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Tag: बबिता अग्रवाल “कँवल”

द्रोपदी का सवाल
कविता

द्रोपदी का सवाल

बबिता अग्रवाल "कँवल" सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) ******************** मैं द्रोपदसुता द्रोपदी करतीं रही सवाल। मिला नहीं जवाब मुझे, दुखित मन विकराल। पांडव वंश की कुलवधु, हस्तिनापुर की आन। दास बनें रक्षक मेरे, धूमिल हो गई शान। राजा का धर्म भुला गये, जुएं में लगाया राज। प्रजा का सेवक था फिर, निभाया कौन सा अधिकार। स्वयं को हार दास बना, थी नीची जब नार। हस्तिनापुर की रानी को, कैसे लगाया दांव। दुर्योधन जंघा पीट रहा, कर्ण करें अट्टहास, भरी सभा में करें दुस्साहसन, चीरहरण का दुस्साहस। अटा पड़ा था महल सारा, ज्ञानी और विद्वान से। मौन खड़े थे सभी मुर्दे, जैसे खड़े हो शमशान । धर्म के राजा युधिष्ठिर, भीम सा बलसाली वर, पत्नी की रक्षा हेतु, क्यों हो गए आज निर्बल। तीरंदाज अर्जुन भी है, नकुल और सहदेव ज्ञाणी तुम। बिलख रही पांचाली फिर भी, चुप्पी साधे तुम। धर्मराज का भाई कृष्ण, अर...