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Tag: माधुरी व्यास “नवपमा”

राहत की एक सांस
लघुकथा

राहत की एक सांस

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** लगातार तीसरे वर्ष जब वर्षा तो कम थी पर बिजली का चमकना,बदल का गरजना, बारिश का गुस्सा खा-खाकर बरसना और थोड़ी देर में सब शांत हो जाना। प्रकृति का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था, वो भी भादौ माह में!आठ दिन से बारिश बन्द थी। "अरे! ये क्या? कितने खतरनाक बदल घिर आये। अंधेरा हो गया। मीरा बोली। उसकी सखि स्कूल से घर के लिए निकलने को अपना समान सम्हाले बोली- "अभी तो चार ही बजे है, देखो बिजली और बदल कैसे गुस्से में है? जोरदार बिजली कड़की मीरा ने दोनों हाथों से कान बन्द कर लिए। छुट्टी के बाद स्कूल पूरा खाली हो चुका था, टीचर्स बस में बैठे, बस चल पड़ी। साथ ही वर्षा का रौद्र रूप पूरे रास्ते देखा, पच्चीस मिनिट में नाले पूर आ गए, सड़को पर तेजी दे पानी चढ़ गया। मोबाइल की घण्टी बजी- "हेलो बेटा, मीरा के बेटे का फोन था। मैं बस दस मिनिट में अपने घर के स्टॉप पर पहु...
नया ठिकाना
लघुकथा

नया ठिकाना

आज सुबह से बच्चे के जोर-जोर से रोने की आवाज से मीरा बहुत बेचैन थी आखिर बाहर आकर देखा। नए मकान के चौकीदार की झोपड़ी के बाहर टूटी खटिया पर उसका ९ वर्षीय बेटा गब्बू बिलख-बिलख कर रो रहा था। क्यों गब्बू इतनी जोर-जोर से क्यों रो रहे हो? कब से रोए जा रहे हो, क्या हुआ? गब्बू और जोर से क्रंदन करने लगा। उसके माता-पिता अपना बोरिया-बिस्तर बांधने में भिड़े हुए थे। माँ बोली- "का करे मैडमजी इहा अब मजूरी नाही सो गाँव जा रहे हैं। ई गब्बू कहत है इस्कूल जावेगा, गाँव मे पड़ई छूट जावेगी देख लेव कईसा रो रवा है। मीरा बोली - "तो मत जाओ ना! कुछ समय की बात है सब ठीक हो जायेगा। इतने में पिता झुंझलाया- "पेट की आग नाही रुक सके है बेनजी। मीरा बोली- "पर बच्चा कब से रो रहा है मुझे घबराहट होने लगी तुम पिता होकर.....इत्ताई घबराट है तो रख लेव इका। पढ़ाया करियो। मूक होकर मीरा घर मे चली गई। पेपर पढ़ रहे पति को दुखी होकर सब बात बता...
एक पत्र देश के नाम
पत्र

एक पत्र देश के नाम

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक पत्र देश के नाम २६ मई २०२० इंदौर(म.प्र.) प्रिय देश, सादर नमस्कार🙏🏻 तुम्हारी भूमि में जन्म लेकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम भी मेरे समान आदर्श नागरिक पा कर प्रसन्न होंगे। तुम्हे विदित हो कि इस धरा पर बड़े होते हुए मुझमे तुमसे प्रेम और आत्मीयता अनायास ही सहज रूप से पनप गई है। पिछले दो दशकों में समझ नहीं आता कि तुम्हारे विकास और उन्नति का जश्न मनाऊँ या तुम्हारे मौलिक गुणों के पतन का मातम मनाऊँ। उम्र के हर पड़ाव पर मैंने तुम्हारे साथ परिवर्तन को महसूस किया है। मेरे प्यारे देश तुम्हारा वो समय जब यहाँ की बेटियाँ, लाज शर्म में रहते हुए, बेख़ौफ़ सभी में अपनापन अनुभव किया करती थी। यहाँ के बेटे नैतिक रूप से संबल थे। यहाँ का हर नागरिक आपसी बंधन में मजबूती से बंधा था। भौतिक संसाधनों और सुख-सुविधाओं को पाने की होड में हे ! भारत आज जो तुम्...
इशक़्या
कविता

इशक़्या

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** क्या सोचते हो मैं तुम्हे सब गम दिखाना जानती हूँ। अरे दिल हूँ आईने से भी खुद को छुपाना जानती हूँ। गर आ जाए आँखों मे नमी का सैलाब कभी तो फिर, मुस्कान से अपने चेहरे कि चमक बदलना जानती हूँ। तुम सोचते हो इजहार-ऐ-सूरत से भांप लेंगे दिल का हाल, गजब की अदाकारी से हाल-ऐ-दिल बदलना जानती हूँ। तुम घाव पर घाव दे सोचते हो मरहम लगाना तो, मैं आँसुओं से जखम पर लेप लगाना जानती हूँ। ये मान गई, गजब की ठंडक थी तुम्हारी फूंक में तो भी, मैं चोंट को छुपाने का हुनर, अब बख़ूबी जानती हूँ। दावा गर करता है वो, मुहब्बत का ऐ "नवपमा"तो, सुनले! मैं रूहें-इश्क़ से उसकी रग-रग जानती हूँ। . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य...
सौभाग्य
लघुकथा

सौभाग्य

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** विवाह के पश्चात समस्त कुल परम्पराओं का निर्वाह करती मीरा आज २८ वर्षों से दशामाता की पूजा करती आई है। पहली पूजा पर वो बहुत खुश थी। सासु माँ ने बताया था कि इस पूजा को भक्ति भाव और श्रद्धा के साथ करने से घर की दशा सुधरती है। कल जब स्वयं की बहू को जानकारी दी तो यही सब बताया था उसने! बहु ने कहा-मम्मीजी पूजा करने से दशा नहीं सुधरती, दशा तो सुधरती है ईश्वर में श्रद्धा और आस्था रखकर कर्म करने से और आप लगातार करती आई है। इस वाक्य की आधी लाइन सुनते ही मीरा की सासूमाँ जो विगत १० वर्षों से दशा पूजा अकारण ही छोड़ चुकी थी, बोल पड़ी- "सही तो कहा बहु ने इसे अभी से इस जिम्मेदारी को देने की जरूरत नही, तुम हो ना। तुम ही करती रहो।" पुरानी पीढ़ी की जिद्द और नई पीढ़ी के नए विचार, लम्बी निश्वास के साथ मीरा अपना कर्तव्य निर्वाह करती हुई पूजा करने चल पड़ी। ह...
माँ को नमन
कविता

माँ को नमन

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** धन्य-धन्य मेरी प्यारी माँ, तू कितनी महान है... जन्म-पूर्व से मेरा वजूद, तुझ से अविराम है। सोते-जगते, हँसते-रोते, हर पल मेरा ध्यान है। धन्य-धन्य......... उज्ज्वल, अविरल छबि घर मे तेरी बसती है, जिससे हम सब बच्चों की, जगत में सारी हस्ती है। धन्य-धन्य........ सूरज सी अनवरत कर्मरत, सदा ही तू रहती है। धरती माँ के सारे सद्गुणों की, तुझमे जैसे बस्ती है। धन्य-धन्य....... मन्दिर-मस्जिद, काशी-काबा, माँ तू चारो धाम है, क्रोध में भी आशीष लुटाना, तेरा अनोखा काम है। धन्य-धन्य...... क्या लिखूं? दुआ से तेरी माँ! सब कितने सुखी है, इतना लिखकर अब मेरी, कलम अदब से झुकी है। धन्य-धन्य...... . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास...
विश्व युध्द
कविता

विश्व युध्द

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** ये युध्द अनोखा युध्द हैं, इसमे योद्धा नहीं क्रुद्ध हैं। इसमे ना कोई रणभूमि है, ना शत्रु सेना कहीं घूमी है। रणबाँकुरे हुंकार न भरते हैं, योद्धा आपस में न भिड़ते है। गृह स्थपित जो सतत है, वो पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। जो चुप बैठा वो बुद्ध हैं, जो मौन रहे वो सिद्ध है। ये युध्द अनोखा युध्द हैं, इसमे ना योद्धा क्रुद्ध हैं। ना रात्रि में युध्द विराम है, ना दिवस में होता संग्राम है। हृदय फिर भी कंपकपता हैं, जब जन-रक्षक दुख पता हैं। संवेदनशील ही महान हैं, उसने तो पकड़ी कमान है। ये निर्मल मन से समृद्ध हैं जो नादान है -विशुध्द है। ये युध्द अनोखा युद्ध है, इसमे नही योद्धा क्रुद्ध है। सैनिक ना कोई घायल है, वो भी पुलिस का कायल है। डॉक्टर देश का रक्षक है, हर एक रोग का भक्षक है। सेवा-त्याग से शुध्द उर-वक्ष है, वो आज प्रभु के समकक्ष है...
हक़ीक़त
लघुकथा

हक़ीक़त

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** गीजर खराब हो जाने से मधु ने रॉड लगाकर बाल्टी में पानी गरम करने रखा, कचरा गाड़ी आ जाने से फ्लेट की सीढ़ियों से उतरकर कचरा डालने नीचे सड़क तक गई। सीमित समय मे बहुत से काम निपटाने की हड़बड़ी से घबराई हुई मधु पुनः सीढ़िया चढ़कर ऊपर पहुँची तो देखती है सीढ़िया विभाजित है। नीचे उतरकर दूसरी तरफ से सीढ़ियां चढ़ती है फिर वही मंजर! तीसरे फ्लेट की तरफ भागती है फिर चौथे फ्लेट.....इसी तरह हर सीढ़ी गन्तव्य तक पहुँचने से पहले टूट चुकी हैं। जहाँ पहुँचना है वो जगह हर बार दिखाई दे रही है पर रास्ता नहीं सूझ रहा। याद आया उसे पानी गरम करने रखा था, बेटा उठकर वॉशरूम में कहीं अनजाने हाथ ना लगा ले! सोच कर रूह काँप गई। मधु पूरी तरह पसीने में लथपथ, ठंडी पड़ गई। धड़कन बढ़ी हुई, बोलने की कोशिश में जबान लड़खड़ाई। बेचैन, उद्विग्न, चीख कर लगभग रोती हुई उठ बैठी। ओ..ह!! ये सपना ...
पुस्तक का संसार
कविता

पुस्तक का संसार

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** बड़ा वृहद पुस्तक का संसार, इसका ज्ञान अनन्त अपार। मानव-सभ्यता का जो हुआ विकास, पुस्तक से पाया है उसका विस्तार। संस्कृति-विकास का जो समग्र प्रयास, पुस्तकों को मिला नेह-श्रेय अपार। बड़ा वृहद पुस्तक का संसार, इसका ज्ञान अनन्त अपार। पुस्तक पर मानव मात्र का है अधिकार, जाति-सम्प्रदाय का नहीं कोई विवाद। व्यक्तित्व बनाती संतुलित और उदार, अद्भूत आश्चर्यो की इसमे है भरमार। बड़ा वृहद पुस्तक का संसार, इसका ज्ञान अनन्त अपार। मेरे एकांकीपन में एकांत है दिलाती, जब कभी भी होती हूँ मैं इसके साथ। सारे जगत में इसके संग घूम आती, स्वर्ग बना देती ये फिर मेरा छोटा संसार। बड़ा वृहद पुस्तक का संसार, इसका ज्ञान अनन्त अपार। आज करो सब संकल्प बस इतना, प्रेम करो मनुज तुम इसका करो आभार, देती है ये सतत-निस्वार्थ सेवा का उपहार, ये महान मित्र और सच्ची है सलाहकार...
मानव रूपी प्रभु
कविता

मानव रूपी प्रभु

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है, देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। कोरेना ने देखो कैसा आज कहर मचाया है। मंदिरों में लगे ताले, सबको घर मे बिठाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। देवी दुर्गा चली घर-घर लेकर आशा को, रोगी ढूंढ-ढूंढ फिर अस्पताल पठाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। भूखों का दुःख हरने देवी अन्नपूर्णा चली , कई भोजनशाला में उसने भोजन बनाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। शाला से निकलकर शारदे अदृश्य चली , दुर्मति की बुद्धि को ठिकाने पर लगाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। विपदा में प्रभु को अब दो ही रंग भाया है, खाकी वरदी पहन सही रास्ता दिखाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। श्वेत रंग प्रभु ने कैसे मौन होकर पाया है, चिकित्सक के रूप में उपचार कर पाया है। देखो...
संवाद
कविता

संवाद

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** पाटल कहे अलि से........... मुस्कुराता था मैं अपनी, खुबसूरती पे इतराता था। मधुर गुंजार पर मैं तेरी, झूम-झूम फिर जाता था। रे अलि ये क्या किया? आस-पासआकर जो तू, जब इतना मुझे रिझाता था। प्रेम भरी धुन पर मैं तेरी, मचल-मचल जाता था। रे अलि ये क्या किया? ओ! भ्रमर तूने मुझे फिर, चेत में रहने ना दिया। चित्त-चैन चुराकर तूने, विचलित, उद्विग्न फिर मुझे किया। रे अलि ये क्या किया? मधुर गीत गा-गाकर तेरे, पास आने के प्रयास ने। सुंदर-कोमल पंखुड़ियों को, मेरी भेद-भेद विदीर्ण कर दिया। रे अलि ये क्या किया? अंतर में उमड़े प्रेम को, प्राप्त तूने भी ना किया। शांत सरोवर के भीतर तूने, तरंगों-सा कंपन दे दिया। रे अलि ये क्या किया? अब अलि पाटल से कहे..... तुझ पर सम्मोहित हो मैने, घावों का परिणाम सहा। चेतनता को जब पाया तो, मन को घायल मैने किया। रे पाटल ये...
पिंजरा
लघुकथा

पिंजरा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** लॉकडाउन के दौरान घर की बालकनी में खड़ी मीरा आम के पेड़ पर बैठी चिड़ियां की बाते सुन रही थी। एक गौरैया पास बैठी डॉक्टर चिड़िया से बोली-"क्यो बहन आजकल इतना सन्नाटा क्यों हैं? सारे इंसान कहाँ गायब हो गए? डॉक्टर चिड़िया बोली - "हाँ बहन सुना है कोई कोरेना वायरस आया है, पूरे विश्व मे इंसानों को मार रहा है। लोग एक दूसरे से दूर रहेंगे तो बचेंगे वरना मर जायेंगे।" गौरैया बड़ी दुखी हुई और कुछ सोचने लगी! फिर बोली - "एक बार मैं उड़ती हुई एक घर मे चली गई थी, बहुत बड़ा और सुंदर घर था। वहाँ एक बड़े पिंजरे में तरह-तरह के पंछी थे। खूब सारा दान रखा था पर पीने के पानी के कटोरे औंधे पड़े थे। शहरों में इंसानों के खुद के लिए पानी की किल्लत है तो पंछी भी प्यासे थे। मुझे देख सारे पंछी उड़ने को फड़फड़ाने लगे। आज इंसान भी वैसा ही अनुभव कर रहे होंगे ना!" डॉक्टर चिड़िया ...
आज फिर जन्म जाओ ना राम
कविता

आज फिर जन्म जाओ ना राम

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** सुना है, त्रेता जब तुम जन्मे थे, पुलकित हो उठा था, पूरा राज्य! आज कोई नया करिश्मा करके, संताप को मिटा जाओ ना राम। तो आज फिर जन्म जाओ ना राम! यहाँ कैसा भय व्याप्त है, देखो!हर तरफ हा हाकर है। हर इंसान शंका से जार है, भव-भय हरण करो ना राम। तो आज फिर जन्म जाओ ना राम! दुष्टों की दुर्मति पुष्ट हुई है, निज स्वार्थ की लूट-मार मची है। संवेदना क्षत-विक्षत हो रही है, आओ सुकून दे जाओ ना राम। तो आज फिर जन्म जाओ ना राम! समाज की समरसता पिटी है, आज वह कैसी विषाक्त हुई है। अवसाद से देखो भक्त दुखी है, मनुज के विषाद मिटाओ ना राम। तो आज फिर जन्म जाओ ना राम! . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) आप भी अपनी...