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Tag: प्रीति जैन

एक वो भी था ज़माना
कविता

एक वो भी था ज़माना

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** वो पाकीज़ा बचपन था कितना सुहाना। कागज़ की कश्ती चलाना, बारिश में भीग जाना। मिट्टी के खिलौनों संग भी, आनंद की अनुभूति पाना। फिर दौर कुछ बदला, कुछ भी ना आज संभला। शिक्षा तो है पा ली, न संस्कारों के नामोनिशां। मां बाप और गुरु के आगे बच्चों ने खोली ज़ुबां। क्या मोड़ ले रहा बचपन, हुआ करता जो सुहाना‌। एक आज का ज़माना, एक वो भी था ज़माना। ना घर अलग-अलग थे, एक छत के नीचे ठिकाना। सुख दुख थे एक सबके, गुलज़ार था आशियाना। बुज़ुर्गों के साए में, ना हम राह कभी भटकते। अपने पराए सभी, थे दिलों में आकर बसते। अपनों के आंसू, मुस्कुराहट से बचा न कोई वास्ता। मतलब में जी रहा इंसान, भटक गया है रास्ता। आज खून भी अपना, हो रहा क्युं बेगाना। एक आज का ज़माना, एक वो भी था ज़माना। घर की बहू बेटी, होती थी घर की लाज। रहती थी मर्याद...
पिता का घना साया
कविता

पिता का घना साया

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जीवन की उजली धूप में, पिता का घना साया पीपल की घनी छांव, कड़ी धूप में शीतल छाया दुख के बादलों में गर, कभी तुम घिर जाओ डगमग डगर जीवन की, राह चलते तुम गिर जाओ उंगली थाम के तुम्हारे पिता ने ही मंजिल तक पहुंचाया दिन रात करके मेहनत, करते वो हर जिद्द पूरी चाहे कुछ भी हो फरमाइश, तुम्हारी ख्वाहिश ना रहे अधूरी पेट औलाद का भर के, खुद भूखे पेट है सोया हर पिता चाहे अपने बच्चों का भविष्य संवारना जिंदगी के हर सुख दुख से बच्चों को रूबरू कराना गोद में बिठा प्यार से, जीवन का गणित समझाया नरम दिल रखते सीने में, ऊपर से वो है सख्त पिता ही मजबूत आधार, चाहे समझो कड़वा नीम का दरख़्त मिठास भर दे जीवन में, बरगद सी वो विशाल काया आज तलक दुनिया में सिर्फ मां की ही होती महिमा गीत गजल कविताओं में, ना कभी बखाणी पिता की गरिमा ...
ये शब्द आईने है
कविता

ये शब्द आईने है

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** शब्द मन के अमिट भावों का दर्पण शब्द ही करते बयां, भावनाओं का स्पंदन शब्दों से मिले नफरत, शब्दों से मिले सम्मान ये शब्द आईने है, किरदार करते हैं बयान शब्दों का कारवां अंतहीन, शब्द रंगभरे और रंगहीन फूलों सी खुशबू दे या कांटों भरे ज़ख्म दे संगीन करते हैं दिल भी छलनी या देते खुशियों भरा जहान ये शब्द आईने है, किरदार करते हैं बयान कुछ शब्द आंसू बनकर दिल में उतरते हैं कुछ शब्द कानों में घोले सरगम, कुछ नश्तर से चुभते हैं शब्दों की अदावरी से, दिल में बसे या दिल से उतरे इंसान ये शब्द आईने हैं, किरदार करते हैं बयान अपने हर शब्द का खुद तुम आईना बनो दिल न हो छलनी किसी का, ऐसे शब्दों को चुनो शब्द ही जीवन रेखा संबंधों की, बोलो तुम मीठी जुबान ये शब्द आईने है, किरदार करते हैं बयान मुझे गर्त में ले जाने वाले, स...
अलमारी में रखे पुराने खत
कविता

अलमारी में रखे पुराने खत

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** घिर आई तनहाई, मन को मैं कुछ इस कदर बहलाई अलमारी में रखे पुराने खतों से नज़रें मेरी टकराई याद आया गुज़रा ज़माना, समेट लाया यादों का ख़ज़ाना क्या दौर था मीठी यादों का, सिलसिला खतों का आना जाना सगाई के बाद पिया जी की आती, प्रीत भरी पाती हुई शर्म से लाल, मन की हर कली कली खिल जाती आज बांचन बैठी प्रीत भरे खत, मन फिर गुलज़ार हुआ रोम-रोम हो उठा रोमांचित, खत ने दिल का तार छुआ शादी के बाद पिता का पहला खत, खत में आशीष बसा मां बाबा के घर आंगन को भूल, बेटी पिया का आंगन सजा सास ससुर है मां बाबा तेरे, बाबा ने खत में लिखा दो ड्योढ़ीयों से बंधी, दो घर की लाज मै, ये बाबा से सीखा मां का खत पढ़ते ही, मैं आंसुओं से सराबोर हुई कलेजा निकाल रख दिया मां ने खत में, मै हर अक्षर को छुई मां के खत में हर अक्षर पर थी आंसुओं की स्याह...
चंदन
कविता

चंदन

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जीवन की तपती तपिश में, मैं जलकर निखरता मृदु कुंदन मन में बसे घावों पर तेरी प्रीत, मल दिया जैसे शीतल चंदन सांसो में बसे हो ऐसे के संदल की मनमोहक महक रूप सुनहरा चंचल, भोर के प्रहर की हो पहली झलक लिपट जाओ नागिन सी, खड़ा हूं पसारे बाहुपाश का बंधन मैं जलता एक अंगारा, छुअन तुम्हारी भीगा सा चंदन महका मन का उपवन, जब यादें घिरी मन नंदनवन मे घिरी गंध गुलाबों सी, मंत्रमुग्ध हुए प्रिये आलिंगन में घेरे हुए हैं मुझे सांसो की लय पर, अमूर्त जीवन का स्पंदन प्रेम की तपन में या चंद्रमा सी छुअन में, तू महकता चंदन राह तकते तकते प्रिये, पतझड़ सी वीरान हुई सुरमई अखियां शाख से झरने लगे हैं पत्ते, तेज़ आंधियों में झुकी डालियां मधुमास बन उतरो ह्रदयतल में, मन के मरुस्थल को कर दो मधुबन तु मृग कस्तूरी प्रियतम, कस्तूरी गंध से हुआ ...
ये वक्त भी गुज़र जायेगा
कविता

ये वक्त भी गुज़र जायेगा

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** गमों का कातिल दौर, कब तक मन को छलायेगा डटा रह, ज़ालिम ये वक़्त भी गुज़र जायेगा मन में भर विश्वास की लौ का उजियारा रंगीन दुनिया, जगमगाती खुशीयों का दौर लौट आयेगा सवाल खटखटा रहे हैं, मेरे मन का द्वार धरा का क्या हाल हुआ, सताए यह विचार मन विचलित, नैन विस्मित, देख नजा़रे धरती के सजा मिली कैसी हमें पूछूंगी भगवन, तुम अगर मिल गए इंसान ही इंसान का बन बैठा है दुश्मन अनाचार, अत्याचार, हैवानियत, मर गया कोमल मन संसार है नश्वर, मोल इंसानियत का न जाना किसी ने गुनाहों की मेरे मांग लूंगी माफी, तुम अगर मिल गए जगमगाती दुनिया में छाया एक पल में अंधियारा तम को चीरकर दीप्त प्रकाशमान करो, झिलमिल उजियारा अलौकिक रोशनी से रोशन होगा जहां, मन में विश्वास है आस की लौ थी क्युं जलाई, पूछूंगी तुम अगर मिल गए होश कहां बा...
तुम अगर मिल गए
कविता

तुम अगर मिल गए

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सवाल खटखटा रहे हैं, मेरे मन का द्वार धरा का क्या हाल हुआ, सताए यह विचार मन विचलित, नैन विस्मित, देख नजा़रे धरती के सजा मिली कैसी हमें पूछूंगी भगवन, तुम अगर मिल गए इंसान ही इंसान का बन बैठा है दुश्मन अनाचार, अत्याचार, हैवानियत, मर गया कोमल मन संसार है नश्वर, मोल इंसानियत का न जाना किसी ने गुनाहों की मेरे मांग लूंगी माफी, तुम अगर मिल गए जगमगाती दुनिया में छाया एक पल में अंधियारा तम को चीरकर दीप्त प्रकाशमान करो, झिलमिल उजियारा अलौकिक रोशनी से रोशन होगा जहां, मन में विश्वास है आस की लौ थी क्युं जलाई, पूछूंगी तुम अगर मिल गए होश कहां बाकी रहा, चहूं ओर छाई निराशा बंद ताले में बैठे जो मंदिर में, मन में अब भी आशा मंज़र कैसा, चलती सांसे, हवा का पता नहीं क्युं ये विडंबना धरती पर छाई, पुछुंगी तुम अगर मिल...
किताबें
कविता

किताबें

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरे वीरानेपन की है साथी नाता अनुपम जैसे दीया और बाती मन में हो चाहे असंख्य द्वंद्व पुस्तके ह्रदय की पीड़ा को बहलाती मेरे एकांत की विलक्षण साथी सखी मेरी, संगत ना किसी की भाती मेरे सुख-दुख में मुझे गुदगुदाती पल में आंखों से आंसू छीन ले जाती घर बैठे पुस्तक दुनिया की सैर कराती इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र से ज्ञान बढ़ाती वेद, महापुराणों की गाथा पुस्तक गाती बालसंस्कार, नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाती तुम गुरु जगत की, भावों का स्पंदन विविध चरित्र का हो तुम अमिट दर्पण मनुष्य के हर वर्ग का, पठन से खिल उठता चितवन पुस्तक में सिमटा अद्भुत ज्ञान का व्यंजन पुस्तक मनुष्य से देवता तक का सेतु इतिहास रचती पुस्तके मानवता हेतु बन आत्मबोधी बाह्यजगत से कर किनारा अलौकिक शक्ति जगा, ले पुस्तक का सहारा शिथिल जीवन में, उत्साह की आस मित्र...
गुलाब
कविता

गुलाब

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** रंग गुलाबी, महका मंद समीर, कांटों में गुलाब सजता है महकते गुलाब की अदावरी, मधुबन में खुशबू बिखेरता है गुलाब की मोहक अदा से जग दीवाना, अनमोल प्रीत का ख़ज़ाना अदायगी पर गुलाब की, चाहक भ्रमर और चंचल चितवन बहकता है कांटो में रहकर भी मुस्कुराए, मंत्रमुग्ध करें भीनी भीनी सुगंध खुद का मोल न जाने, हिरण की नाभि में जैसे कस्तूरी गंध दो पल की देकर खुशबू, मदमाता गुलाब ख्वाबों सा बिखरता है मोह लेता है हर मन, खिल उठता भगवन के चरण कमल मन मोहिनी कर श्रृंगार गुलाब का, सजाती केश मलमल ओस भीगी घनेरी जुल्फों में, सुरभित इत्र सा गुलाब महकता है प्रेमियों के प्रीत का प्रतीक, गुलाब की अदा पर कवि रचे कविता नि:शब्द हो बांटता है सुगंध, शख्सियत गुलाब की मधुमिता मालकौंस गाती गुलाब की पंखुड़ियों पर मनभावन भंवरा मंडराता है ना घमंड नजा़कत और नजा़रो...