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Tag: प्रवीण त्रिपाठी

पपीहे की साधना
छंद

पपीहे की साधना

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** महाश्रृंगार छंद गगन से होती जब बरसात। धरा की बुझती है तब प्यास। सूर्य ढलने से होती रात। चाँद लाता है नया उजास।।1 मेघ को तकता चातक रोज़। नहीं मिलती उसको वह बूंद। स्वाति की प्रतिदिन करता खोज। प्रार्थना करता अँखियाँ मूंद।2 ईश का करता निशदिन ध्यान। स्वाति की बूंद एक मिल जाय। मेघ करते उसका कल्यान। बूंद पी फूला नहीं समाय।3 बुझी है जब से उसकी प्यास। प्रेम से गाता है वह गीत। अटल है प्रभु पर अब विश्वास। मानता उनको अब वह मीत।4 परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक ...
वर्षा तुम जब
गीत, छंद

वर्षा तुम जब

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** राधेश्यामी छंद में वर्षा गीत… वर्षा तुम जब जब भी आती, मेरा मन दुलरा जाती हो। तरु के पत्तों से टकरा कर, सुरमय संगीत सुनाती हो। तेरे आने की आहट नित, मुझको पहले मिल जाती है। जब तप्त हृदय मेरा होता, तब क्षितिज कालिमा छाती है। हो निनाद जब दूर कहीं पर, नभ हो जाता जिससे गुंजित। विरही मन में तब हूक उठा, प्रियतम की याद दिलाती है। पहले ही संकेतों द्वारा, जैसे भेजी मृदु पाती हो।१ चातक सा रहता मन प्यासा, चाहत बूँदों की है मन में। कुछ स्वाति फुहारें पड़ जायें, शीतलता आये तब तन में। नभ से बरसे जल झर-झर कर, भीगे तब आकुल सा तन-मन। लग जाएँ सावन की झड़ियाँ, आये बहार तब जीवन में। बूँदों की टिप-टिप से उपजे, तुम नवल राग में गाती हो।२ होते हैं भाव विभोर सभी, जब ऋतु परिवर्तन करती हो। तब शुष्क पड़े सब हृदयों के, तुम ताल सरोवर भरती हो। इस भूतल के सारे प्राणी, मिल राह त...
प्रणेता साहित्य संस्थान, नई दिल्ली की ऑनलाइन काव्यगोष्ठी संपन्न
साहित्यिक

प्रणेता साहित्य संस्थान, नई दिल्ली की ऑनलाइन काव्यगोष्ठी संपन्न

प्रणेता साहित्य संस्थान, नई दिल्ली के चतुर्थ स्थापना दिवस महोत्सव के उपलक्ष्य में कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती पुष्पाशर्मा "कुसुम" (सेवानिवृत हिंदी व्याख्याता राजस्थान शिक्षा विभाग) जी ने की। आ. श्रीमती वीणा अग्रवाल जी ने संचालन की कमान बड़ी कुशलतापूर्वक संभाली। मुख्य अतिथि- श्री सत्येन्द्र सत्यार्थी, कवि, लेखक, संपादक, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, दिनकर सोसाइटी दिल्ली व भारतीय नेत्रहीन कल्याण परिषद्, दिल्ली थे। विशिष्ट अतिथि -श्री गोविंद सिंह पवार, रचनाकार, पत्रकार, समाजसेवी। महासचिव (अखिल भारतीय साहित्य सदन) उप सचिव ( दिल्ली मीडिया ऐसोसिएशन) और कर्नल श्री प्रवीणशंकर त्रिपाठी जी थे। माँ शारदे को माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन के बाद अतिथि स्वागत के साथ कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ हुआ। प्रणेता अध्यक्ष श्रीमती सुषमा भण्डारी जी ने माँ शारदा वंदना "माँ शारदे सुविचार दे" की बहुत मधुर स्वरो...
अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा
मुक्तक

अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** अधिकार बनाम कर्तव्य.. माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी। एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी? देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें। जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1 मुक्ति... मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई। भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई। मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले। सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2 सुरक्षा... नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें। दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें। सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें। *संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
विरहन की पीर
गीत, दोहा

विरहन की पीर

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर। साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। राधा सी बन बाँवरी, भटकूँ वन दिन-रैन। कहीं नहीं मन अब लगे, हृदय न पाये चैन। अपलक राह निहार कर, थकतीं आंखें रोज। मुख सीं कर बैठी रहूँ, नहीं निकलते बैन। चिट्ठी तक आती नहीं, ह्रदय न पावे धीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।1 जिन राहों से तुम गये, देखूँ नित उस ओर। भटकूँ बन पागल पथिक, चले न दिल पर जोर। अंतहीन विरहाग्नि में, झुलस रहीं हूँ नित्य।, हृदय दग्ध अब हो रहा, पीड़ा मन में घोर। लहरों को बस गिन रही, बैठी नदिया तीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।।2 साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। खटका हो जब द्वार पर, रुक जाती है साँस। द्वारे पर प्रियतम न हों, चुभती दिल में फाँस। साँसों की सरगम सधे, यदि लौटे निज गेह। दरवाजे यदि अन्य हो, लगती मन को डाँस। वापस अब आओ पिया, व्य...
मुक्ति शब्द
मुक्तक

मुक्ति शब्द

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** अधिकार बनाम कर्तव्य.. माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी। एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी? देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें। जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1 मुक्ति... मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई। भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई। मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले। सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2 सुरक्षा... नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें। दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें। सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें। *संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
नवरात्र पर नौ मुक्तकों की माला
मुक्तक

नवरात्र पर नौ मुक्तकों की माला

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** शैल पुत्री की कृपा संसार को अब चाहिये। मातु ममता से भरा सर हाथ अपने चाहिये। हम करें आराधना पूजा चरण में मन लगा। अब दया वरदान अंबे मातु से बस चाहिये।1 ब्रह्मचारिणि तव कृपा का दान सबको दीजिये। सर्वजन के सर्वदुख भवताप भी हर लीजिये। आप सम अतुलित तपस्या कामना पूरी करे। मानवी संताप का अब नाश जग से कीजिये।2 चंद्रघंटा विश्व की विपदा सकल हरदम हरें। तव अलौकिक रूप लख कर भाव नव दिल में भरें। दिव्यता अनुपम तुम्हारी इक नयी अनुभूति दे। दानवी हर कृत्य का माता शमन प्रतिपल करें।।3 मातु कूष्मांडा हमेशा झोलियाँ भरती रहें। भक्त संकट में पड़े उद्धार टाब करती रहें। सूर्य सम है कांति जिससे जगत में आलोक हो। नौ दिनों माता तुम्हारी चौकियाँ सजती रहें।।4 पूजते स्कंद माता को सदा कर जोड़ कर। जाप नौ दिन भक्त करते कार्य पीछे छोड़ कर। पूर्ण करती कामना जो भक्त निज मन में रखें। हर...
बदली है ऋतु आज
छंद, धनाक्षरी

बदली है ऋतु आज

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** बदली है ऋतु आज, छेड़ती नवीन साज, बासंती हर मिजाज, दिखे हर ओर है। पीला नीला हरा लाल, हर दिशा में धमाल, प्रकृति करे कमाल, बहुरंगी जोर है। कोयल की मीठी तान, गातें हैं भृमर गान, धरती की बढ़ी शान, मानस विभोर है। पल्लव पे शीत ओस, तपन है डोर कोस खुशियाँ देती परोस,प्यारी हर भोर है। होली पर्व आ रहा है, खुमार सा छा रहा है। मौसम भी भा रहा है, डूब जायें रंग में। प्रसून रंग-रंग के, पल्लव नव ढंग के, दृश्य हैं बहुरंग के, झूमिये तरंग में। कबीरा फाग गा रहे, रंग मन को भा रहे, ठंडाई भी चढ़ा रहे, आता मजा भंग में। ढोलक धमक रही, झाँझर झनक रही, बुद्धि भी बहक रही, खुशी हुड़दंग में। संग होलिका दहन, मैल मन का दहन, कुरीतियों का दहन, यह शपथ लें सभी। आपस में न द्वेष हो, दूर सबके क्लेष हों, यत्न अब विशेष हों, दुविधा तज दें सभी। नहीं तनातनी रहे, मित्रता भी बनी रहे, प्रीति नित...
फगुनाहट और होली
कविता

फगुनाहट और होली

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में। शीतल मंद समीर प्रवाहित, हर्ष भरे मन आँगन में। मंजरियों की नव सुवास नित, मन मतवाला करती है। तरुओं में पल्लव आने से, अनुपम छटा बिखरती है। मस्त मगन भँवरे भी गुंजन, करते नित-प्रति कुंजन में। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में। रंगों का मौसम फिर आया, बाल-वृद्ध हिय हुलस उठे। प्रफुलित चित्त कराये मौसम, सबके तनमन विहँस उठे। रँग जायेंगे रँग में फिर से, आस जगी यह जन-जन में। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में। ढोल मँजीरों की थापों पर, फाग सभी मिल गायेंगे। झूमें नाचें पूर्ण मगन हो, सबके मन हर्षायेंगे। भर उमंग में हुए तरंगित, लहर उठेगी तन-मन में। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में। करे प्रतीक्षा हर प्रेमी अब, रंगों के बादल छाएं। मधुमासी सुरभित बयार में, प्रेम क...
जयकरी छंद
छंद

जयकरी छंद

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत चरणान्त गुरु लघु (२१) से अनिवार्य मानव जीवन बहुत महान, समझो प्रभु का यह वरदान, इसे व्यर्थ मत करिये आप, वरना झेलेंगें संताप। मचा हुआ चहुदिश आतंक, धनी धनी, निर्धन अति रंक, बीच पिस रहा मध्यम वर्ग, नहीं मिला मनचाहा स्वर्ग। राजनीति है अब अनमोल, सभी दल नित्य बजाते ढ़ोल, खोजें डफली छेड़े राग, ओ! सोई जनता अब जाग। जाति धर्म अब है व्यापार। हुआ देश का बंटाधार। नित्य नवेले होते क्लेश। बदला समजिक परिवेश। हे मानव! तू रह मत मौन। बागडोर थामेगा कौन। सुप्त अवस्था त्यागो आज। जागृत कर दो सर्व समाज। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताए...
शिव आराधना
कविता

शिव आराधना

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** शिव शंकर के श्री चरणों में, अपनी जगह बनाता चल। भाँग धतूरा बिल्वपत्र सँग, दधि घृत शहद चढ़ाता चल। पंचाक्षर को नित्य जाप ले, सुधरे यह जीवन सबका। नित्य आरती महादेव की, नित उनके गुण गाता चल। भक्ति भाव से नित शंकर का, सुबह शाम गुणगान करो। भजन हृदय से खुद भी भज कर, जग को संग सुनाता चल। भक्तों का कल्याण सदा शिव, दुष्टों का संहार करें। श्रद्धानत होकर मन ही मन में, धूनी नित्य रमाता चल। कैलाशी का ध्यान धरो नित, त्याग मोह-माया सारी। सांसारिक सुख डिगा न पायें, दिल से शपथ उठाता चल। दानी भोले शंकर जैसा, सकल सृष्टि में मिले नहीं। निर्मल छवि को हृदय बसा कर, शिव की अलख जगाता चल। आशुतोष सच्चे भक्तों को, देते हैं वरदान सदा। उपकारी बन सदा भक्ति से, सही राह अपनाता चल। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर ...
बसंत चालीसा
चौपाई, छंद

बसंत चालीसा

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** मधुमासी ऋतु परम सुहानी, बनी सकल ऋतुओं की रानी। ऊर्जित जड़-चेतन को करती, प्राण वायु तन-मन में भरती। कमल सरोवर सकल सुहाते, नव पल्लव तरुओं पर भाते। पीली सरसों ले अंगड़ाई, पीत बसन की शोभा छाई। वन-उपवन सब लगे चितेरे, बिंब करें मन मुदित घनेरे। आम्र मंजरी महुआ फूलें, निर्मल जल से पूरित कूलें। कोकिल छिप कर राग सुनाती, मोहक स्वरलहरी मन भाती। मद्धम सी गुंजन भँवरों की, करे तरंगित मन लहरों सी। पुष्प बाण श्री काम चलाते, मन को मद से मस्त कराते। यह बसंत सबके मन भाता, ऋतुओं का राजा कहलाता। फागुन माह सभी को भाता, उर उमंग अतिशय उपजाता। रंग भंग के मद मन छाये, एक नवल अनुभूति कराये। सुर्ख रंग के टेसू फूलें, नव तरंग में जनमन झूलें। नेह रंग से हृदय भिगोते, बीज प्रीति के मन में बोते। लाल, गुलाबी, नीले, पीले, हरे, केसरी रंग रँगीले। सराबोर होकर नर-नारी, ...