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प्रीत की रीत कही तुलसी ने
कविता

प्रीत की रीत कही तुलसी ने

********** बबिता चौबे शक्ति कि हरे रामा प्रीत की रीत कही तुलसी ने प्यारी रे हारी ... कि हरे रामा रच दियो रामचरित  मानस अति  प्यारो रे हारी रत्ना प्रेम में विह्वल होकर नाग पकड़ के तेरे रामा कि हरे रामा बोल  दिए कटु बोल बने हरि प्यारे रे हारी.... प्रेमविवस चूड़ामणि देखत धनुष तोड़ दिय राम ने रामा की हरे राम रचाये सिय से व्याव जोड़ी अति प्यारी रे रामा शबरी के घर जाए रामा जूठे बेर फल खाये रामा कि हरे रामा प्रेम की रचके रीत शरण बलिहारी   रे हारी भरत मिलाप होत रघुवर के निरखत तुलसी दास हो रामा कि हरे रामा असुउन बह रही धार मिलन बलिहारी रे हारी प्रेम विवश हनुमत रंग सिंदूरी सिया देख मुस्काये रामा कि हरे रामा परम भक्त हनुमान निहारी हारी रे हारी अहिल्या जोहत राह हो रामा पाथर जन्म निकारत रामा कि हरे रामा चरण रखत रघुनाथ  उठत बलिहारी रे हारी लेखीका परिचय :- नाम : श्रीमती  बबित...