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बेटी की चिठ्ठी
कविता

बेटी की चिठ्ठी

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** कितना तड़पी थी तू माँ, जब तूने मूझे जन्म दिया। कोई मर्द न सह पाये दर्द इतना तूने सहन किया। आई जब इस दुनिया मे माँ तूने मुझको थामा था। भर कर अपनी बांहो में प्यार मुझ पर वारा था। सीने मुझे लगा के अपने, अपना दूध पिलाया था। चुम के मुझको झूला बांहो में, चैन से मुझे सुलाया था। पर ये दुनिया समझ न पाई, तेरे मेरे रिश्ते को। हुई क्या गलती तुझसे मां, जो जना तूने एक बेटी को। छीन को तुझसे मुझको मां, जब कूड़े में मुझे फेंक दिया। वो निर्दयी ओर कोई नही, मेरा अपना पिता बना। रो-रो जब मैंने आंखे खोली, चींटिया मुझे खा रही। कोई न था मुझे उठाने वाला, चीखें दबती जा रही। भुख ओर दर्द ने मुझे कुछ देर में, गहरी नींद में सुला दिया। सुबह जो आई में इस दुनिया मे, शाम तक फिर मुझे विदा किया। जानती हूं मां तू आज भी मुझको, याद करके रोती...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी एक सफर, एक सफ़र हैं जिंदगी। कभी इधर, कभी उधर, कँहा जा रही हैं जिंदगी। खुशी ग़म का हेर फ़ेर है, हस्ती रोती है जिंदगी। कभी नोट के पीछे, तो कभी सांसो के लिए भागती है जिंदगी। कभी निडर सी हो जाती, तो कभी बहुत डराती है ये जिंदगी। कभी एक पल आसमान है दिखती, तो कभी जमीन से नाता करवाती है ये जिंदगी। बेगानो को अपना करती, अपनो को बेगाना कर जाती है ये जिंदगी। स्वर्ग के दर्शन है करवाती तो कभी दोजख़ बन जाती है जिंदगी। जिंदगी के रूप कई, कई रंगों की है ये जिंदगी। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
माँ की सीख
कविता

माँ की सीख

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** विदा होती बेटी को प्यार से। माँ ने ये बात सिखाई थी। सुखमय जीवन बेटी का हो। एक बात की गांठ बंध बाइ थी। बेटी अपने घर मे सदा तू। बड़ो का सम्मान है करना। छोटो पर सदा प्रेम है रखना। अपने घर का मान है रखना। थोड़ा कुछ तू सह जाना। पर दिल मे कोई बात न लेना। उस घर के राज है तेरे। तेरे अपने तक ही रखना। सुख दुख का जो बना है साथी। विश्वास का मान सदा तू रखना। इस घर के संस्कार जो तेरे। उस घर के आदर्श बना रखना। मां बाप की लाडो बिटिया। अपना सदा ध्यान तू रखना।। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
समय
कविता

समय

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** पर लग गए हो जैसे, हाथ से फिसली रेत हो जैसे। बचपन से जवानी आ गई, बीत गया कहा समय ये कैसे। कल तक आंगन चिड़िया थी में, बाबुल संग डोला करती थी। कब बड़ी हो कर पराई हो गई, घर से मेरी डोली उठ गई। आम, इमली, फूलो की डाली, तुलसी पौधा रोपी थी। बड़े हो गए ये कब जाने, बातें बीते कल की हो गई। घड़ी की टिक-टिक रोज है कहती, मेरे साथ बढ़ते चलो। में तो यही रहूँगी कल भी, जीवन अपना बिताये चलो। बचपन की वो मेरी सखिया, दर्पण पर इतराती थी। बुढ़ापे में वही सखिया, सफेदी अपनी छुपाती है। समय का पहिया तेज है भागे, यादें छोड़ जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक का, हिसाब छोड़ जाता है।। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
आजादी का मान
कविता

आजादी का मान

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** संविधान मिला तुम्हे आजादी का। यारो इसे नही गवाना। मिटे कई वीर तुम्हारे लिए। बलिदान उनका नही भुलाना। वो ना होते तो तुम कैसे आज ऐसे जी पाते। गुलामी की जंजीरों के घाव तुमसे ना सहे जाते। रक्त से लतपत हुई इस धरा ने अपने बेटों का लहू भी पी लिया। आजादी की तरसती भारत माँ ने जाने क्या क्या सह लिया। गर्व करो उन वीरो पर जिन्होंने दे दी तुम्हें आजादी। धर्म जात ओर बंटबारे पर मत करो तुम बर्बादी। एक है हम एक हमारा प्यार ये स्वराष्ट्र है। झुका के शीश नमन करो देश पर मुझे नाज है। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
डॉक्टर पिता
कविता

डॉक्टर पिता

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** डॉक्टर पिता से बेटी बोली, पापा में भी संग आउंगी। आपके साथ घूम-घूम के, कोरोना को मार भगाऊंगी। माथा चूमा पिता ने तब बोले मुस्कुराकर बिटिया। बड़ी हिम्मत वाली तू है पर, नंन्ही सी तू जान है गुड़िया। प्यारी बेटी हाथ पकड़ कर, पूछती एक सवाल है। कोरोना से हार पाना पापा क्यों इतना मुश्किल है। दवा है आई वेक्शन भी आई आए कई इलाज भी है फिर कोरोना ने फेल कर ऐसे, अपने पैर पसारे है। पापा ने फिर गोद बिठा कर बेटी को समझाया था। लोगो की लापरवाही से कोरोना लोट के आया था। एक बात और जान लो बेटा जो ओर बीमारी का कारक है। लोगो मे कम हो गई रोग प्रतिकारक क्षमता है। खान पाँन ओर व्यस्तता ने ऐसा नाता जोडा है। योगा, कसरत ओर स्वच्छ भोजन से बिल्कुल नाता तोडा है। यही वजह है कम उम्र में लोग बीमारी के शिकायती है। थकान और अनिंद्रा से अब इनकी दोस्ती है। राज की सारी बा...