ऐसा दुख मत देना
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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अस्थिर मन के मोल बिक रहा,
मेरे मन का सोना।
तुम्हें भुला करके जीना हो,
ऐसा दुख मत देना।।
निष्ठुर है कितना परिवर्तन,
टूट रही आशाएँ!
क्यों हो रहें निवेदन निष्फल,
अब किसको समझाएँ!
कैसे दिन अब दिखलाए हैं,
'नादाँ प्रिय का होना'!
अस्थिर मन के मोल बिक रहा,
मेरे मन का सोना।।
जग की भीड़ बढ़ेगी जिस दिन,
होंगी कितनी राहें।
देश बदल देना मेरे सँग,
छोड़ न देना बाँहें।
कहा था प्रिय कि, 'खाली रखना..
मन का कोई कोना।'
अस्थिर मन के मोल बिक रहा,
मेरे मन का सोना।।
हँसी अलग, बोली तेरी इक,
वो तेरी मुस्कानें।
कभी कहाँ आपस में सीखा,
लड़ना किसी बहाने?
अब तो लगता दुख है मिलना,
अरु जीवन में रोना।।
अस्थिर मन के मोल बिक रहा,
मेरे मन का सोना।।
फूल, बहारों और बादल सँग,
स्वप्न तुम्हारे देखे।
लेकिन अब हैं रूखे लगते,...