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Tag: प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे

अलविदा
कविता

अलविदा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बीत गया जो, बीत गया वह, आगत का सत्कार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। कहीं तिमिर, तो कहीं उजाला, सूरज है तो रातें हैं। सुख,विलास है, तो बेहद ही, दुक्खों की बरसातें हैं जीवन फूलों का गुलदस्ता, हर पल को उपहार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। एक साल जो रहा साथ में, वह भी तो अपना ही था। हमने जो खुशहाली सोची, वह भी तो सपना ही था।। दुख, तकलीफें, व्यथा, वेदना, कांटों का संहार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। यही हक़ीक़त यही ज़िन्दगी, है बहार तो वीराना। कभी लगे मौसम अपना-सा, कभी यही है अंजाना।। आशाओं का दामन थामो, अवसादों पर वार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मं...
स्वच्छता के दोहे
दोहा

स्वच्छता के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बिखरी हो जब गंदगी, तब विकास अवरुध्द। घट जाती संपन्नता, खुशियाँ होतीं क्रुध्द।। वे मानुष तो मूर्ख हैं, करें शौच मैदान। जो अंचल गंदा करें, पकड़ो उनके कान।। सुलभ केंद्र तो कर रहा, सचमुच पावन काम। सचमुच में वह बन गया, जैसे तीरथ धाम।। फलीभूत हो स्वच्छता, कर देती सम्पन्न। जहॉं फैलती गंदगी, नर हो वहाँ विपन्न।। बनो स्वच्छता दूत तुम, करो जागरण ख़ूब। नवल चेतना की "शरद", उगे निरंतर दूब।। अंधकार पलता वहाँ, जहाँ स्वच्छता लोप। जागे सारा देश अब, हो विलुप्त सब कोप।। मन स्वच्छ होगा तभी, जब स्वच्छ परिवेश। नव स्वच्छता रच रही, नव समाज, नव देश।। है स्वच्छता सोच इक, शौचालय-अभियान। शौचालय हर घर बने, तब बहुओं का मान।। शौचालय में सोच हो, कूड़ा कूड़ादान। तन-मन रखकर स्वच्छ हम, रच दें नवल जहान।। जीवन में आनंद त...
पितृ अभिव्यक्ति
दोहा

पितृ अभिव्यक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** पिता कह रहा है सुनो, पीर, दर्द की बात। जीवन उसका फर्ज़ है, बस केवल जज़्बात।। संतति के प्रति कर्म कर, रचता नव परिवेश। धन-अर्जन का लक्ष्य ले, सहता अनगिन क्लेश।। चाहत यह ऊँची उठे, उसकी हर संतान। पिता त्याग का नाम है,भावुकता का मान।। निर्धन पितु भी चाहता, सुख पाए औलाद। वह ही घर की पौध को, हवा, नीर अरु खाद।। भूखा रह, दुख को सहे, तो भी नहिं है पीर। कष्ट, व्यथा की सह रहा, पिता नित्य शमशीर।। है निर्धन कैसे करे, निज बेटी का ब्याह। ताने सहता अनगिनत, पर निकले नहिं आह।। धनलोलुप रिश्ता मिले, तो बढ़ जाता दर्द। निज बेटी की ज़िन्दगी, हो जाती जब सर्द।। पिता कहे किससे व्यथा, यहाँ सुनेगा कौन। नहिं भावों का मान है, यहाँ सभी हैं मौन।। पिता ईश का रूप है, है ग़म का प्रतिरूप। दायित्वों की पूर्णता, संघर्षों की ...
सफलता की ज़िद
कविता

सफलता की ज़िद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** ज़िद पर आओ,तभी विजय है, नित उजियार वरो। करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियार करो। करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है हार मिलेगी, तभी जीत की राहें मिल पाएँगी और सफलता की म...
मेरा है सम्मान तिरंगा
कविता

मेरा है सम्मान तिरंगा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आन लिए फहराता नित ही, मेरा है सम्मान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। बलिदानों ने रंग दिखाए, तब हमने आज़ादी पाई। जला-जलाकर वस्त्र विदेशी, सबके तन पर खादी आई। सम्प्रभुता को धारण करता, मेरा है अरमान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। शौर्य सिखाता रंग केसरी, श्वेत सादगी की बातें। हरा हमें देता हरियाली, वैभव की नित सौगातें।। चक्र भारती की जय करता, हरदम है गुणगान तिरंगा।। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। जय जवान का नारा लब पर, जय किसान का गान हो। लोकतंत्र का मान रहे नित, सद्भावों की आन हो।। तीन रंग की शोभा न्यारी, जाने सकल जहान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। सीमाओं की शान बढ़ाता, जन-गण-मन की आन निभाता...
हे! गिरिधर गोपाल
गीत

हे! गिरिधर गोपाल

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ। सत्य, न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। जीवन तो अभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। अधरम का तो राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। गायों, ग्वालों, नदियों, गिरि की, रौनक फिर लौटाओ। सत्य, न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। अंधकार की बन आई है, है अंधों की महफिल। फेंक रहा नित शकुनि पाँसे, व्याकुल है अब हर पल।। अर्जुन सहमा-डरा हुआ है, बंशी मधुर बजाओ। सत्य,न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। मानव अपने पथ से भटका, कंस अनेकों दिखते। नाग कालिया जाने कितने, जो सबको हैं डँसते। ज़हर मारकर सुधा बाँट दो, चमत्कार दिखलाओ। सत्य,न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास...
दर्द का गीत
गीत

दर्द का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रोदन करती आज दिशाएं, मौसम पर पहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो, घाव बहुत गहरे हैं ।। बढ़ता जाता दर्द नित्य ही, संतापों का मेला कहने को है भीड़,हक़ीक़त, में हर एक अकेला रौनक तो अब शेष रही ना, बादल भी ठहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे वो, घाव बहुत गहरे हैं ।। मायूसी है, बढ़ी हताशा, शुष्क हुआ हर मुखड़ा जिसका भी खींचा नक़ाब, वह क्रोधित होकर उखड़ा ग़म, पीड़ा सँग व्यथा-वेदना के ध्वज नित फहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं ।। नए तंत्र ने हमको लूटा, कौन सुने फरियादें रोज़ाना हो रही खोखली, ईमां की बुनियादें कौन सुनेगा,किसे सुनाएं, यहां सभी बहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे है वो घाव बहुत गहरे हैं ।। बदल रहीं नित परिभाषाएं, सबका नव चिंतन है हर इक की है पृथक मान्यता, पोषित हु...
गुरु-महिमा
दोहा

गुरु-महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु सूरज है, चाँद है, गुरु तो है संवेग। अपने शिष्यों को सदा, देता जो शुभ नेग।। ज्ञान, मान, नव शान दे, दिखलाए जो राह। शिष्यों का निर्माण कर, पाता है गुरु वाह।। गुरु देता है शिष्य को, सत्य संग आलोक। बने शिष्य उल्लासमय, तजकर सारा शोक।। गुरु करके नित त्याग को, बनता सदा महान। गुरु से सदा समाज को, मिलती चोखी शान।। गुरु के प्रखर प्रताप से, रोशन होता देश। गुरु-वंदन नित ही करो, ले साधक का वेश।। गुुरु तो नित उजियार है, मारे जो अँधियार। गुरुकृपा से दिव्य हो, शिष्यों का संसार।। गुरु जीवन का सार है, गुरु जीवन का गीत। गुरु से तो हर शिष्य को, मिलती है नित जीत।। गुरु आशा, विश्वास है, गुरु है नव उत्साह। हर युग में गुरु को मिली, वाह-वाह अरु वाह।। गुरु ईश्वर का रूप है, गुरु विस्तृत आकाश। जो बिन गुरु रहता...
भारत माँ का वंदन
कविता

भारत माँ का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** अंधकार में हम साहस के, दीप जलाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है राणाओं की शौर्यभूमि यह, पोरस का सम्मान है संविधान है मान हमारा, जन-जन का अरमान है भारत माँ का वंदन है यह, जन-गण-मन का गान है वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। शीश कटा,क़ुर्बानी देकर, जिनने फर्ज़ निभाया अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया अंग्रेज़ों से लोहा लेने, जिनने त्याग दिखाया अधरों पर माता की जय थी, नित जयगान सुनाया हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए जिनका वंदन, अभिनंदन है, जो अवतारी थे सच में थे जो आग...
हरिभक्ति
गीतिका, छंद

हरिभक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** अँधियार चारों ओर बिखरा, सूझता कुछ भी नहीं। उजियार तरसा राह को अब, बूझता कुछ भी नहीं।। उत्थान लगता है पतन सा, काल कैसा आ गया। जीवन लगे अब बोझ हे प्रभु, यह अमंगल खा गया।। हे नाथ, दीनानाथ भगवन, पार अब कर दीजिए। जीवन बने सुंदर, मधुरतम, शान से नव कीजिए ।। भटकी बहुत ये ज़िन्दगी तो, नेह से वंचित रहा। प्रभुआप बिन मैं था अभागा, रोज़ कुछ तो कुछ सहा।। प्रभुनाम की माया अनोखी, शान लगती है भली सियराम की गाथा सुपावन, भा रही मंदिर-गली जीवन बने अभिराम सबका, आज हम सब खुश रहें। उत्साह से पूजन-भजनकर, भाव भरकर सब सहें। हरिगान में मंगल भरा है, बात यह सच जानिए। गुरुदेव ने हमसे कहा जो, आचरण में ठानिए।। आलोक जीवन में मिलेगा, सत्य को जो थाम लो। परमात्मा सबसे प्रबल है, आज उसका नाम लो।। भगवान का वंदन करूँ मैं, है यही बस कामना। प्र...
आँखों के दोहे
दोहा

आँखों के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** आँखों से जग देखते, हैं आँखें वरदान। आँखों में संवेदना, आँखों में अभिमान।। आँखें करुणामय दिखें, जबआँखों में नीर। आँखों में अभिव्यक्त हो, औरों के हित पीर।। आँखों में गंभीरता, और कुटिलता ख़ूब। आँखों में उगती सतत, पावन-नेहिल दूब।। आँखें आँखों से करें, चुपके से संवाद। उर हो जाते उस घड़ी, सचमुच में आबाद।। आँखें नित सच बोलतीं, दिखता नहीं असत्य। आँखों के आवेग में, छिपा एक आदित्य।। आँखों में रिश्ता दिखे, आँखों में अहसास। आँखों में ही आस हो, आँखों में विश्वास।। आँखों में संवेदना, आँखों में अनुबंध। आँखों-आँखों से बनें, नित नूतन संबंध।। आँखों से ही क्रूरता, आँखों से अनुराग। आँखों से अपनत्व के, गुंजित होते राग।। आँखें पीड़ा,दर्द के, गाती हैं जब गीत। अश्रु झलकते, तब रचे शोक भरा संगीत।। आँखें गढ़तीं मान को,...