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Tag: पूनम शर्मा

पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

पूनम शर्मा मेरठ ******************** आज पर्यावरण मुस्करा रहा है, सिर हिलाता ठंडक उड़ेलता है, पेड़ स्तंभ-वत खड़े हैं, टहनियां झूम-झूम पंखा झलतीं, जडों ने जकड़ रखा है मज़बूती से, सायरन बजाती एंबुलेंस सरपट भागती सूनी सड़कों पर, बेतहाशा दौड़ता मानव, आक्सीजन दबोचने को, कुटिल मुस्कान वृक्षों की, "हमसे दुश्मनी?", काटते हो हमें ! हम तो मुफ्त उपहार देते रहे, कतरा-कतरा बिखेरते रहे, अपना अंश वातावरण में, चेतावनी भी देते रहे गाहे-बगाहे, लेकिन तुमने, माहौल बिगाड़-बिगाड़ कर खिल्ली उड़ाई और बढ़ गए आगे, आज लौट रहे हो हमारे ही पास, ये नदियां, पहाड़, झरने, जंगल आदि और हम, दोस्त हैं बिलकुल तुम्हारे एक व्हाट्सएप ग्रुप की तरह तुम काम पड़ने पर हमें ही पुकारते हो पीछे मुड़कर, आक्सीजन-आक्सीजन... बचाओ-बचाओ, जीव-जंतु, मानव, सब हैं हमारे आसरे लेकिन, कोई हमारा ख्याल भी रखेगा क...
पाती तेरे नाम
कविता

पाती तेरे नाम

पूनम शर्मा मेरठ ******************** कर्मों की खेती कभी सूखती, तो कभी लहराती थी पर, तुझे काटने की कितनी जल्दी थी, काटता चला गया उनींदी सी आंखों से, आधा अधूरा छोड़, सरक लिया, मेरी आंखें ताउम्र तलाशेंगी तुझे, तू तस्वीर में कैद हो गया मेरे भाई, मोबाइल का दायरा उलांघ, कानों में फुसफुसाता है, ऐसा लगता है, यहीं आसपास है तू कब भाई का दायरा लांघकर दोस्त बन गया था मेरा, खट्टी-मीठी सारी बातें साझा करते-करते, कौन से लोक चला गया,, अब कभी फोन नहीं आएगा ना मैं मैसेज करूंगी ना ही नीला "टिक" बनेगा मेरे छोटे भाई विजय ! तू कितना बड़ा हो गया रे समझदारी की बातें समझाते समझाते फुर्र से उड़ चला, अभी कल की ही तो बात है "अस्पताल जा रहे हैं जीजी !" झूठा... तू तो निकला था अनंत सफर को नंगे पांव, किसका हाथ थामा तूने ! हम सभी का हाथ छोड़ कहां चला गया मेरे भाई मुझसे ज्यादा चाहने वाला कौन मिल गया रे, कितना चाहती थी ...
तू सुकून थी
कविता

तू सुकून थी

पूनम शर्मा मेरठ ******************** मां ! तू तो सारे सुकून लेकर फुर्र से उड़ गई, अब वो सुकून नहीं मिलता जो तुझसे जिद करके, लड़ के मिलता था, मुझे जिताने को तू हार जाती थी, पर मैं विजया कहां हुई तू तो मुझे जिताने के लिए हारती थी ना, मेरी झूठी मां, हर अच्छी चीज मेरी तरफ सरका देती थी, "मुझे पसंद नहीं है" ये कहकर, ये कैसा लाड़ था तेरा जो तू अपने साथ ले गयी, अपना वो दुलार, अपने झुर्रियों पड़े गिलगिले हाथों में समोसा दबाए रखना, कहना, "मिर्च बहुत है", मुझे तब समोसा बहुत पसन्द था, अब समझी तेरी चालाकियां, तू मेरा स्वाद ले गयी, स्वाद तो तेरे झुर्रियों भरे हाथों का और प्यार के कसीदों का था, समोसे तो आज हर नुक्कड़ पर मुंह तिकोना किए राह ताकते हैं, तू रोज धमकाती थी "मैं चली जाऊंगी" पर ये मेरी सोच से परे था, तू चली गई, मैं घर की चौखट पर आज भी तुझे खड़ा पाती हूं अपनी राह तकते, मनुहार भरी आंखों से इंत...