Wednesday, November 27राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: मनोरमा पंत

पापा
लघुकथा

पापा

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "पापा ! आपको हो क्या गया है? देखिये, शर्ट आधी पेन्ट के अन्दर है, आधी बाहर। और बालों में कंघी क्यों नहीं की?" एक क्षण मुझे लगा बेटे तुषार के स्थान पर मैं खड़ा हूँ और मेरे स्थान पर मेरे पापा। मैं अपने पापा को अगाह कर रहा हूँ कि शर्ट ठीक ढंग से खोसी नहीं गई है। मैं सोच में पड़ गया कि कैसे अनजाने में धीरे-धीरे पापा बनता जा रहा हूँ। लोगों को प्रभावित करने वाली बोली धीमी पड़ गई।पापा के समान टोका-टोकी की आदत बदल गई। ढेरों कपड़े अभी भी हैं पर चार कपड़ों से ही काम चला रहा हूँ। पुनः अपनी सोच से बाहर आकर अपनी शर्ट पूरी तरह पेन्ट में डाल, बालों में कंघी करके सब्जी का थैला कंधे पर डाल पापा के समान धीरे-धीरे चलता हुआ बाहर निकल गया। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी :...
प्यासी धरती
कविता

प्यासी धरती

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** क्यों कर रहे हो शोर कि घरती प्यासी है, पृथ्वी दिवस तो मनाते हो धरती के गुण गाते हो कविताएँ रचते हो गीत गाते हो, बस करो यह ढोंग धरती प्यासी ही नहीं मरणासन्न है असहाय है मूर्ख मानव ! जान कर भी अनजान है क्यों बस्ती दर बस्ती बसा रहा हैं, खेत खलियान मिटा रहा है, आम पीपल रो रहे हैं यूकलिप्टस पानी लील रहे हैं हो रहा आयात दलहनो का शोर मचा है नकदी फसलों का बहती नदियाँ सूख रही हैं, ताल तलैये खो चुके हैं नदियों को क्यों बांध रहे हो उनका कलेजा छीज रहे हो अब भी पूछ रहे हो धरती है क्यों प्यासी ? जाओ, जंगलों को ढूँढो डूबे गांवो को ढूँढो ढूँढो कीट पंतगो को ढूँढो खोये हुये फूलों को धरती तृप्त हो जावेगी प्यास उसकी बुझ जावेगी परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्य...
घर वापसी
लघुकथा

घर वापसी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "रमाकांत जी ! यहाँ से जाने के बाद हमें भूल तो नहीं जाओगे"? अरे ! कैसी बात करते हैं आप? बीच बीच में आप सब से मिलने आता रहूँगा। आज पूरे पाँच वर्षों बाद रमाकांत जी का पोता उन्हें लेने आया है, एक-एक दिन गिन रहे थे आखिर वह दिन आ ही गया। संगी-साथी छेड़ते रहते थे "अरे यार ! स्वीकार कर लो वृद्धाश्रम को, यही हम लोगों का घर है।" पर वे कहते रहे- न वह आवेगा जरूर। मृदुभाषी रमाकांत जी ने सबको बतलाया था कि बहू बेटा सड़क दुर्घटना में मारे गये, पोता नवोदय विद्यालय के होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है। उसको मैंने समझाया था- "कि तू पढाई पूरी कर, कुछ बन तब तक मैं वृद्धाश्रम में रह लूँगा।" आज वह एक अच्छी नौकरी कर रहा है, उसने मुझसे वायदा किया था कि नौकरी लगते ही वह मुझे लेने आ जाऐगा, और वह आ गया" कहते कहते खुशी से रमाकांत जी का गला रूद्...
नव नवल नूतन
कविता

नव नवल नूतन

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** कल रात से ही, ज़मी से लेकर, आसमाँ तक था, ठंड का पहरा, दसों दिशाओं तक उसने फैला रखा था कोहरा ही कोहरा, जम चुकी थो नवजात ओस, कहीं नहीं था कोई भी शोर, सनसनाती तीर सी हवा चल रही ठंड के पँखों से दिखला रही जोश, सूरज खो चुका गर्म एहसास, नहीं मानता धरा का ऐहसान, पर जरा ठहरो! गौर से देखो नर्म-गर्म हथेलियाँ फैलाकर, भविष्य के गर्भ से पैदा हो रहे नव वर्ष शिशु को थाम रहा सूरज परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
राष्ट्रीय पशु बनाम कुत्ता शालाएँ
व्यंग्य

राष्ट्रीय पशु बनाम कुत्ता शालाएँ

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** आज कुत्तों की सभा चल रही थी, जिसमें सभी नस्ल के, सभी उम्र के कुुत्ते शामिल थे। एक वयोवृद्ध कुत्ता सभा को संबोधित कर रहा था, बाकी सभी श्रोता की मुद्रा में थे। बीच सभा में एक नेतानुमा, गली का नौजवान कुत्ता उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- क्या आप लोगों को मालूम है, गाय को "राष्ट्रीय पशु " घोषित करने की तैयारी चल रही है? वयोवृद्ध कुत्ते ने कहा- हमें इससे क्या? बनने दो। नेतानुमा गली का कुत्ता बोला- क्या हमारी कोई औकात नहीं? हमें क्यों नहीं राष्ट्रीय पशु बनातें? अब तों सभा में शोर मच गया, सभी गली के कुत्ते के पक्ष में बोलने लगे। वयोवृद्ध कुत्ते ने कहा- मूर्खो! चुप हो जाओं। गाय को पूरा भारत "माता "कहता है। उसे पूजा जाता है। दूध के साथ ही उसका मूत्र और गोबर दिव्य माना जाता है, और हम सब जगह गंदगी फैलाते रहते हैं। हमारी और गायों की...
सरहद पर दीवाली
लघुकथा

सरहद पर दीवाली

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ********************                                       आज प्रकाशपर्व दीपावली है। सरहद पर तैनात भारतीय सैनिक दीपावली पूरे उत्साह से मना रहे हैं। उनका विश्वास था कि यह सरहद ही उनकी आन बान और शान है, जिसकी रक्षा करना ही उनका सबसे बड़ा धर्म है। आज वे सरहद पर मोमबत्ती जलाकर उजास की आराधना कर रहे हैं। सरहद को जगमग देख पाकिस्तान के सीमाप्रहरी भी निकट आ गये। एक पाकिस्तानी सैनिक ने कहा "दीपावली की मुबारकबाद !" लीजिए मीठा मुँह करिये "कहते हुऐ भारतीय सैनिकों ने मिठाई उनकी ओर बढा दी।" आज दोनों ओर प्रेम और सौहार्द्र का वातावरण था। सरहद के दोनों ओर के सैनिकों के मन में भाईचारे की पवित्र जोत प्रज्ज्वलित हो रही थी, और वे सोच रहे थे काश! यह सरहद नहीं होती तो अच्छा होता। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्या...
दादा-दादी का गाँव
लघुकथा

दादा-दादी का गाँव

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ********************                                         चिड़ा-चिड़ी, उड़ते-उड़ते आखिर भीरू गाँव पहुँच ही गये। अब उनकी थकान काफूर हो चुकी थी, गाँव की सीमा पर एक आम का पेड़ था, जिस पर बहुत से पक्षी बैठे थे। जब वे वहाँ गये तो परदेसी जानकर वहाँ की चिड़ियों ने उनका स्वागत किया। अपना परिचय देते हुए, चिड़ा बोला- "मेरे दादा-दादी का गाँव है यह। मरने के पहले उन्होंने कहा था, कि हमारे गाँव कभी भी जरूर जाना। नदी में नहाकर किनारे के पेड़ों पर खा पीकर विश्राम कर लेना।" "कहाँ हैं नदी?" वहाँ रहने वाले चिड़े ने दुःखी स्वर में कहा "ये जगह-जगह गड्डे देख रहे हो न। यही नदी थी।" अतिथि चिड़ियाँ ने पूछा- "और पेड़?" नदी नहीं तो पेड़ कहाँ? अच्छा खासा छोटा सा जंगल था। शहर स विकास नामक जानवर आया और उसने सब तबाह कर दिया। बड़ी दूर से आए चिड़ा-चिड़ी जो वहीं बसने का सपना लेकर...
उखड़ा बरगद
लघुकथा

उखड़ा बरगद

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ********************                                           सवेरे-सवेरे शोर सुनकर मैं घर के बाहर आया, देखा लोगों का एक हूजुम घर के आगे खड़ा था। मुझे देखते ही एक नेतानुमा आदमी आगे बढ़कर कर्कश स्वर में चिल्लाया- ’’आप गाँव में नये-नये आए हो, आप की हिम्मत कैसे हुई, बरगद का पेड़ लगाने की? किससे पूछा आपने?’ मैं हकबका गया। सूझ नहीं पड़ रहा था कि मैं क्या जबाव दूँ। जुम्मा-जुम्मा गाँव में आये पन्द्रह दिन ही हुए थे, और यह बिन बुलाये मुसीबत। जीप में घूमने निकला था, रास्तें में जड़ से उखड़ा छोटा सा बरगद का पेड़ मिला, सोचा, गाँव की खाली पड़ी जमीन पर लगा दूँगा। ऐसा ही किया, पर सिर पर ऐसी मुसीबत आऐगी, सोचा न था। सोच में डूबा ही था कि फिर से नेतानुमा आदमी गुर्राया "बड़े होकर बरगद पूरी जमीन घेर लेगा, रास्ता बंद हो जावेगा, समझे।’’ मैं गिड़गिड़ा कर माफी माँगने...
महात्मा गाँधी तथा प्रकृति
आलेख

महात्मा गाँधी तथा प्रकृति

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ********************                                            एक ऐसे देश में जहाँ प्राचीन काल से ही जल जमीन और जंगल को पूजा जाता रहा, उसी देश में इन तीनों का बर्बरतापूर्वक विनाश ने गाँधीजी को अगाध दुःख में डाल दिया था। गाँधी जी के लिये मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं था। प्रकृति के प्रति उनकी संवेदनशीलता बहुत विस्मयकारी थी। प्रकृति के अंधाधुंध दुरूपयोग के प्रति वे बहुत चिंतित रहते थे, उनकी चिंता के मूल में हमेशा गाँव के गरीब किसान और देश के साधारण जन रहते थे। उनका कहना था - "हम प्रकृति के बलिदानों का प्रयोग तो कर सकते हैं, किंतु उन्हें मारने का अधिकार हमें नहीं है" गाँधीजी का यह भी कहना था कि अहिंसा तथा संवेदना न केवल जीवों के प्रति बल्कि अन्य जैविक पदार्थों के प्रति भी होना चाहिए। इन पदार्थों का अति दोहन जो लालच और लाभ के लिए क...
इम्तिहान
कविता

इम्तिहान

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** नारी जन्मते ही देने लगती है इम्तिहान, जिसे देने में उसे लग जाती पूरी जिन्दगी, जिसमें वह कभी भी पास नहीं होती, उसकी कॉपी भरी रहती है लाल-लाल निशानों से, जो उसके जिस्म को, दिल को करते रहते हैं लहुलुहान पिता, पति, फिर बेटा और समाज बारी-बारी से बनते रहते परीक्षक, कड़े पहरे में लेते रहते हैं इम्तिहान परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
यह भी देश भक्ति
लघुकथा

यह भी देश भक्ति

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "मामीजी बुरा नहीं मानना, ये लीजिए।" "क्या है? इसमें मीना।" "मामीजी ! ये आप की लाई हुई पोलिथिन की थैलियाँ हैं। हमारे शिमला में पोलिथिन बैन है। आप शिमला के बाजारमें घूमने गये थे न ! कहीं भी आपको पोलिथिन की थैली में सामान नहीं मिला होगा। हँसकर- लीजिए "तेरा तुझको अर्पण "। वापिस अपने शहर भोपाल ले जाए।" "पर बाजार में कहीं-कहीं पोलिथिन उड़ती दिखी।" वे भी सैलनियों द्वारा लाई गई हैं। हम शिमला वासी अपने सुंदर शहर की सुंदरता और पर्यावरण रक्षा के लिये बड़े सजग हैं। बुरा नहीं मानना, पोलिथिन थैलियाँ वापस ले जाए।" शर्मिदगी से मेरा सिर झुक गया। भान्जी के यहाँ शादी में गये थे हम। सारे उपहार पोलिथिन थैलियों में ले गये थे, साज-सज्जा के साथ।भोपाल में तो, सब्जी तक अमानक पोलिथिन थैलियों में मिलती है। सुविधाभोगी मैं भी कब कपड़े का थैला ले...
परिंदों की व्यथा
कविता

परिंदों की व्यथा

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** इंसानों ने छीन ली बस्ती हमारी विरोध की नहीं हस्ती हमारी चुन-चुन काटे हमारे आशियाने आग के हवाले हमारे आशियाने नहीं सूझता रास्ता कहाँ जाऐं उड़ते-उड़ते अब कहाँ ठहर जाऐं धीमें-धीमें सिमट रहे हैं रास्ते, धीमे-धीमे घट रहे चाहने वाले जलाशय हैं, पर पानी नहीं मिलता, छते तो हैं बहुत सकोरा नहीं मिलता, नमभूमियाँ तो है, नमी ही नहीं मिलती घोंसलों के बदले अट्टालिकाऐं मिलती थक कर बैठ गये, फैली है विरानी हम बिन यह दुनियाँ है, बेमानी हमसे ही सतरंगी है, पूरासंसार हमारे मीठे रव बिन, सब निस्सार परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमा...
प्रेम
कविता

प्रेम

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** प्रेम की न कोई भाषा है न कोई होता संवाद, यह है केवल अनुपम, सुखद एहसास, न होता कोई अनुबंधन न होता कोई इकरार , यह तो है बस अनुभूतियों का पावन ज्वार, मौन का है यह अद्भुत संसार, वात्सल्य का है अनुपम संचार, प्रेम जीवन सागर में लहरों सा उमड़ा है, प्रकृति के अणु अणु में रचा बसा है सब में अन्तर्हित रह, यह भाव चरम है परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
सवेरे-सवेरे
लघुकथा

सवेरे-सवेरे

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** सवेरे-सवेरे पूना से किसी नारायण जी का फोन आया, गिड़गिड़ाते हुऐ बोले- बेटा! वाट्सएप पर किसी ने आपका संदेश फारवर्ड किया है कि आप कोरोना मरीजों को खाना भिजवा रहे हैं, मेरे भाई इन्दौर के 'महक अस्पताल में भरती हैं, अकेले भर्ती हैं, क्या आप उन्हें खाना भिजवा सकते हैं ? मैंने उन्हें आश्वस्त किया तो वे रोने लगे। मैंने अपने कुछ साथियों के साथ ऐसे लोगों के लिये भोजन बनवाना शुरू किया जो किसी ऐसे अस्पताल में भर्ती हैं, जहाँ चिकित्सा तो हो रही है पर भोजन नहीं मिल रहा। अधिकतर ऐसे मरीज जो अकेले रहते हैं, या पढने या नौकरी के सिलसिले में इन्दौर में रहते हैं। झटपट पूनावाले के बुजुर्ग भाई की सब जिम्मेदारी ले ली। आज वे अस्पताल से डिस्चार्ज हो गये और अपने घर चले गये। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल नि...
जिन्दगी  की धूप
कविता

जिन्दगी की धूप

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** जिन्दगी में धूप कभी आई नहीं, जिंदगी हमेशा कुहरे से ढकी रही कितना चाहा, कोहरा चीर निकल जाऊँ ऊपर जा सूरज को ही पकड़ लाऊँ, पर चाहने भर से क्या होता है, चाहने भर से क्या सब मिलता है? तेरी यादें परछाई बन चलती है कोहरे के कारण छिपी रहती हैं, कुछ पत्थर बन अडिग रही, कुछ नश्तर बन दिल गड़ती रही न जाने कब ये कुहरा छूटेगा, धूप का एक टुकड़ा मुझे मिलेगा परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
ऋतुराज बसंत में
कविता

ऋतुराज बसंत में

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** बसंत में शब्द भी रंग जाते हैं, बाँसती रंग में, दिन चढते चढते आ जाते तरंग में महक उठते हैं, मौलसिरी की गंध से, साँसों में बस जाते हैंं छंदों के अनुराग से एक एक अक्षर बदल जाता मधुमास में, टेसू के फूल बन बिखर जाते पी के संदेश में मन के भाव उमड़ जाते, कोयल की तान में, छलक जाते आँसू बन विहरणी के दर्द में, कानों में रस घोलते संवेगो के आवेग से, बिखर बिखर पत्तो से रचते स्वर्णिम विहान रह रह मचल जाते, करते कविता का अभिसार परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
नवाकुँरित पौधें की चिंता
कविता

नवाकुँरित पौधें की चिंता

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** नवसृजन की पीड़ा सहकर, धरा ने मुझे जन्म दिया, इस शहरी जीवन के आँगन में लाकर मुझे खड़ा किया, डरता हूँ यहाँ की निर्बाध हवाओ से, लपलपाते गर्म जलाते झोको से, नहीं हैं यहाँ कोई बरगद झाँव न कोई खग कलरव न कोई, प्यारा गाँव पता नहीं बढ भी पाऊँगा, या शैशव वय में ही मारा जाऊँगा यदि गाँव की माटी में ही उगता स्वछंद प्रेमपगी हवा में पनप विशाल पेड़ बन जाता परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
प्रायश्चित
लघुकथा

प्रायश्चित

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** दीदी! आपकी तबियत कैसी है? "सवेरे सवेरे मेरी देवरानी ने मेरेपैर छूते हुऐ पूछा।" मैंने अपने पैर सिकोड़ लिये। आज के समय में पैर छूना। उम्र में दोवर्ष ही तो बड़ीहूँ। जब पैर छूती, तो लगता बुजुर्ग हूँ। खैर बेमन से जवाब दिया ठीक ही हूँ। उसने मेरे माथे को हाथ लगाया और चिंतित स्वर में बोली- आपको तेज बुखार है, हिलना भी नही । पूरा दिन वह मेरे आसपास बनी रही और उसके स्वर मेरे कानो में पड़ते रहे- दीदी! दूध पीलो, दीदी! जूस पी लो, दीदी! बच्चो, की चिंता न करो। मैंने उनकी पंसद का खाना खिला दिया। पूरे सात दिन से वह मेरी सेवा में जुटी है और मैं पश्चाताप की आग में दहक रही हूँ। सोच रही हूँ लाकडाऊन में बिना मेड के मेरा और बच्चो का क्या होता। साधारण रंगरूप और कम पढी-लिखी होने से मैं उसे पंसद नही करती थी। लाक डाउन ने उसके आंतरिक सौन्दर्य के दर्शन करा दिये।...
पीढी का अंतर
लघुकथा

पीढी का अंतर

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** बेटी- माँ ! आज मैं ताऊजी को बुला रही हूँ, शाम को बैठकर सारा झगड़ा निपटा लेना। माँ- तुम अभी छोटी हो, इन बातों में दखल न ही दो तो अच्छा। बेटी- नहीं माँ ! अब बेटियाँ भी पढलिख कर इस लायक हो गई हैं कि अपनी राय दे। मैं एक बात कह रही हूँ आपसी, मारपीट से भी बुरी होती है शब्दों की लड़ाई, जो अंतहीन होती है, और वैमनस्य रखने वाले दोनों पक्षों की गरिमा को ठेस पहुँचाती है। दुर्भावना में कहे शब्द मनुष्य का कलेजा चीर देते हैं। बेटा- हाँ माँ दीदी ठीक कह रही है। जिनके लिये आप मकान के स्वामित्व की लड़ाई लड़ रही हैं, उसमें रहेगा कौन? हम दोनों ही पढने अमेरिका जा रहे हैं, पता नही बाद में वहीं बस जाऐ। बेटी- माँ, हम दोनों चाहते हैं कि आप और चाची मन को मलीन करने वाली शब्दों की लड़ाई बंद कर दे। हमें नहीं चाहिये ऐसा घर जो परिवार में दरार पैदा करें। और एक बात ब...
जन-जन के राम
कविता

जन-जन के राम

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** इतना आसान नहीं था, राम का जन-जन के आराध्य राम बनना इसके पीछे छिपा है राम का त्याग, और बलिदान, एक राज पुरूष का साधारण जन में बदलना, संन्यासी, वनवासी बन उत्कल वस्त्र धारण करना, सूर्य के समान देदीप्यमान होकर भी दीपक बन जाना, तिरस्कृत अहिल्या का कर उद्धार उसका सम्मान लौटाया, बाली से भिड़ सुग्रीव का खोया , विश्वास लौटाया, वानर को नर बनाकर, लंका को जीत लिया जिसने रावण सहित निशाचर हीन धरा की जिसने, ऐसे राम बने जन-जन के राम ऐसे राम को है मेरा प्रणाम परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
गरीब की बेटी
लघुकथा

गरीब की बेटी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** मालूम है!", रामदीन कास्टेबल को एस. पी साहब ने पाँच सौ रुपए का नगद ईनाम दिया"। क्यों भला? रातों रात नेताजी की भैंस ढ़ूँढ दी।" "ये तो भैय्या सच में बड़ी बात हुई। पर उसने उनकी भैंस पहचानी कैसे? सभी तो एक समान दिखती हैं, कोई निशान विशान था क्या? "चुप कर,! खबर, बताकर गलती की, कोई सुन लेगा तो नौकरी गई पक्की" ननकू बड़ा हैरान परेशान है, कभी किसी साहब का कुत्ते खो गया, तो किसी की गाय, सब ढूँढ़ निकालते हैं पुलिस वाले, गरीब की बेटी तो जानवरों से भी बदतर है, तभी तो, मेरी बिटिया गायब हो गई, पर रिपोर्ट भी लिखने को तैयार नहीं हुई पुलिस....। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : यह...
हे राम!
कविता

हे राम!

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** हे राम! मर्यादा सिखाने क्यों अवतार लिया इस धरा पर? क्यों महामानव बने तुम, क्यों हर समय त्याग मूर्ति बने रहे ? क्यों विमाता की अनुचित माँग का नहीं किया प्रतिकार इक्ष्वाकु वंश की मर्यादा का, निरन्तर करते रहे निर्वाह अहिल्या मारिच, गरूड़ सबका उद्धार करते रहे, असुरो को मार मुनियों को जीवन दान देते रहे केवल लोक निंदा के कारण किया अपनी प्राण प्रिया का त्याग एक अँगुली उठने पर, सीता ने किया अग्नि दाह यह सब करते सहते तुम बन गये स्वयं पत्थर, जिसमें था एक रक्तरंजित मन तुम तो साधारण जन की तरह रो भी नहीं सकते थे, खुद की कोई इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते थे हे राम! तभी तो बन सके तुम मर्यादा पुरूषोत्तम। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवी...
प्रत्याशी
लघुकथा

प्रत्याशी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** नामांकन का दिन पास आता जा रहा था, पर अभी तक कुकर बस्ती में यही तय नही था कि चुनाव कौन लड़ेगा। बहुत से युवा चुनाव लड़ना चाहते थे, पर एक नाम तय नहीं हो पा रहा था। तभी बस्ती के वयोवृद्ध कूकर श्रीमणि की नजर नेता जी के अलसेशियन कूकर पर पड़ी, एकदम तदुरूस्त, चमकीले बालों वाला, मस्तानी चाल से अपने नौकर के साथ टहलते दिखा। बस, उसके दिमाग में कुछ कौंधा और उसने चिल्ला कर कुत्तो को पुकारा - 'इधर आओ, भाई प्रत्याशी मिल गया। सबने बड़ी उत्सुकता से पूछा - कौन...? श्रीमणि ने नेता जी के कुत्ते की ओर इशारा किया। सबने हैरान परेशान होकर कहा - 'अरे ये बँगले के अंदर रहने वाला हमारा नेता कैसे बन सकता है? श्रीमणि नेकहा - 'रोटी के एक टुकड़े के लिये दिनभर भटकने वालो, तुम लोगों की क्या औकात है, जो तुम लोग चुनाव लड़ोगे। बस फैसला हो गया। रही बंद बँगले से चुनाव...
चाय
लघुकथा

चाय

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** कलेक्टर बेटा आफिस से लौटा तो देखा, माँ जमीन पर पालथी मारे, इतमीनान से प्लेट में चाय डालकर सुड़क सुड़क की आवाज के साथ पी रही थी। आसपास नौकरों का मजमा जमा है और सबके हाथ में चाय की प्याली है। माँ का चेहरा खुशी से दमक रहा है। गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया, उसे देख सारे नौकर नौ दो ग्यारह हो गये। माँ से पूछा- "जमीन पर क्यों बैठी हो जवाब मिला- नहीं आसन पर बैठे हैं। बेटे ने फिर प्रश्न उछाला और ये प्लेट में चाय क्यों डालकर पीती हो माँ बोली जिंदगी गुजर गई बस्सी (चीनी की प्लेट) में ही चाय डालकर पी, कोप (कप) में बहुत गरम रहती है।और यह सुड़क-सुड़क की आवाज ? माँ खुशी से किलकती हुई बोली-" तू भी एक दिन बस्सी में चाय डालकर पी, सुड़क-सुड़क की आवाज से ही चाय पीने की तृप्ति होती है। बचपन में तू भी ऐसे ही चाय पीता था। भूल गया?" बड़ी मनुहार के ब...
आत्महत्या
कविता

आत्महत्या

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** कभी हम भी मुस्कराया करते थे, दोनों हाथों से खुशियाँ लुटाते थे, चेहरे पर नूर, होंठों पर मुस्कान सजती थी, चाँद सितारों को तोड़ने की शर्तें लगती थी फिर मन में क्यों मचा हाहाकार जीवन काअंत क्यों लेरहाआकार, कह न सका अन्तस की पीड़ा को, सह न सका दुःख के आवेगों को सागर. मन के उठे हुए उद्वेगों को, सह न सका पत्थरीलें चेहरों को, फिर क्यों न मन में हो हाहाकार, इसीलिए जीवन का अंत ले रहा आकार कहाँ लुप्त हुआ आशा का प्रपात क्यों हुआ मेरे साथ पक्षपात, क्यों नही लिपट सकी प्यार की किरण क्यों लगा फौलादी इरादों को ग्रहण। तभी मन में मच रहा हाहाकार आ रहा जीवन के अंत का विचार दूर गगन में उगता सूरज, दे गया नया विश्वास, इश्क करना है तो देश से कर, मरना है तो, देश के लिए मर जीवन है अनमोल, इससे प्यार कर, अन्तस से निःसृत नव सजृन चाप सुन, मन में अब नह...