घर को चलती हूं वहां प...
एक बहु
कविता

एक बहु

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** हर रोज सहती डाट सबकी बस इतना ही बोलती है गलती नही होगी अबकी रात को जब सोती है घर की याद उसे आती है बहु भी किसी की बेटी है लोगो को ये बात समझ क्यों नही आती है। रोज सुबह जल्दी उठती है सुबह से काम कर करके रात को थक कर सो जाती है काम कर के हो जाती उससे गलती है तुम्हारी मां ने यही सिखाया यही बात सबसे सुनती है बहु भी किसी की बेटी है ये बात समझ क्यों नही आती है। अपने सपने को छोड़ कर दूसरे के सपनो को पिरोती है किसी और के सपने को लेकर वो खुद परेशान रह जाती है कभी हिम्मत नही करती है अपने सपनो को कहने की कह देती तो, हमारे घर की बहुएं ये काम नही करती है यही उसे सुनने को मिलती है बहु भी किसी की बेटी है ये बात समझ क्यों नही आती है। सासु मां की ताने सुनती है वो भी कुछ नहीं बोलते जिनके लिए वो सब छोड़ आई है आखिरकार रोकर वो मां को याद करती है बहु भी ...
कभी नदियों में
कविता

कभी नदियों में

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कभी नदियों में छलछलाहट थी चिडियो की चहचहाट थी चुड़िओ में खनखानाहट थी पेड़ो में सनसनाहट थी आज सब शांत दिख रहा क्योंकि मनुष्य खुद के बारे में सोचकर खुद का ही नाश कर रहा। कभी रास्तों पे भीड़ थी अपनो से मिलना था नई संस्कृति का चलन था कॉरोना ने सब सिखला दिया पुरानी संस्कृति को याद दिला दिया। परिंदे आज आजाद हुए इंसान घरों में कैद हुए देश पूरा शमशान हुआ ऑक्सीजन की किल्लत हुई तो पेड़ पौधों को लगाए और बचाए पहले से नहीं थी चिंता अब जल रही है चिता। गलती हुई इंसानों से निकल रहा उसका परिणाम अब गलती को सुधार भी लो एक पेड़ अब भी जरूर लगाओ प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं। समस्या बड़ी है गलती भी बड़ी ही हुई है लेकिन ये भी एक वक्त है गुजर ही जायेगा जब खुशी के पल न ठहरे तो ये भी धीरे-धीरे निकल ही जायेगा। घर में रहे, स्वस्थ रहे। परिचय :- मुस्कान कुमारी ...
नशा
कविता

नशा

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** नशा तुम करते हो भुगतना परिवार को पड़ता है गलती तुम्हारी होती है पर भूखे सोना तुम्हारे बच्चो को पड़ता है कह-कह कर थक जाती है तुम्हारी पत्नी पर तुम तो उन्हे मारने पड़ते हो। ये आदत बुरी है तुम भी जानते हो पर दोस्तो के साथ मे तुम भी बड़े मजे से पीते हो जीवन में तुम्हे क्या करना है तुम नहीं सोचते हो बच्चे पत्नी को छोड़ कर तुम दोस्तो की बाते मानते हो। तुम्हारे बाद क्या होगा घर का तुम तो शौक से पीते हो और जनाब हर रोज पीकर तुम खुद को ही बर्बाद करते हो उसे खाने या पीने से पहले पढ़ तो लिया करो ना आए पढ़ना तो चित्र तो देख लिया करो। तू नशा कितनो की जिंदगियां बर्बाद करेगा किसी के मांग का सिंदूर छीन लिया तो किसी के सिर से पूरी कायनात छीन ली किसी के सहारे को खत्म कर दिया तो किसी को अपने ही घर से बेदखल कर दिया...