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इस बहती-बहती बस्ती में
कविता

इस बहती-बहती बस्ती में

प्रियंका सिंह मिर्जापुर ******************** इस बहती-बहती बस्ती में, थम पाँव ज़रा, रूक जाने दो, सागर की बाँहें, थाम लू मैं, मुझे अपनी लय में आने दो। स्वप्निल आँखों का ख्वाब सही, उड़ते-उड़ते ख्यालात सही, विलय नहीं, अब नव विहान, मुझे वो उम्मीद जगाने दो। तम बेला है, राह कठिन, लोगों के व्यवहार कठिन, इन घुटती-चुभती राहों में, एक सृजन मशाल जलाने दो। वो प्रेम का मतलब क्या जाने, जो लड़ते हैं, निज स्वार्थ सही, ना जाति-धर्म, ना घृणा-द्वेष, मुझे वो संसार बसाने दो। हर एक दिशा है, दीवार नई, मुझे उसमें द्वार बनाने दो, सागर की बाँहें, थाम लू मैं, मुझे अपनी लय में आने दो। परिचय :-  प्रियंका सिंह जन्मतिथि : २८/०७/१९८३ निवासी : मिर्जापुर सम्प्रति : शिक्षिका घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...