चुनरी
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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नारी के श्रंगार में, चुनरी है अति ख़ूब।
लज्जा है, सम्मान है, आकर्षण की दूब।।
चुनरी में तो है सदा, शील और निज आन।
चुनरी में तो हैं बसे, अनजाने अरमान।।
चुनरी को मानो सदा, मर्यादा का रूप।
जिससे मिलती सभ्यता, नित ही नेहिल धूप।।
चुनरी तो वरदान है, चुनरी है अभिमान।
चुनरी में तो शान है, चुनरी में सम्मान।।
चुनरी तो नारीत्व का, करती है जयगान।
चुनरी तो मृदुराग है, चुनरी है प्रतिमान।।
चुनरी तो तलवार है, चुनरी तो है तीर।
चुनरी ने जन्मे कई, शौर्यपुरुष, अतिवीर।।
चुनरी में तो माँ रहे, बहना-पत्नी रूप।
चुनरी में देवत्व है, सूरज की है धूप।।
चुनरी दुर्बल है नहीं, नहिं चुनरी बलहीन।
चुनरी कमतर नहिं कभी, और नहीं है दीन।।
चुनरी में वह तेज है, कौन सकेगा माप।
चुनरी शीतल है बहुत, चुनरी में है ताप।।
चुनरी है म...