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Tag: ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)

समानता
कविता

समानता

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** ज्यों स्कूल के यूनिफार्म में, दिखते हैं बच्चे एक समान। इसी तरह इस कोरोना ने भी, दिया है सबको एक सा मान।। न भेद भाव अमीर गरीब का, न भेद रखा है ऊँच नीच का। न ज्यादा खाओ न भूखे रहो, मार्ग बताया है उसने बीच का।। कहीं अमीर के घर शादी में, फिंकता था पकवानों का अम्बर। और कहीं गरीब के घर का, भूखा सोता था सारा परिवार।। प्रकृति हमारी माता है, कैसे सहन करे पक्षपात। अतः साम्यता लाने सबमें, दिया कोरोना का आघात।। रोक दिये धनपतियों के व्यापार, कि, तुम भी समझो धन की व्यथा। सीमित कर आयोजनों की शान, एक सी कर दी सबकी मनोव्यथा।। किसी गरीब की मिट्टी में, जाना थी लोंगों की शान नही। और अमीर के घर, गरीब, होता कभी मेहमान नहीं।। अब सब कुछ होगा वैसा ही, जैसा चाहे प्रकृति हमारी। देने अपने हर सुत को सुख, उसने ही यह लीला धारी। उसन...
है समय बड़ा अनमोल
कविता

है समय बड़ा अनमोल

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** आंक सके तो आंक ले बन्दे, है समय बड़ा अनमोल। तय सांसे बस तुझे मिली हैं, अब तोल तोल तू बोल।। कितना जीवन व्यर्थ गंवाया, खाने, पीने और सोने में। औ, कितनी सांसे व्यर्थ गंवाई, बतियाने और रोने में। क्या तनिक बैठकर सोचा तूने, मिला है क्यों यह मानव तन। कुछ तो होगा उद्देश्य तेरा, क्या मोह भरा बस अपनापन।। अपने बच्चों का पालन तो, कर लेते हैं मूक पशु भी। पर क्या तू उनसे श्रेष्ठ नही, यह बात समझ न पाया अब भी।। अरे! तुझको है पाना परम् तत्व को, जो बसा है तुझमें चेतन रूप। और दया भाव की ऊष्मा से सबमे पाना वही स्वरूप।। जब ऐसे होंगे भाव तेरे, तब सिद्ध हो जीवन का मोल। फिर पल पल लगें तुझे कीमती, तब तू समझे समय का मोल परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ...
कण कण में भगवान
कविता

कण कण में भगवान

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** मन को बनाकर मंदिर अपने, प्रभु की मूरत को बैठाना। सबके अंदर वास प्रभु का, बात कभी तुम भूल न जाना।। प्रभु का कोई स्थान नही है, और नही है कोई आकार। खोजो तो प्रभु नित्य मिलेंगे, लेकर भिन्न भिन्न रूप साकार।। जिस क्षण तुमको मदद चाहिए, तब बन प्रभु आते मददगार। और देकर अपना कोमल स्पर्श, वे ही लुटाते तुम पर प्यार।। कभी वे आते मातृत्व रूप में, देते हमको लाड़ दुलार। माँ की आँखों में झाँको तो, दिखेगा ईश्वर का संसार।। कभी किसी कृतज्ञ को देखो, दिखेंगे उसकी आँख में भगवन। उसके भावों को गर पढ़ लो, तब हो जायेगा प्रभु का दर्शन।। देखो एक नन्हें से बच्चे को, गौर से देखो भोलापन। जहाँ नही छल ,कपट ,द्वेष, हो ऐसे मन में प्रभु का वंदन।। देखो हरे भरे खेतो को, लहलहाती गेहूं,,चना की बाली। क्षुधा उदर की शांत हो जिससे, यही है प्रभु की...
ज्ञान वही… जो जागृत कर दे
कविता

ज्ञान वही… जो जागृत कर दे

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** क्या होगा गीता पढ़ पढ़ कर, जब मन में न आये कोई ज्ञान। कितना भी पढ़ पण्डित हो जाये, पर, व्यर्थ रहे, जब हो अभिमान।। ज्ञान बहे धरती पर ऐसे, ज्यों हो बादल की बरसात। पर, व्यर्थ बहें ये बूंदे कीमती, बंजर धरती न समझे औकात।। इसी तरह इस मानव मन पर, कभी न पड़ता कोई प्रभाव। चाहे जितने भी ग्रंथ वो पढले, पर मन से न जाये दुर्भाव।। प्रतिदिन होती धर्म सभायें, होता भगवत, गीता का ज्ञान। कितने जाते गुरुद्वारे, चर्च, कितने पढ़ते बैठ कुरान।। पर कभी समझ न पाते ये, अपने ईश्वर का धर्म आदेश। क्या यही सिखाया प्रभु ने हमें, क्या यही दिया था उनने उपदेश।। ईश्वर तत्व है भाव कल्याण का, जो सबका चाहें सदा कल्याण। तो, चाहो तुम यदि प्रभु को पाना, तब समझो फिर तुम उनका ज्ञान। तब समझो फिर तुम उनका ज्ञान। तब समझो फिर तुम उनका ज्ञान।। परिचय :-...
तेरा थाल सजाऊँगी
भजन

तेरा थाल सजाऊँगी

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** आओ साई घर पर मेरे, तेरा थाल सजाऊँगी। रुचि रुचि के पकवान बना मैं, तुझको भोग चढ़ाऊंगी।। तुम आओगे जब घर मेरे, भर जायेंगे भंडार मेरे। मेरे घर के खालीपन में, रच जायेंगे अरमान मेरे।। नही रहेगी कोई प्यास तब, और न कोई रहे रिक्तता। चारो तरफ रहे उजाला, और हो मन में एक पूर्णता। फिर रूखा सूखा बना बना मैं तुझको रोज खिलाऊंगी। कहीं लगे न कड़वा तुझको, मैं चख चख तुझे खिलाऊँगी।। तू भी समझ कर भाव मेरे, बडे प्यार से भोजन करना। और जैसे भरना मेरी झोली, वैसे ही तुम सबकी भरना।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
सार्व भौम चेतना
कविता

सार्व भौम चेतना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** निराकार परमात्म प्रभु का, होता नही है कोई आकार। भक्त के मन के भाव सदा, दे, देते हैं प्रभु को आकार।। मन में प्रतिक्षण चिंतन आता, इस सृष्टि का कौन नियामक। कौन बिगाड़े, कौन बनाये, कौन बना है इसका नायक।। क्या नायक हैं ब्रह्मा, विष्णु, या हैं नानक, ईशा, राम आओ तनिक विचारें हम, खोज उन्हें, हम करें प्रणाम।। खोजे किसी सहृदय के मन में, हमें मिलेगा प्रभु का वास। ईश रूप का तत्व समेंटे, ये जन होते आस ही पास।। कभी कला के रूप में आकर, बन जाते हैं, वे कलाकर। फिर कला निखरती कलाकार की, कला में दिखता प्रभु का आकार।। कभी लेखनी में बस कर ईश्वर, करते शब्दों का निर्माण। कवि की निर्जीव इस लेखनी में ईश तत्व से ही बसते प्राण।। अतः किसी को करें न आहत, सबमें पायें प्रभु का दर्शन। अब न भटकें हम आकारों में, निराकार का यही है चिंतन...
नफरत
कविता

नफरत

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** इतनी नफरत क्यों है मन में, क्या इसका है परिणाम जानना। एक अकेला जब बचेगा तू, तब होगी तुझे असह्य वेदना।। स्वर्ण महल में बैठ कर भी, नही मिलेगी तुझे शीतलता। व्यग्र रहेगा हर पल तब तू, जब तुझे सतायेगी नीरवता।। मेवों, मिष्ठानों, पकवानों से, कभी न मिटती क्षुधा उदर की। मिटती क्षुधा सदा अन्न से, और तृप्ति भी मिलती मन की।। नफरत तो है जहर इक ऐसा, जिससे रिश्तों में बढ़ जाए दूरी। और अतृप्ति के आ जाने से, कभी न हों इच्छायें पूरी।। अतः मिटाये अब हम नफरत, और सब में बांटे अपना प्यार। नफरत से बढ़ती है नफरत, और प्यार से बढ़ता प्यार।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
आईना
कविता

आईना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** सबने मुझे दिखाया आईना, और, खुद न देखा उनने आईना। पर, रूप मेरा निखार दिया, दिखा, दिखा कर सबने आईना।। जब मन में होता कोई चोर, तब न भाता तनिक आईना। पर, जब मन हो जाता निर्मल, तब मन ही अपना होता आईना।। सब कुछ भरा है मन के अंदर, नित होता भले बुरे का सामना। पर अगर मांज ले मन अपना, तब, खिल जाए मन का आईना।। देखो काँच का टुकड़ा दर्पण, हमको सिखलाता यह भावना। यह चूर-चूर हो जाये फिर भी रूप दिखाता हमें आईना।। आओ इससे हम यह सीखें अपनी पीड़ा को पी लेना। और, औरों को देने खुशियाँ, निर्मल कर लें मन का आइना।। विशेष :- आईना टूट कर बिखर जाता है पर अक्स दिखाना नही छोड़ता जो इसका गुण है। इसी तरह मनुष्य को चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने गुणों को नही छोड़े। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध...
काहे का अभिमान रे मानव
कविता

काहे का अभिमान रे मानव

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** काहे का अभिमान रे मानव, काहे का अभिमान। जल्दी ही है होने वाला इस माया का अवसान, रे मानव, इस माया का अवसान।। क्या अभिमान करे है तू, इस तन, मन और यौवन का। पर तुझको कैसे ज्ञान नही, नश्वरता मय इस जीवन का।। कितने आये राजा महाराजा, कितने आये साधू सन्त। क्या कभी बचा वे पाये खुद को क्या नही हुआ है उनका अंत।। या दौलत की बात करे तू यह भी तो है कितनी चंचल। कितनी भी अकूत सम्पदा, पर कभी रहे न स्थिर, अचल।। केवल तेरे कर्म हैं सच्चे, और सभी के प्रति अपनापन। इससे ही तू करले प्रेम, यही है तेरा जीवन धन।। अतः बचा ले इनको तू, और इन्हीं का रख तू ध्यान। और अपने तन और अपने धन का, कभी न करना तू अभिमान।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिक...
सुंदर मन है असली सुंदरता
कविता

सुंदर मन है असली सुंदरता

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** नही सौंदर्य की कोई परिभाषा तरतीब रहे या बेतरतीब। ये नजरिया होता है आँखों का कोई दूर रहे या कोई रहे करीब।। तन की सुंदरता से ज्यादा प्यारी है मन की सुंदरता। जब कोई मन से प्यार करे तब नही दीखती है कुरूपता।। ये निर्भर है भावों पर, कि, भाव हमारे हैं कैसे वही छबि हो मन में अंकित हैं, हमने भाव बनाये जैसे।। दिव्य गुणों के आगे कभी भी, ठहर न पाये तन का रूप। चाहे सँवारे या न सँवारे, फर्क न कोई पड़े अनूप।। माना, कि इस रूप की ज्योति सब के मन को भाती है। पर, जो होती सच्ची सन्दरता बिन सँवरे, भी लुभाती है।। अतः न होना चाहिये मान रूप रंग का इस जीवन में। जीवन की खुशबू बिखरे भाव से इस बात को समझें अब मन में।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ ...
अपेक्षा और उपेक्षा
कविता

अपेक्षा और उपेक्षा

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** जब मन में न हों अपेक्षाएं, तब दर्द नहीं देती उपेक्षाएं। दर्द को समेटे अपनी झोली में, ये मन सदा यूँ ही मुस्कुराये।। खुशियों को जब हम ढूंढते है, किसी और की निगाह से। और जब मिलते हैं वहाँ कांटे, फिर भटक जाते हैं हम राह से।। आ जाती है मन में एक हुक, कि, ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ। अरे ये जमाने का ही चलन है, क्यों न समझी अब तक बात।। कभी जमाना साथ चले न, जब तक आप चलें अकेले। पर जिनको है लक्ष्य को पाना, चलें अकेले वे अलबेले।। और जब मिल जाती उनको मंजिल, सब आ जाते हैं देने साथ। और दिखाते हैं अपनापन, थाम के अपने हाँथो में हाँथ।। अतः अपेक्षा और उपेक्षा की, हमको हो परवाह नही। हम सदा चलें अकेले ही, बस चलें हम राह सही।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...