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Tag: प्रमेशदीप मानिकपुरी

एतबार नहीं इस जीवन का
कविता

एतबार नहीं इस जीवन का

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** कर ले लाख दिखावा सब अपना होने का जीवन के पल मे साथ हँसने और रोने का जख्म अपनो का दिया अब भरता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं दो दिन का है यहाँ रिस्तेदारों का जमघट जाना पड़ता है सभी को अकेले ही मरघट मरना अकेले ही कोई साथ मरता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं क्या रखा है महज इस मिट्टी की काया मे बना रखा है रिस्ते नाते मोह और माया मे दिल के दरवाजे तक कोई पहुँचता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं जाना अकेले है तो अकेले ही जीना सीखे जीवन के अनुभव चाहे खट्टे हो या हो मीठे बिना अनुभव जीवन सफर चलता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं जीवन सफर है तो अब इसका मजा लेते है इसके हर पल मे जीवन की नई सदा लेते है जीवन सफऱ बिना संघर्ष के चलता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ...
नैनों में प्यार है कितना
कविता

नैनों में प्यार है कितना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** नीर भरी आंखे किस-किस से छीपाये स्व की अफलता का कैसे पता लगाये उम्र बढ़ी और बढ़ती गई जिम्मेदारी भी नैनों में प्यार है कितना किसको बताये हृदय की सरलता कैसे समझ पायेगा जितना दिया है उतना ही अब पायेगा अंतर्मन का द्वन्द कोई कैसे जान पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये अपने ही अपने ना रहे फिर आस कैसी सम्मान नहीं फिर उसपर विश्वास कैसी स्वभिमान बेच कर कोई कैसे जी पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये कोई जी भी पाया है क्या खुद के लिए जीवन कुर्बा किया जो अपनों के लिए उस शख्स की पीड़ा कोई जान ना पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये दावानल लगी है जीवन कानन मे अब करुणा का भाव ही नहीं आनन मे अब आप ही बताये जग मे कैसे जीया जाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये स्वार्थ से सजा है रिश्तों के बा...
सरल ह्रदय छला जाता है
कविता

सरल ह्रदय छला जाता है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक दिन बदल जाता है सच्चा मन भी बार-२ दोष दो बदल जाता जीवन भी बदलाव से सहजता ही चला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है मानस के मति की अब कहनी क्या है जीवन समर की आगे नियति क्या है चंचल मन जो वक़्त पर बदल जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है जीवन बन गया क्या कठपुतली जैसा आरम्भ क्या और इसका अंत ये कैसा जो दूसरों के इशारे कैसे चला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है छलते है लोग जब तक है आप सरल छलाते हुये अक्सर पी लेते कटु गरल खेला किसी के मन से खेला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है सरल हृदय जब पत्थर जैसे बन जाता सहजता सारी मानस से निकल जाता अब उसे ही पत्थर दिल कहा जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है सच की राह मे चलने से डरते है लोग आडम्बर और दिखावे मे उलझें लोग सच नहीं...
सत के लिए ही लड़ना
भजन

सत के लिए ही लड़ना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मन को ही मार करके तन को खुवार करके जीवन में आगे बढ़ना सत के लिए ही लड़ना धर्म की ध्वज के लिए खुद को अर्पित करना असत्य से कभी डरना सत के लिए ही लड़ना मानव में समभाव जगे सदाचरण का भाव जगे लोकहित काज करना सत के लिए ही लड़ना शक्ति व साधना संग मे जगत के बिखरे रंग मे उम्मीद से आगे बढ़ना सत के लिए ही लड़ना उदवेलित मन में आश जीवन में दिव्य प्रकाश धर्म को नहीं है छलना सत के लिए ही लड़ना एक आश एक विश्वास जग में सब कुछ खास उस पर विश्वास करना सत के लिए ही लड़ना परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा रूचि : काव्य लेखन, आ...
देश की शान है गाँधी
कविता

देश की शान है गाँधी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सत्य के राह पर भले कांटे हो सही चलना पड़ेगा हमें जो राह हो सही डर जाये ऐसी कोई आंधी नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है गाँधी की तपस्या को ना भूले हम सत्य की राह, चले कदम दर कदम सत्य जैसा कोई चमत्कार नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है सच की लाठी को हम सब जाने उसकी ताकत को भी तो पहचाने बराबरी में उस जैसा दूजा नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है अहिंसा सदा जिसका ढाल बना जो सबके लिए एक मिसाल बना जिससे अब कोई अनजान नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है स्वच्छता से उन्हें सम्मान दीजिये राष्ट्रपिता को आज मान दीजिए सत्य अहिंसा ही पहचान सही है देश की पहचान गाँधी ही सही है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़...
पुरुष होने का दर्द
कविता

पुरुष होने का दर्द

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** पुरुष होने का दर्द क्या है कोई कैसे जाने उसको भी दर्द होता है कैसे कोई पहचाने कितनी सफाई से दर्द सीने में छुपा लेटा है अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है मुस्कान लिए परिवार के सदा खटता है हर मुश्किल और संघर्ष में सदा डटता है जिम्मेदारी वश खुद को खुवार कर लेटा है अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है दायित्व बोध पुरुष को जीने कहाँ देता है बिस्तर में पडा पर नींद उसे कहाँ आता है मन में अगले दिन का हिसाब कर लेता है अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है भार धारित किया है सब रिश्ते-नातो का तनिक फ़िक्र नहीं है खुद कि जब्बतों का अपने सुख भी रिश्तो में कुर्बान कर देता है अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है कभी पिता, कभी पति तो कभी बना भाई माता पिता कि सेवा तो कभी करे पहुनाई असहय वेदना को होंठो ...
हिंदुस्तान की पहचान हिन्दी
कविता

हिंदुस्तान की पहचान हिन्दी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** हिंदुस्तान की पहचान जो जन गण का अभिमान जो भावो की है जो आरती यही तो है हिन्दी ग्रंथो का आधार जो सुरसरी की धार जो भारत माता की बिन्दी यही तो है हिन्दी गीत, गजल और कविता पर्वत, सागर और सरिता समृद्धि की पहचान जो यही तो है हिन्दी भारतीयो की अस्मिता भाव से सदा सुपुनीता आवाम की आवाज जो यही तो है हिन्दी आन, बान, शान है सबका स्वाभिमान है संस्कृति की करे आरती यही तो है हिन्दी मन के सभी भावो मे कंही चंचल कंही ठहराव मे समृद्ध जो है समुद्र सा यही तो है हिन्दी व्याकरण से प्रबुद्ध जो सात्विक और शुद्ध जो सुवासित है जो अलंकार से यही तो है हिन्दी भिन्न-भिन्न राग रंग मे जीवन के प्रत्येक रंग मे संस्कार की झलक जिसमे यही तो है हिन्दी भारत की मातृभाषा बने देश एकता के रंग मे सने बने देश का अब शान...
राधा का आधार
कविता

राधा का आधार

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** राधा का आधार धरा पर, होंठो पे मुस्कान है राधा को राधेय बना दे ऐसी जिसकी शान है सृष्टि का महानायक जो कर्म का पाठ पढ़ाता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है अद्धभुत है लीला, सबको विभोर कर जाता है गोकुल मे निश्चिंल प्रेम का अलख जगाता है नारायण है जो नर रूप मे नित लीला रचाता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है रावण मारे सियापति राम बनकर हरे धरा का ताप कंस मर्दन किया श्याम बनकर धरती के मिटे पाप कभी राम कभी श्याम बन, इस धरा पर आता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है प्रेम का बीज बोकर जग मे, प्रेम का महत्व बताया प्रेम-प्रेम प्रकृति मे कैसे? प्रेम का भेद समझाया जग कल्याण के लिए प्रेम की महिमा बताता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है जीवन के गूढ रहस्य को सहजता से समझाया कुरुक्षेत्र म...
ख्वाब अधूरे रह जाते है
कविता

ख्वाब अधूरे रह जाते है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** इस जीवन के आपाधापी में कितने गलती और माफ़ी में सपने ख्यालो में सज पाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है अपना अब कोई नहीं होता है आँखे बरबस ही अब रोता है अपने सब बेगाने हो जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है इस जगत की जद्दोजहद में कोई हद और कोई बेहद में कैसे कब सफल हो पाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है एक मिट्टी के घरौंदा के लिये कुछ दिल की चाहत के लिये अपनों को भी भूलाये जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है कोई कहाँ जग में सदा रहेगा अपनी बीती किस से कहेगा राज सीने में दफनाये जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.ए...
सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है
कविता

सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जीवन के हर पथ पर मिलते है कांटे जाने कितने रंजो गम को इसमे बाँटे भूल ना जाना जीवन की ये कहानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है निश्चित ही आयेगा जग मे गम का मेला लड़ना ही पडता है सबको यहाँ अकेला क्या होगा आगे-2 किसने यहाँ जानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है क्या होगा आगे क्यों सोच रहा है बन्दे कर्म कर फल की इच्छा मत कर बन्दे बहती रग-रग मे जैसे खूँ की रवानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी जानी है आज को जी ले कल किसने देखा है कर्म से बदल जाती हाथो की रेखा है वर्तमान को जीना सिखाती जवानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी जानी है आओ मिलकर हम एक नया आयाम दे संघर्ष से जगत को एक नया पैगाम दे पग-पग पर लिखनी रोज नई कहानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी ज...
उम्मीद का चिराग
कविता

उम्मीद का चिराग

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तन्हाइयो का सफर हैं तेरा और मेरा तन्हा कैसे कट पाये सफर अब मेरा आप तड़पते बैठे हो अकेले ही वहाँ जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा उम्मीद का चिराग ही जला पा रहे हैं साथ होगा दिल को समझा पा रहे हैं जाने किस विधि साथ होगा अब तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा कैसे भी हालात अब जीना ही पड़ेगा गम के आंसु खुद को पीना ही पड़ेगा कभी तो सफऱ में साथ मिलेगा तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा क्या कभी हम साथ-साथ हो पायेंगे हर हाल में पिया तेरे साथ जी पायेंगे कभी मन निराश ना हो मेरा और तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा उम्मीदों के सहारे जीवन काट लेंगे गम व ख़ुशी आपस में ही बाँट लेंगे तू बने राधा मेरी मै घनश्याम हूँ तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा जी रहे केवल साथ की ही आश में बचा जीवन का सफर हो विश्वास में रब ...
कोई रास्ता भी नहीं बताता है …
कविता

कोई रास्ता भी नहीं बताता है …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मझधार मे तो फंसी है नैया मिल जाये कोई तो खेवैया उलझन समझ नहीं आता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है किस तरह से साथ निभाये कैसे दिल को अब समझाये दांव मे सब कुछ लग जाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है जीवन भी तो जैसे व्यर्थ हो कंही कोई ना अब अर्थ हो निर्वाह का ही डर सताता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है अब करें क्या और कैसे-कैसे उम्र बीत जाये बस जैसे तैसे उम्मीद कुछ हाथ नहीं आता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है उलझा हुआ यहाँ हर आदमी है स्व संघर्ष मे मशगुल हर कोई है कौन किसका साथ निभाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है कुछ करें जतन अब तो मन से शेष है जीवन जो तन मन से शायद यही साथ -२ जाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवा...
जब बसंत आता है
कविता

जब बसंत आता है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है बागो मे कोयल जब प्यार के गीत गाती है सरगम की लय पर सस्वर गीत सुनाती है इन मधुर गीतों से दिल मेरा भर जाता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है अमुवा की मौर से फ़िज़ा भी मतवाली है बासंती बयार सबका मन मोहने वाली है सरसराती हवाएं दिल मे आग लगाता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है पीले सरसो के फूल प्रकृति का श्रृंगार है धरा पर बसंत, रति काम का अवतार है इसकी मादकता मन को सदा हर्षता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है रग-रग मे जीने की नवीनतम आश है प्रकृति का अप्रतिम कैसा अहसास है प्रकृति का हर शै प्रेम की बात बताता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है प्रकृति से सीखे परिवर्तन कैसे स्वीकारना विषम परिस्थिति मे भी खुद को निखारना पतझड़ के बाद ही नई-नई कोपले आता है ज...
तो समझो बसंत आया है
कविता

तो समझो बसंत आया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** पलाश भी अब झूम उठे नव कोपल भी खिल उठे पत्ता और डाली हर्षाया है तो समझो बसंत आया है कोयल की राग है नियारी सबकी लगती अति प्यारी सुन्दर राग भी तो गाया है तो समझो बसंत आया है करवट बदलती है फिज़ा सबसे अलग और है जुदा प्रकृति में खुमार आया है तो समझो बसंत आया है तन प्रफुल्लित हो जाये मन प्रफुल्लित हो जाये प्रीत मन में गर समाया है तो समझो बसंत आया है फिज़ा में निखार है आई मदमस्त बाहर भी है छाई भंवरों का मन ललचाया है तो समझो बसंत आया है जीवन में नव-नव हर्ष देने सौन्दर्य का सहज स्पर्श देने हरियाली से जग सजाया है तो समझो बसंत आया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(ब...
दर्द का अहसास
कविता

दर्द का अहसास

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सामान्य लड़की सभी लड़कियों से खास है जीवन दुभर पर जीने की बेशुमार आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उसकी मानसिकता लड़कियों से भी भिन्न है उसकी सोच माँ के गम से सर्वथा अभिन्न है जिसे माँ के अंदर करनी बाप की तलाश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उमड़ आते है आँख मे गम के आंसू अक्सर सोचती है क्या आयेगी खुशीयों के अवसर कितने गम है फिर भी नवजीवन की आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है अजीब-2 से सवाल उसके जेहन मे उठती है जवाब के तलाश मे खुद से भी तो रूठती है जवाब मिलने का उसे अब भी एक आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सब कुछ होकर कुछ भी तो नहीं होता है? ऐसा इत्तेफाक दुनिया मे क्योंकर होता है? तब से मुझे भी उसके उत्तर की तलाश है एक लड़की जिसे...
कितने रंग दिखाती है जिंदगी
कविता

कितने रंग दिखाती है जिंदगी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी कभी हंसाती कभी रुलाती है जिंदगी चरित्र के चादर मे रंग लगाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी कभी तो अपनों का अपनेपन से ही कभी तो जीवन के झूठे सपनों से ही निज से साक्षात्कार कराती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी समय की पल-पल पड़ती मार से ही प्रवाहित नदी की अविरल धार से ही समयानुकूल जीना सिखाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी समय-समय का अब क्या मोल होगा जीवन जाने कैसे अब अनमोल होगा हर समय की कीमत बताती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी जीवन के सुर, ताल, लय और छंद का प्रतिपल बदलती इसकी हर बंध का सरगम सा जीवन बतलाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुर...
बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं
कविता

बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अहसास से सींचे हर एक रिश्तों को जग मे साथ निभाते हर फरिश्ते को दिल जो मिले आश अधूरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं कभी कम या ज्यादा मिल जाता है बागो मे भी कई फूल खिल जाता है अरमा के फूल खिले जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं अब अहसासों से रिश्ते निभाते रहें जीवन के गीले शिकवे मिटाते रहें रूबरू मिलना भी जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं जो मिला है वो भी उसकी मेहर है सुख अमृत है तो दुख ही जहर है सदा सुख मिले हमें जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं है इश्क अगर तो दर्द मिलेगा जरूर कांटों मे नित गुलाब खिलेगा जरूर प्यार मे अंजाम मिले जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं दुख-सुख तो जीवन का हिस्सा है जीवन भी एक अनोखा किस्सा है जीवो हंस के कोई मजबूरी नह...
उम्मीदों के दीपक जलाये
कविता

उम्मीदों के दीपक जलाये

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मन के अंधियारे मे उम्मीदों के आश लगाये संवर जाये जीवन ऐसा कुछ हम कर जाये उम्मीदों के दीपक संग ही दीपावली मनाये आओ किसी के जीवन में खुशहाली लाये आपस के अब तो सारे राग द्वेष मिटा दें जन-जन मे नवीन अब अनुराग जगा दें दिल से दिल के अब तो सारे भेद मिटाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये अपनों को अपनेपन का अब अहसास दें बदलती जीवन को अब नव-नव आश दें चलो सब खुशियों की फुलझड़ीयाँ जलाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये समता, ममता व एकता के अब भाव जगे मानव हित में मानवता के नव अंकुर जगे मन से मानवता की ही अब ज्योति जलाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये मृगतृष्णा में भटक रहें सब मानव अब तो रिश्तों का कंही कुछ लिहाज नहीं अब तो चलो रिश्तों में फिर से नई मिठास जगाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये राग, द्वेष, मद...
सपने सजाये बैठा हूँ
कविता

सपने सजाये बैठा हूँ

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दिल मे कितना बोझ लिये बैठा हूँ दिल मे दर्द के सैलाब लिए बैठा हूँ बहुत दूर तलक है अंधेरा ही मगर पर उम्मीदों की दिये जलाये बैठा हूँ अंधेरा भी मिट जायेगा एक दिन बाहरें फिर लौट आयेगी एक दिन एक दिन आयेगी रौशनी कंही से मन को अब ये समझाये बैठा हूँ रात के बाद दिन का आना तय है दुख के बाद सुख का आना तय है आयेगी नूतन किरण अब नभ से अब सूरज से नजर मिलाये बैठा हूँ अरमानो से सजी सब रातें होंगी खुशियों की नित अब बातें होंगी हर दिन होगी खुशियों का मेला मन मे यह विश्वास जगाये बैठा है कितने सपने भी अब टूट रहें है कितने अपने भी अब छुट रहें है टूटती तारों संग जाने क्यों कर नवीनतम सपने सजाये बैठा हूँ परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- ...
मतलब के रिश्ते-नाते है
कविता

मतलब के रिश्ते-नाते है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** धन दौलत तक माँ बाप से नाता है सबल होते ही तोड़े सब से नाता है अंत मे सब छोड़कर चले जाते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है दौलत हो तो सब के रिश्तेदार है गरीब का कब कहाँ कोई यार है गरीबो से लोग रिश्ते भी छुपाते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है अपना-अपना सब को कहते है पर पीड़ा अपने तक ही रहते है वक्त पड़े कोई साथ नहीं आते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है लोग आते है और लोग जाते है जग मे निज-निज धर्म निभाते है कितने लोग जीवन मे ऐसे आते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा रूचि : काव्य लेखन, ...
औरत
कविता

औरत

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिसने जन्म दिया उसका मान नही है क्या? ममता की कंही सम्मान नही है जिस्म के लिए यह कैसे व्याभिचारी है औरत को औरत होने की लाचारी है खूब लगाते नारीवाद के नारे सभी क्या सम्मान दे पाये नर उन्हें अभी क्या? वो जीने के अधिकारी नही है औरत को औरत होने की लाचारी है समता का जब उनको अधिकार है क्यों रखते उनके प्रति दुर्व्यवहार है घात लगाकर बैठे क्यों शिकारी है औरत को औरत होने की लाचारी है क्यों उनको सब अधिकार देते नही बराबर का अधिकार क्यों देते नही क्यों कहलाई जा रही वह बेचारी है औरत को औरत होने की लाचारी है अब सम्मान और समता से जीये क्यो जीवन भर वह विष को पिये स्वाभिमान से जीने के अधिकारी है समता, स्वभिमान के वो अधिकारी है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाच...
इंसान से इंसानियत खो गया है
कविता

इंसान से इंसानियत खो गया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** परहित परोपकार की बातें करना समाज के लिए जीना और मरना सब कुछ खोखली बातें हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है अच्छे-बुरे की अब परख नही है जीने-मरने मे कोई फरक नही है स्वार्थी अब हर इंसान हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है प्यार-मोहब्बत सब झूठी बातें बेईमानी मे कटती है अब रातें दगा देना,नामे वफा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है पल-पल बदलती जग की तस्वीर जाने लिखने वाला सबकी तकदीर जीवन कोई फलसफा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है विकास का क्या असर हो गया है मानव से मानवता ही खो गया है क्यूँ इंसान अब ऐसा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्ष...
इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर
कविता

इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरा नाम नही तो सब मुझसे खुश रहते है तेरा नाम लेते सब मुझसे नाखुश रहते है अपने हिस्से का प्यार सब चाहते है मगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर समझ नही पाते लगाव घट नही सकता ये वो घाव है जो कभी भर नही सकता इश्क सीमारहित जिसका छोर नही पर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर चाहत के अफसाने जो दिन रात बढता उसके अगन से कोई भी बच नही सकता इश्क वो दरिया जिसमे ताउम्र डूबना मगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर आग सीने में लग जाये एक बार इश्क की ताउम्र मिलेगी अब प्रेम में कसक व सिसकी इस कशिश में बीतेगी अब तो जीवन डगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर उम्र गुज़ार देंगे केवल तेरे यादो के साथ मैं इधर लिखूं,आप उधर पढ़ना मेरे साथ अब तो पढ़ के ही प्रेम होगा हमारा अमर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर किसी भ...
मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना
कविता

मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** गर मै जिंदा हूँ,तू अपना वजूद रखना । वक्त के बदलने का बस ख्याल रखना ।। एक ना एक दिन बहार आयेगी जरूर । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। बेशक कांटे भी मिलेंगे रास्ते मे मगर । दुनिया भी हो जाये इधर उधर मगर ।। दुनियादारी मे खुद का ख्याल रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। क्या हुआ की किस्से अधूरे रह गये । रेत का मकान,एक पल मे ढह गये ।। कांटों को भी सीने से लगाये रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। एक दिन दामन खुशियों से भर जायेगी । बहारे लौट कर बासंती रंगरूप दिखायेगी ।। उम्मीद से जीवन का दीपक जलाये रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति :...
दुखों का आना …
कविता

दुखों का आना …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सुख-दुख दोनों हमारे आसपास है दोनों ही इस जग मे बहुत खास है आगे पीछे आना इसकी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है आना जाना जब पहले से तय है हर गम के लिए पहले से सज्य है सुख-दुख भी उसी की महोब्बत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख दोनों ही करनी फल है इस सम रहकर सहना ही हल है सहने की अब तो बनानी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है गम की बदली भी छायेगी कभी बसंत से बहार भी आयेगी कभी एकदूजे के पीछे आने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख मे सम रहकर जीते है दोनों ही अच्छे है सहकर जीते है जो आता, उसे जाने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्...