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नये साल का गीत
गीत

नये साल का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया काल है, नया साल है, गीत नया हम गाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। बीत गया जो, उसे भुलाकर, हम गतिमान बनेंगे जो भी बाधाएँ, मायूसी, उनको आज हनेंगे गहन तिमिर को पराभूत कर, नया दिनमान उगाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। काँटों से कैसा अब डरना, फूलों की चाहत छोड़ें लिए हौसला अंतर्मन में, हम दरिया का रुख मोड़ें गिरियों को हम धूल चटाकर, आगत में हरषाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। जीवन बहुत सुहाना होगा, यही सुनिश्चित कर लें बिखरी यहाँ ढेर सी खुशियाँ, उनसे दामन भर लें सूरज से हम नेह लगाकर, आलोकित हो जाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प...
अटल बिहारी जी पर दोहे
दोहा

अटल बिहारी जी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अटल दिव्यता के धनी, किया दिलों पर राज। सदियों तक होगा हमें, महारत्न पर नाज।। विनय भाव गहना रहा, प्रतिभा का संसार। भारत मां के आंगना, फैलाया उजियार।। राजनीति के दिव्यजन, देशभक्ति-आयाम। दमका लेकर दिव्यता, अटल बिहारी नाम।। कवि बनकर साहित्य की, रक्खी हरदम लाज। कविता के सुर-ताल थे, वाणी के अधिराज।। संसद के बेटे खरे, गरिमा के उत्कर्ष। युग को वे देते रहे, अंतिम क्षण तक हर्ष।। संघर्षी जीवन रहा, थे गुदड़ी के लाल। अटल बिहारी सूर्य-से, काटा तम का जाल।। महा राष्ट्रनायक बने, शासन के सिरमौर। राष्ट्र-प्रगति के केंद्र बन, दिया शांति को ठौर।। अटल बिहारी के लिए, है सबको सम्मान। उनके तो गुण गा रहा, देखो सकल जहान।। हिंदी के सम्मान का, नारा किया बुलंद। राष्ट्र संघ तक थी पहुंच, हुए पड़ोसी मंद।। जन्मदिन पर ह...
ऐ वीर जवान
कविता

ऐ वीर जवान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** ऐे सैनिक ! फौज़ी, जवान, है तेरा नितअभिनंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। गर्मी, जाड़े, बारिश में भी, तू सच्चा सेनानी अपनी माटी की रक्षा को, तेरी अमर जवानी तेरी देशभक्ति लखकर के, माथे तेरे चंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। आँधी-तूफाँ खाते हैं भय, हरदम माथ झुकाते रिपु तो तुझको देख सिहरता, घुसपैठी थर्राते सीमाओं के प्रहरी तू तो, वीर शिवा का नंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। तू सीमा पर डँटा हुआ पर, हम त्यौहार मनाते तू जगता, मौसम से लड़ता, हम नींदों में जाते तेरे कारण खुशहाली है, किंचित भी ना क्रंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। मात-पिता, बहना-भाई सब, तेरे भी हैं नाते तू पति है, तो पुत्र भी चोखा, तुझको सभी सुहाते पर अपने इस मुल्क़ की ख़ातिर, छोड़े तू सब...
पावस के सवैया
कविता

पावस के सवैया

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मन को तन को, नव जीवन दे, बरसात बहार सुहावन है। जब नीर हमें सबको सुख दे, तब गीत जगे मनभावन है। बरसे बदरा हम भीग गए, पर नीर सदा अति पावन है। सुख की बगिया मन फूल खिलें, बरसे सँग नेह सुसावन है। मन भीग गया,तन भीग गया, अब गीत जगा,यशगान नया। बरसा बहकी,बरसा चहकी, हर एक कहे वरदान नया। बिजली चमकी, बिजली दमकी, बरसे अब तो अहसान नया। हमको तुमको, इनको उनको, भर देे, नव दे, अब प्रान नया। हम जीत गए, हम प्रीत भए, अब तो हर ओर लुभावन है। कितना सुखदा, हर ली विपदा, नव आस सजा यह सावन है। अब रात गई, वह बात गई, नव रीति यहां अब आवन है। बरसे बदरा, हर ओर बही, जल की रसधार सुहावन है । अब गीत लबों पर गूँज रहा, यह है महिमा अति मौसम की। परदेश गए बलमा जिनके, उनको अब आग पले ग़म की। नव माप लिए,नव ताप लिए, बदरा हर बात सदा ...
दीपक-महिमा
दोहा

दीपक-महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दीपक का संदेश है, अहंकार की हार। नीति, सत्य अरु धर्म से, पलता है उजियार।। उजियारे की वंदना, दीपक का संदेश। कितना भी सामर्थ्य पर, रहे मनुज का वेश।। मद में भरना मत कभी, करना मत अभिमान। दीपक करने आ गया, आज तिमिर-अवसान।। दीपों के सँग है सजा, विजयभाव -आवेश। विनत भाव से जो रहे, परे करे क्लेश।। निज गरिमा को त्यागकर, बनना नहीं असंत। वरना असमय ही सदा, हो जाता है अंत।। पूजा में दीपक जले, जलकर रचता धर्म। समझ-बूझ लें आप सब, यही पर्व का मर्म।। कहे दीप की श्रंखला, सम्मानित हर नार। नारी के सम्मान से, हो जग में उजियार।। उजियारा सबने किया, हुई राम की जीत। आओ हम गरिमा रखें, बनें सत्य के मीत।। कोशिश करके मारना, अंतर का अँधियार। भीतर जो अँधियार है, देना उसको मार।। अहंकार मत पोसना, वरना तय अवसान । उजियारे...
हे! कृष्ण-कन्हैया
स्तुति

हे! कृष्ण-कन्हैया

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** द्वापर के है! कृष्ण-कन्हैया, कलियुग में आ जाओ। पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा, अपना चक्र चलाओ।। अर्जुन आज हुआ एकाकी, नहीं सखा है कोई। राधा तो अब भटक रही है, प्रीति आज है खोई।। गायों की रक्षा करने को, नेह-सुधा बरसाओ। पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा, अपना चक्र चलाओ।। इतराते अनगिन दुर्योधन, पांडव पीड़ाओं में। आओ अब संतों की ख़ातिर, फिर से लीलाओं में।। भटके मनुजों को अब तो तुम, गीतापाठ सुनाओ। पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा, अपना चक्र चलाओ।। माखन, दूध-दही का टोटा, कंसों की मस्ती है। सच्चों को केवल दुख हासिल, झूठों की बस्ती है।। गोवर्धन को आज उठाकर, वन-रक्षण कर जाओ। पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा, अपना चक्र चलाओ।। अभिमन्यु जाने कितने हैं, घिरे चक्रव्यूहों में। भटक रहा है अब तो मानव, जीवन की राहों में।। कपट म...
आराध्य राम
गीत

आराध्य राम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आराध्य राम की पूजा में, मैं सारी उम्र बिताऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। धर्म-नीति के जो रक्षक, हैं नित्य सदा ही हितकारी। उनकी गरिमा-महिमा पर मैं, हूँ बार-बार बलिहारी।। आराध्य राम की गाथा को, मैं संग समर्पण गाऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। अंतर मेरा पावन होगा, जब राम नित्य मैं बोलूँगा। तब साँच सदा मुखरित होगा, जब भी मैं मुँह को खोलूँगा।। आराध्य राम मंगलमय हैं, मैं बार-बार दोहराऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। पाप,शोक,संताप मिटे, मैं हर सुख से भर जाऊँगा। सब होंगे मेरे नित प्यारे, मैं भी तब सबको भाऊँगा।। आराध्य राम नित हितकारी, मैं जीवन-सुमन खिलाऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारा...
मुस्कानों का गीत
गीत

मुस्कानों का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मुस्कानों को जब बाँटोगे, तब जीने का मान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल पेट है भूखा, तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल अंतर्मन में है करुणा तो, मानव गुण की खान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। धन-दौलत मत करो इकट्ठा, कुछ नहिं पाओगे जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा वहीं जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा देव नहीं, मानव कहलाऊँ, यही आज अरमान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। ख़ुद तक रहता है जो सीमित, वह बिरथा इंसान है अवसादों को अपनाता जो, वह पाता अवसान है अंतर्मन में नेह ...
गीत साहस का
गीत

गीत साहस का

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** साहस को यदि पंख लगाओ, तो मिट जाये उलझन। असफलता मिट जाये सारी, भरे हर्ष से जीवन।। बने हौसला गति का वाहक, प्रीति-नीति सिखलाता। कर्मठता का ज्ञान कराता, जीवन-सुमन खिलाता।। अंतर्मन जो दीप जलाते, उनका महके आँगन। व्यथा, वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। साहस की महिमा है न्यारी, चमत्कार करता है। पोषित होता जहाँ उजाला, वहाँ सुयश बहता है।। शुभ-मंगल के मेले लगते, जीवन बनता मधुवन। व्यथा, वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। नित्य हौसला रखे दिव्यता, जो तेजस मन करता। अंतर को जो आनंदित कर, खुशियों से है भरता।। कर्मों को देवत्व दिलाता, कर दे समां सुहावन। व्यथा, वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से तन-मन।। साहस लाता सदा दिवाली, नगर- बस्तियाँ शोभित। उजला आँगन बने देव दर, सब कुछ होता सुरभित।। अंतर्...
साजन और चांद
कविता

साजन और चांद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा चंदा मम् सजन, जीवन का उजियार। देखूँ उसको रोज़ पर, नित्य बढ़ रहा प्यार।। मेरा चंदा संग है, केवल मेरा चाँद। मिलना हुआ नसीब है, बाधाओं को फाँद।।। मेरा चंदा रूपमय, मेरे सिर पर ताज। मुझको उस पर है सदा, बेहद ही तो नाज़।। मेरा चंदा बस मिरा, मुझ तक उसका नूर। हर पल मेरे पास है, रहे कभी नहिं दूर।। मेरा साजन पूर्णिमा, लगे सुधा की धार। चंदा-सा है शीतला, है हर सुख का सार।। बदली ढँक सकती नहीं, दमक रहा मम् चाँद। मधुर मिलन का कर रहा, जो नेहिल अनुवाद।। चाँद जगत के वास्ते, साजन मेरा प्यार। यही प्यार चंदा लगे, करे हृदय झंकार।। सखी पूज निज साजना, अपना चंदा जान। जो देता उजियार है, हो बस उसका मान।। साजन में ही चांद है, साजन तो हैं ईश। नहीं झुके उनका कभी, हे! प्रभु किंचित शीश।। व्रत में शामिल नेह है, यु...
पावन विजय-दशहरा
कविता

पावन विजय-दशहरा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा पर्व। पराभूत दुर्गुण हुआ, धर्म कर रहा गर्व।। है असत्य पर सत्य की,विजय और जयगान। विजयादशमी पर्व का,होता नित सम्मान।। जीवन मुस्काने लगा, मिटा सकल अभिशाप। है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा ताप।। है असत्य पर सत्य की, विजय लिए संदेश। सदा दशहरा नम्रता, का रखता आवेश।। है असत्य पर सत्य की, विजय लिए है वेग। विजयादशमी पर्व है, अहंकार पर तेग।। नित असत्य पर सत्य की, विजय खिलाती हर्ष। सदा दशहरा चेतना, लाता है हर वर्ष।। तय असत्य पर सत्य की, विजय बनी मनमीत। इसीलिए तो राम जी, लगते पावन गीत।। नारी का सम्मान हो, मिलता हमको ज्ञान। है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा आन।। है असत्य पर सत्य की, विजय सुहावन ख़ूब। राम-विजय से उग रही, धर्म-कर्म की दूब।। यही सार-संदेश है, यही मान्यता न...
नहीं बनो तुम बेरहम
दोहा

नहीं बनो तुम बेरहम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया कितनी बेरहम, दया-धर्म से दूर। मानवता ने खो दिया, अपना सारा नूर।। जो होता है बेरहम, पशु के जैसा जान। ऐसे मानव को कभी, नहीं मिले सम्मान।। नहीं बनो तुम बेरहम, रखो नेह का भाव। पर-उपकारी जीव में, होता करुणा-ताव।। रखो प्रकृति औदार्य तुम, तभी बनेगी बात। रहम जहाँ है पल्लवित, वहाँ पले सौगात।। जो होता है बेरहम, बनकर रहे कठोर। करे पाप, अन्याय वह, बिन सोचे घनघोर।। नरपिशाच बन बेरहम, करता नित्य कुकर्म। सत्य त्यागकर अब मनुज, गहता पंथ अधर्म।। हिटलर था अति बेरहम, किया बहुत संहार। ऐसे मानुष से सदा, फैले बस अँधियार।। कोमलता को रख सदा, बंदे अपने पास। मत बनना तू बेरहम, वरना टूटे आस।। जो होता है बेरहम, होता सदा कुरूप। सूरज भी देता नहीं, उसको अपनी धूप।। टेरेसा बनकर रहो, करुणा रखकर संग। कभी न बन तू बे...
मुक्तक
मुक्तक

मुक्तक

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** देशभक्ति के मुक्तक ================ (१) भारत माँ का लाल हूँ, दे सकता मैं जान। गाता हूँ मन-प्राण से, मैं इसका यशगान। आर्यभूमि जगमग धरा, बाँट रही उजियार, इसकी गरिमा, शान पर, मैं हर पल क़ुर्बान।। (२) भगतसिंह, आज़ाद का, अमर सदा बलिदान। ऐसे पूतों ने रखी, भारत माँ की आन। जो भारत का कर गए, सचमुच चोखा भाग्य, ऐसे वीरों ने दिया, हमको नवल विहान।। (३) जय-जय भारत देश हो, बढ़े तुम्हारा मान। सारे जग में श्रेष्ठ है, कदम-कदम उत्थान। धर्म, नीति, शिक्षा प्रखर, बाँटा सबको ज्ञान, भारत की अभिवंदना, दमके सूर्य समान।। (४) तीन रंग की चूनरी, जननी की पहचान। हिमगिरि कहता है खड़ा, मैं हूँ तेरी शान। केसरिया बाना पहन, खड़े हज़ारों वीर, अधरों पर जयहिंद है, जन-गण-मन का गान।। (५) अमर जवाँ इस देश के, भरते हैं हुंकार। आया जो इस ओर य...
दर्शन दो दुर्गा माँ
दोहा

दर्शन दो दुर्गा माँ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दुर्गा माँ तुम आ गईं, हरने को हर पाप। संभव सब कुछ है तुम्हें, तेरा अतुलित ताप।। बढ़ता ही अब जा रहा, जग में नित अँधियार। करना माँ तुम वेग से, अब तो तम पर वार।। भटका है हर आदमी, बना हुआ हैवान। हे माँ! दे दो तुम ज़रा, मानव-मन को मान।। सद्चिंतन तजकर हुआ, मानव गरिमाहीन। दुर्गा माँ दुर्गुण हरो, सचमुच मानव दीन।। छोटी-छोटी बच्चियाँ, हैं तेरा ही रूप। उन पर भी तुम ध्यान दो, बाँटो रक्षा-धूप।। हम सब हैं तेरा सृजन, तू सचमुच अभिराम। दुर्गा माँ तू तो सदा, रखती नव आयाम।। ये पल पावन हो गए, लेकर तेरा नाम। यह जग दुर्गे है सदा, तेरा ही तो धाम।। दुर्गा माँ तुम वेगमय, तुम तो हो अविराम। धर्म, नीति तुमसे पलें, साँचा तेरा नाम।। दुर्गा माँ तुमने किया, मार असुर कल्याण। नौ रूपों में तुम रहो, पापी खाते बाण।। सिंहव...
बुढ़ापा
कविता

बुढ़ापा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुज़रा ज़माना नहीं, वर्तमान भी होता है बुढ़ापा, सचमुच में चाहतें, अरमान भी होता है बुढ़ापा। केवल पीड़ा, उपेक्षा, दर्द, ग़म ही नहीं, असीमित, अथाह सम्मान भी होता है बुढ़ापा। ज़िन्दगी भर के समेटे हुए क़ीमती अनुभव, गौरव से तना हुआ आसमान भी होता है बुढ़ापा। पद, हैसियत, दौलत, रुतबा नहीं अब भले ही, पर सरल, मधुर, आसान भी होता है बुढ़ापा। बेटा-बहू, बेटी-दामाद, नाती-पोतों के संग, समृध्द, उन्नत ख़ानदान भी होता है बुढ़ापा । मंगलभाव, शुभकामनाएं, आशीष, और दुआएं, सच में इक पूरा समुन्नत शुभगान भी होता है बुढ़ापा। घुटन, हताशा, एकाकीपन, अवसाद और मायूसी, गीली आँखें पतन, अवसान भी होता है बुढ़ापा । संगी-साथी, रिश्ते-नाते, अपने-पराये मिल जायें यदि, तो खुशियों से सराबोर महकता सहगान भी होता है बुढ़ाप...
हमारा लोकतंत्र
कविता

हमारा लोकतंत्र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिम्मत, ताक़त, शौर्य विहँसते, तीन रंग हर्षाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है। ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म -अभिनंदन है।। सत्य,प्रेम और सद्भावों के, बादलतो नित छाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। ज्ञान और विज्ञान की गाथा, हमने अंतरिक्ष जीता। सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।। कला और साहित्य प्रगतिके, पैमाने तो भाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। शिक्षा और व्यापार मुदितहैं, उद्योगों की जय-जय है। अर्थ व्यवस्था, रक्षा, सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।। गंगा-जमुनी तहज़ीबें हैं, विश्व गुरू कहलाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। जीव...
बेटी कभी न बोझ
कुण्डलियाँ

बेटी कभी न बोझ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** (१) करना मत तुम भेद अब, बेटा-बेटी एक। बेटी प्रति यदि हेयता, वह बंदा नहिं नेक।। वह बंदा नहिं नेक, करे दुर्गुण को पोषित। बेटी हो मायूस, व्यर्थ ही होती शोषित।। दूषित हो संसार, पड़ेगा हमको भरना। संतानों में भेद, बुरा होता है करना।। (२) बेटा कुल का नूर है, तो बेटी है लाज। बेटा है संगीत तो, बेटी लगती साज़।। बेटी कभी न बोझ, बढ़ाती दो कुल आगे। उससे डरकर दूर, सदा अँधियारा भागे।। जहाँ पल रहा भेद, वहाँ तो मौसम हेटा। नहिं किंचित उत्थान, जहाँ बस भाता बेटा।। (३) गाओ प्रियवर गीत तुम, समरसता के आज। सुता और सुत एक हैं, जाने सकल समाज।। जाने सकल समाज, बराबर दोनों मानो। बेटी कभी न बोझ, बात यह चोखी जानो।। संतानों से नेह, बराबर उर में लाओ। फिर सब कुछ जयकार, अमन के नग़मे गाओ।। (४) जाने कैसी भिन्नता, मान रहे हैं लोग।...
“संवेदना के स्वर” लघु कथाओं का बेहतरीन समुच्चय है
पुस्तक समीक्षा

“संवेदना के स्वर” लघु कथाओं का बेहतरीन समुच्चय है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कृति - संवेदना के स्वर कृतिकार - डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ पृष्ठ संख्या - ८० मूल्य - १०१ रू. प्रकाशन - पाथेय प्रकाशन, जबलपुर समीक्षक - प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे, (प्राचार्य) शा. जे. एम. सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.) वर्तमान की सुपरिचित लेखिका, कवयित्री, लघुकथाकार डॉ. संध्या शुक्ल ’मृदुल’ की ताजातरीन कृति लघुकथा संग्रह के रूप में जो पाठकों के हाथ में आयी है, वह है ‘संवेदना के स्वर’। इस उत्कृष्ट लघुकथा संग्रह में समसामयिक चेतना, परिपक्वता, चिंतन, मौलिकता, विशिष्टता, उत्कृष्टता व एक नवीन स्वरूप को लिए हुए उनसठ लघुकथाएं समाहित हैं। पाथेय प्रकाशन, जबलपुर से प्रकाशित यह लघुकथा संग्रह अस्सी पृष्ठीय है जिसमें वर्तमान के मूर्धन्य साहित्यकारों एवं स्वनामधन्य व्यक्तित्वों ने अपनी भूमिका, आशीर्वचन लिखा है जिनमें डॉ. क...
गणेश-वंदना
स्तुति

गणेश-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे विघ्नविनाशक, बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। कदम-कदम पर अनाचार है, झूठों की है महफिल आज चरम पर पापकर्म है, बढ़े निराशा प्रतिफल एकदंत हे ! कपिल-गजानन, अग्नि-ज्वाल बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। मोह, लोभ में मानव भटका, भ्रम के गड्ढे गहरे लोभी, कपटी, दम्भी हंसते हैं विवेक पर पहरे रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर, नवल सृजन सरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। जीवन तो अब बोझ हो गया, तुम वरदान बनाओ नारी की होती उपेक्षा, आकर मान बढ़ाओ मंगलदायी, हे ! शुभकारी, अमिय आज बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) ...
स्वामी विवेकानंद
दोहा

स्वामी विवेकानंद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रखर रूप मन भा रहा, दिव्य और अभिराम। स्वामी जी तुम थे सदा, लिए विविध आयाम।। स्वामी जी तुम चेतना, थे विवेक-अवतार। अंधकार का तुम सदा, करते थे संहार।। जीवन का तुम सार थे, दिनकर का थे रूप। बिखराई नव रोशनी, दी मानव को धूप।। सत्य, न्याय, सद्कर्म थे, गुरुवर थे तुम ताप। काम, क्रोध, मद, लोभ हर, धोया सब संताप।। गुरुवर तुमने विश्व को, दिया ज्ञान का नूर। तेज अपरिमित संग था, शील भरा भरपूर।। त्याग, प्रेम, अनुराग था, धैर्य, सरलता संग। खिले संत तुमसे सदा, जीवन के नव रंग।। था सामाजिक जागरण, सरोकार, अनुबंध। कभी न टूटे आपसे, कर्मठता के बंध।। सुर, लय थे, तुम ताल थे, बने धर्म की तान। गुरुवर तुम तो शिष्य का, थे नित ही यशगान।। मधुर नेह थे, प्रीति थे, अंतर के थे भाव। गुरुवर तुमने धर्म को, सौंपा पावन ताव।। वं...
हिंदी के दोहे
दोहा

हिंदी के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी में तो शान है, हिंदी में है आन। हिंदी का गायन करो, हिंदी का सम्मान।। हिंदी की फैले चमक, यही आज हो ताव, हिंदी पाकर श्रेष्ठता, रखे उच्चतर भाव।। हिंदी में है नम्रता, देती व्यापक छांव। नवल ताज़गी संग ले, पाये हर दिल ठांव।। दूजी भाषा है नहीं, हिंदी-सी अनमोल। है व्यापक नेहिल 'शरद', बेहद मीठे बोल।। हिंदी का बेहद प्रचुर, नित्य उच्च साहित्य। बढ़ता जाता हर दिवस, इसका तो लालित्य।। हिंदी प्राणों में बसे, यही भावना आज। हर दिल पर करती रहे, मेरी हिंदी राज।। हिंदी नित गतिमान हो, सदा करे आलोक। इसी तरह हरदम प्रथम, फिर मन कैसा शोक।। हिंदी मेरा ज्ञान है, यह मेरा अभिमान। रोक सकेगा कौन अब, इसका तो उत्थान।। हिंदी में संवेग है, हिंदी में जयगान। सारे मिल नित ही करें, हिंदी का गुणगान।। हिंदी पूजन-यज्ञ है,...
राखी पर दोहे
दोहा

राखी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो धर्म है, परंपरा का मर्म। लज्जा रखने का करें, सारे ही अब कर्म।। राखी धागा प्रीति का, भावों का संसार। राखी नेहिलता लिए, नित्य निष्कलुृष प्यार।। राखी बहना-प्रीति है, मंगलमय इक गान। राखी है इक चेतना, जीवन की मुस्कान।। राखी तो अनुराग है, अंतर का आलोक। हर्ष बिखेरे नित्य ही, परे हटाये शोक।। राखी इक अहसास है, राखी इक आवेग। भाई के बाजू बँधा, खुशियों का मृदु नेग।। राखी वेदों में सजी, महक रहा इतिहास। राखी हर्षित हो रही, लेकर मीठी आस।। राखी में जीवन भरा, बचपन का आधार। राखी में रौनक भरी, देती जो उजियार।। भाई हो यदि दूर तो, डाक निभाती साथ। नहीं रहे सूना कभी, वीरा का तो हाथ।। यही कह रहा है 'शरद’, राखी का कर मान। वरना होना तय समझ, मूल्यों का अवसान।। राखी में आवेश है, राखी में उल्लास। राखी...
चंद्रयान पहुँचा चंदा पर
कविता

चंद्रयान पहुँचा चंदा पर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
धागों का त्योहार
गीत

धागों का त्योहार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहा है आज तो, नैतिकता का सार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बहना ने मंगल रचा, भाई के उर हर्ष। कर सजता,टीका लगे, देखो तो हर वर्ष।। उत्साहित अब तो हुआ, सारा ही संसार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। आशीषों का पर्व है, चहक रहा उल्लास। सावन के इस माह में, आया है विश्वास।। गहन तिमिर हारा हुआ, बिखरा है उजियार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बचपन का जो साथ है, देता नित्य उमंग। रहे नेह बन हर समय, वह दोनों के संग।। राखी बनकर आ गई, एक नवल उपहार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। इतिहासों में लेख है, महिमा सदा अनंत। गाथा वेद-पुराण में, वंदन करते संत।। नीति-प्रीति से रोशनी, गूँज रही जयकार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण ख...
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लघुकथा

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प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "मित्र सुदेश! यह लॉकडाउन तो गज़ब का रहा? क्या अब फिर से लॉकडाउन नहीं लगेगा।" सरकारी स्कूल के टीचर आनंद ने अपने मित्र से कहा। "क्या मतलब? "सुदेश ने उत्सुकता दिखाई। "वह यह सुदेश ! कि पहले तो कई दिन स्कूल बंद रहे तो पढ़ाने से मुक्ति रही, और फिर बाद में मोबाइल से ऑनलाइन पढ़ाने का आदेश मिला, तो बस खानापूर्ति ही कर देता रहा। न सब बच्चों के घर मोबाइल है, न ही डाटा रहता था, तो कभी मैं इंटरनेट चालू न होने का बहाना कर देता रहा। बहुत मज़े रहे भाई ! "आनंद ने बड़ी बेशर्मी से कहा। "पर इससे तो बच्चों की पढ़ाई का बहुत नुक़सान हुआ।" सुदेश ने कमेंट किया। "अरे छोड़ो यार! फालतू बात। फिर से लॉकडाउन लग जाए तो मज़ा आ जाए।" आनंद ने निर्लज्जता दोहराई। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्ष...