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Tag: मंजुला भूतड़ा

मोक्षदायिनी गंगा
कविता

मोक्षदायिनी गंगा

मंजुला भूतड़ा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत की सबसे लम्बी नदी, पुण्य सलिला हिमालय पुत्री गंगा। गंगा दशमी अवतरण दिवस, सभी गंगा स्नान कर पाते यश। हिन्दुओं की सबसे पवित्र नदी, हर घर में गंगाजल पूजन-नमन, पूर्वजों का स्मरण श्राद्ध तर्पण, पिंडदान जल-अर्पण, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, जमनोत्री गंगा किनारे ये चारों धाम। हरिद्वार, बनारस, इलाहाबाद पाते गंगा सामीप्य का लाभ। शिव की जटाओं से प्रवाहित, गंगा शक्ति और भक्ति। अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी हुगली नामों से भी जानी जाती। फरक्का, टिहरी आदि बांध, अनेक नहरों का जीवन, उपजाऊ गंगा का डेल्टा, गंगा स्वयं सिंचाई का स्त्रोत। गंगा में होता अस्थि विसर्जन, न जाने कितने अवशेषों का वहन, निरन्तर कर रही सरकार प्रयत्न, प्रदूषण से बचाने का हरेक जतन। जीवनदायिनी, पापनाशिनी, मोक्षदायिनी पुण्य स्थली, भारत की भाग्...
दीप अभी तुम जलते रहना
कविता

दीप अभी तुम जलते रहना

मंजुला भूतड़ा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विश्वास के पात्र में स्नेह शेष है, मन की बाती में अपनत्व विशेष है, प्रफुल्लित होंगे सब जन-मन, निखर उठेगा अंधियारा आँगन। विचारों के झंझावात हैं, उद्वेगों के तूफान हैं, पर शीतल झोंकों के रहते, पल रहा विश्वास है। अदृश्य कालिमा को दूर भगाने, मन के आक्रोशों को हटाने, जनमानस में आस जगाने, दीप अभी तुम जलते रहना। महामारी विकराल है, कोरोना का बवाल है, अदृश्य आपदा से मुक्ति दिलाने, दीप अभी तुम जलते रहना। परिचय :-  मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्...
मजदूर की मजदूरी
कविता

मजदूर की मजदूरी

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** बिना श्रमिक हो जाते हम मजबूर, समझते हैं उस को केवल मजदूर। मेहनतकश की मेहनत से ही है, हमारे जीवन में खुशी। कोशिश करें समझें मजबूरी, करें सही आंकलन और दें उचित मजदूरी। मजदूर चाहता है दो वक्त की रोटी, तन को कपड़ा और सिर पर छत। नहीं है जिसके बिना सम्भव प्रगति, समझें हर जरूरत और रखें अच्छी दोस्ती। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्रिकाओं में आलेख, ललित निबंध, कविताएं, व्यंग्य, लघुकथाएं संस्मरण आदि प्रकाशित। लगभग १९८५ से सतत लेखन जारी है । १९९७ से इन्दौ...
किताबें सबसे अच्छी दोस्त
कविता

किताबें सबसे अच्छी दोस्त

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** कुछ होती हैं हल्की कुछ होती हैं भारी, लेकिन किताबों में होती दुनिया की हर जानकारी। कबीर के दोहे, संतों की वाणी, राम की कहानी तुलसी की जुबानी। हर धर्म का हर अध्याय, किताबों का नहीं कोई पर्याय। है ज़िन्दगी किताब-सी, किताब-सा जिन्दगी में कोई नहीं। कुछ नया करने की खोज जुड़ाव बना रहे रोज़, क्योंकि क़िताबें होती हैं, सबसे अच्छी दोस्त। किताबें हर घर में बसती, समझें मूल्य तो लगें सस्ती, वरना चुपचाप ही रहतीं कुछ भी नहीं कहतीं। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा स...
पृथ्वी दिवस
कविता

पृथ्वी दिवस

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** लगता है बहुत खुश हैं, धरा और गगन। प्रदूषण का स्तर हुआ निम्नतम। पक्षी भी उन्मुक्त, कर रहे हैं भ्रमण। गुलों की बहार है, खिले हैं चमन। वक्त को समझें, अवसाद में न उलझें। धरा दिवस पर कुछ लिखें, जो कहे आपका मन। सभी का अभिनन्दन, सभी रहें स्वस्थ यही कह रहा, मेरा अन्तर्मन। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्रिकाओं में आलेख, ललित निबंध, कविताएं, व्यंग्य, लघुकथाएं संस्मरण आदि प्रकाशित। लगभग १९८५ से सतत लेखन जारी है । १९९७ से इन्दौर में निवास वर्तमान में ल...
मनोव्यथा
कविता

मनोव्यथा

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** न तुम घर से निकलना न हम, दूर से देखकर ही मुस्कुराएंगे तुम-हम। बहुत याद आएगा यह मंजर भी, अजीब से रिश्ते कर दिए हालात ने। फुरसत में तो हैं मानो सब, पर मिलने का नहीं कोई सबब। कुदरत का कहर झेल रहा इन्सान, जोखिम उठाकर चिकित्सक निभाते अपना ईमान। कुछ सिरफिरों को नहीं दिखता इनमें भगवान, सफाईकर्मी, पुलिस वाले फिक्र में हैं, बचाने निकले हैं हर जान। कोरोना का भय है,सब सुरक्षित घर में, नमन है उन कर्मवीरों को, जो लगे हैं बीमारी के दमन में। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों त...
बढ़ती उम्र में दोस्त
कविता

बढ़ती उम्र में दोस्त

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** थोड़ी थोड़ी मस्तियां, थोड़ा मान-गुमान। आओ मिलकर रखें, सब ही सबका ध्यान। बढ़ती उम्र कहती है, थोड़ा सीरियस हुआ जाए। किन्तु वक्त का किसे मालूम, कुछ हास-परिहास किया जाए। जब दो हस्ती मिलती है, तो दोस्ती होती है। समुन्दर न हो तो, कश्ती किस काम की। मज़ाक न करें तो, दोस्ती किस काम की। दोस्त ही न हों तो ज़िन्दगी किस काम की। मर्ज तो सताते हैं, बढ़ती उम्र में। हर मर्ज का इलाज, नहीं है अस्पताल में। कुछ दर्द तो यूं ही चले जाते हैं, दोस्तों के साथ मुस्कुराने में। किसका साथ कहां तक होगा, कौन भला कह सकता है। मिलने के नित नए बहाने, रचते बुनते रहा करो। फ़ुरसत की सबको कमी है, आंखों में अजीब सी नमी है। शान से कहते हैं, वक्त नहीं है, यह भी सोचो, वक्त की डोर, किसी के हाथ में नहीं है। कब थम जाए, पता नहीं है। हौसले नहीं होंगे पस्त, साथ हों जब, बढ़ती उम्र में द...
दहकती हुई घाम के
कविता

दहकती हुई घाम के

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** बसन्त के कांधों पर फागुन सवार है, धूल भरी बह रही, पतझड़ बयार है। रंगीनी धरती की होली की आहट है, रंगों में परिलक्षित बिखरने की छटपटाहट है। रंगों को मिलकर यूं एकरंग होना है, हम भी तो सीखें सब भेद-भाव खोना है। नवसंवत आगमन नववर्ष शुभागमन, उष्णता का होने लगा समीर में सम्मिश्रण। नए नए कीर्तिमान रच रहा है तापमान, बरखा की आस में आसमां को ताके नयन। भुगत रहे परिणाम सब प्रकृति से खिलवाड़ के, दिन हुए असहनीय दहकती हुई घाम के। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्...
हमारे विवाहोत्सव
कविता

हमारे विवाहोत्सव

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** जीवन भर के इस उत्सव को, आओ हम समृद्ध बनाएं। दिखावे के पर्याय बने जो, ऐसे विवाह पर रोक लगाएं। बनें किसी जरूरतमंद के मददगार, नि:सहाय के लिए खोलें शिक्षा द्वार। यूं पवित्र बंधन बने यादगार, जरूरी तो नहीं है वैभव प्रचार। स्वागत में हो आत्मीयता, नहीं केवल औपचारिकता। अतिथि भी जब हों समुचित, तभी दे पाते सम्मान उचित। बड़ी बारातें, सड़क पर व्यवधान, राहगीरों का नहीं है ध्यान। बोझिल-सा यदि हो आभास, फिर कैसा उत्सव ये खास। छोड़ें अनावश्यक रूढ़ी-रिवाज, हम ही तो करेंगे बदलाव आज़। समयानुसार परिवर्तन होगा, तभी तो समाज सुधरेगा। सच, पाणिग्रहण की पवित्रता को रुढियों दिखावों में मत जकडो़। जितना हो अति आवश्यक, वही करो, नई राह पकड़ो। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म ...
समझो बसन्त है
कविता

समझो बसन्त है

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** फूलों-सा हंसता हो जीवन, समझो बसन्त है। सरसों खेतों में फूल उठे, आम पेड़ बौराए हों, बेलों पर खिलें नए फूल, समझो बसन्त है। सुर-सुगन्ध-सी लगे पवन, हरीतिमा के विभिन्न रंग, पतझड़ में बिखरें पीत पात, समझो बसन्त है। भौंरे गाने को मचल उठें, कोयल भी छेड़े कूक तान, सब जीवों में ज्यों नई जान, समझो बसन्त है। भारत की प्रगति का विश्वास, आतंक संघर्ष का हो अन्त, लेखनी लिखे जब नया अंक, समझो बसन्त है। फूलों-सा हंसता हो जीवन, समझो बसन्त है। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सा...
हम कब जिम्मेदार बनेंगे
कविता

हम कब जिम्मेदार बनेंगे

======================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा क्यों करें प्रदूषित अपने जल संसाधन, अमूल्य निधि में फैला रहे प्रदूषण। स्वयं गलती कर,दोष देना दूसरों को बंद करें,आओ कुछ हम भी करें। मूर्ति विसर्जन हम करेंगे, पर प्रभु मूरत, अपने संग रखेंगे। भगवान भरोसे हैं, कहते हैं हम भगवान को किसी ओर के भरोसे, छोड़ देते हैं हम। नहीं हो पाती मूर्तियां विसर्जित, यहां वहां पड़ी देख,मन होता व्यथित। सब मिलकर पूजन करें,भोग लगाएं सब मिलकर यह गाएं, गणपति बप्पा मोरया खेतों में आ के बस जा। मन में मूरत एक बिठा लें, चाहे मूर्ति गमले में बिसरा दें। प्रभु सानिध्य का लाभ छोड़ो मत जिम्मेदारी किसी ओर पर ढोलो मत। समझें और समझाएं वरना हम कब जिम्मेदार बनेंगे। लेखिका परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं ...
पेड़ हैं सेनापति
कविता

पेड़ हैं सेनापति

================================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा पेड़ हैं सजग प्रहरी, अविराम अपनी लड़ाई में संलग्न, एक कर्तव्यनिष्ठ सैनिक की भांति। पेड़ घबराते नहीं हैं, पतझड़ उनके पत्तों को झड़ा दे, या फूल तोड़ दे, पुनः असंख्य फूलों पत्तों के साथ, हरियाली क़ायम रखते हैं। पेड़ शान्त भाव से निरन्तर बढ़ते रहते हैं, एक मोर्चे पर हार भी जाएं, तो थोड़ा रुक कर कई मोर्चे खोल देते हैं। पेड़ कोई एक डाल तोड़ दे तो वे अनेक जगहों से, प्रस्फुटित हो जाते हैं। फूल समाप्त होने लगते हैं तो पेड़ फलों से लद जाते हैं। पेड़ सशक्त निष्ठावान सेनापति की तरह पेड़, हमारी रक्षा हेतु डटे रहते हैं। लेखिका परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजन...
विश्व पर्यावरण दिवस
कविता

विश्व पर्यावरण दिवस

================================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा पेड़ पौधों से हमारी श्वास, इन्हें बचाए रखने का करें प्रयास। प्रकृति का न हो शोषण-दोहन, मिलकर बचाना होगा पर्यावरण। नदी तालाब पोखर जलस्रोत, रखें स्वच्छ रखें ध्यान हर स्तर। अगर,न चिड़िया चहकेगी, न नदियां कल कल गान करेंगी। जीवन बोझ सा बन जाए, उससे पहले जागो। प्रकृति के प्रति कर्तव्य निभाओ, सौर ऊर्जा को अपनाओ। हरी भरी रहे धरा हमारी, जीवन में भी हो हरियाली। लेखिका परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्रिकाओं में ...
जल हम सब की जीवन रेखा है
कविता

जल हम सब की जीवन रेखा है

================================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा मैंने पानी से रिश्ते बनते देखे हैं, मैंने पानी से रूठे मनते देखे हैं। मैंने देखा है पानी का मीठा कडवा खारा होना, मैंने देखा है इस का सबमें सबके जैसा हो जाना। घुलने मिलने आकार बदलने का गुण है, कोई नहीं ऐसा जो इसके बिना मौन या चुप है। यह हम सब की जीवन रेखा है, क्या इस का भविष्य हमने कभी सोचा है। क्यों नहीं दे पाते इसे कोई भाव, क्यों नहीं रखते इसे बचाने का भाव। एक दिन नहीं होने पर गृहयुद्ध छिड़ जाता है, इस से हम सब का गहरा नाता है। जल संरक्षण की बात प्रबल करनी होगी, जल संवर्धन की तकनीक अमल करनी होगी। तभी भविष्य- सुख सरल तरल हो पाएगा यह जल का नहीं अपना भविष्य बनाएगा। जो आज किया परिणाम वही फिर पाना है, वरना पानी की बर्बादी पर पानी पानी हो जाना है। बिन पानी क्या जीवन सम्भव हो पाना है  नई पीढ़ी के सम्मुख क...