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नारी का सम्मान
कविता

नारी का सम्मान

पुजा गुप्ता बुढार (शहडोल) ******************** मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।२ घर को खुब सज़ा लिया है।२ अब खुद को साबित करना है। मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। कैसे- तुम यहां मत जाना, तुम वहां मत जाना।२ बचपन से टोका जाता है। तुम दो घर की इज्ज़त हो, बस यही तो सिखाया जाता है। बस हमारे पास आस है।२ मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। सब रोक टोक सह के मै आज ससुराल को चली।२ मायके की इज्ज़त सम्भाल के, ससुराल की इज्ज़त बनाने चली। हो गई बेटी पराई-२ उसे भी कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। किचन से लेकर बेडरूम तक,२ तुमने अपना हर काम निभाया है। पर- पर वाह रे नारी अपना सम्मान नही बना पाया है। देके उनको चिराग उनका,२ यह तुमने जतलाया है। कमी नहीं तुम्हारे कोख में,२ बस यही तो बतला पाया है। हां अब हमें इन सब ...